जिंदगी पर भारी जहरीले पदार्थ

Last Updated 28 May 2016 04:49:48 AM IST

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट (सीएसई) का यह खुलासा कि ब्रेड या डबल रोटी में कैंसर पैदा करने वाले ‘पोटाशियम ब्रोमेट’ जैसे खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है.


जिंदगी पर भारी जहरीले पदार्थ

डबल रोटी से उन करोड़ों लोगों की चिंता बढ़नी लाजिमी है, जो रोजमर्रा के जीवन में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.

सीएसई द्वारा जांच में पाया है कि इस्तेमाल होने वाले अधिकांश बेड ब्रांडों में पोटाशियम ब्रोमेट और पोटाशियम आयोडेट की उपलब्धता है, जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक है. विश्व के कई देशों में इन रसायनों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है तथा इनकी बिक्री पर भी सजा का प्रावधान है. चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो इसके इस्तेमाल से मुंह, सिर, गर्दन में जलन और त्वचा संबंधी बीमारियां पैदा होती हैं, के अलावा पेट दर्द, नर्व डैमेज एवं अन्य संवेदनशील अंगों को भी नुकसान पहुंचता है.

अच्छी बात है कि सीएसई के इस खुलासे के बाद भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने पोटाशियम ब्रोमेट को खाद्य कारोबार में प्रयुक्त होने वाले 11000 मिश्रणों की सूची से हटाकर इस पर प्रतिबंध का निर्णय लिया है. बेहतर होगा कि यह नियामक संस्था एफएसएसएआई बाजार में उपलब्ध अन्य सभी पूरक खाद्य पदाथरे की भी जांच करे जिनमें इस तरह के रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है.

यह इसलिए कि देश की सार्वजनिक खाद्य सुरक्षा प्रयोगशालाओं में जांच के बाद पाया जा चुका है कि खाद्य पदाथरे के हर पांच में से एक नमूने में मिलावट और गलत मार्का (मिस ब्रांडेड) का इस्तेमाल हो रहा है. एसोचैम तथा बाजार अनुसंधान कंपनी आरएनसीओएच द्वारा अपनी रिपोर्ट में कहा जा चुका है कि देश में बिक रहे 60 से 70 फीसद फिटनेस या फूड सप्लीमेंट नकली हैं और वे बिना रोकटोक के बाजार में बेचे जा रहे हैं.

एक आंकड़े के मुताबिक देश की तकरीबन 78 फीसद युवा आबादी इस पूरक आहार का इस्तेमाल भोजन, दवा और चूर्ण के रूप में कर रही है. पूरक आहार से जुड़ी कंपनियां अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए किस्म-किस्म के हथकंडे अपना रही हैं. उनकी ओर से दावा किया जाता है कि उनके उत्पादों के इस्तेमाल से बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर को ऊर्जा व ताकत मिलती है. ये कंपनियां प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए अपने उत्पादों का जमकर प्रचार भी करती हैं.

चूंकि देश का युवा वर्ग अपनी सेहत के लिए काफी संजीदा है, ऐसे में कंपनियां अपने दावे और दलीलों के जरिये उन्हें लुभाने में सफल हो रही हैं. नतीजा उनका बाजार लगातार बढ़ रहा है. एक शोध के मुताबिक इस क्षेत्र की कंपनियों के लिए विटामिन और खनिजों के पूरक आहार में आने वाले वर्षो में काफी संभावनाएं हैं; इसलिए और भी जरूरी हो जाता है कि उन उत्पादों का व्यवस्थित व वैज्ञानिक ढंग से परीक्षण हो. वर्तमान में इस बाजार में विटामिन और खनिजों वाले पूरक आहार की हिस्सेदारी 40 फीसद, औषधीय पूरक आहारों की 30 फीसद तथा प्रोबॉयोटिक की 10 फीसद है.

आरएनसीओएच की मानें तो आज फिटनेस सप्लीमेंट का बाजार तकरीबन 2 अरब डॉलर तक पहुंच गया है और 2020 तक 4 अरब डॉलर पहुंचने की उम्मीद है. इन उत्पादों की बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप ही नकली खाद्य पदाथरे की खपत धड़ल्ले से हो रही है. इन उत्पादों का पहचान करना बहुत आसान नहीं है. मैगी में भी लेड और मोनोसोडियम ग्लूटामैट जैसे घातक रसायन पाए गए और परीक्षण के बाद अंतत: सरकार को बिक्री पर रोक लगाना पड़ा. कई राज्यों ने दूध के नमूनों की जांच में डिटज्रेट, स्टार्च, वनस्पति तेल, व्हाइटनर इत्यादि खतरनाक पदाथरे का मिशण्रपाया है. एक आंकड़े के मुताबिक घातक एवं पेय पदाथरें के इस्तेमाल से होने वाली बीमारियों से निपटने के लिए प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ रुपये खर्च करना पड़ रहा है. ऐसा नहीं है कि कानून नहीं है.

खाद्य पदाथरे में मिलावट रोकने के लिए खाद्य संरक्षा और मानक काूनन 2006 लागू है. इस कानून के मुताबिक मिलावटी व नकली माल की बिक्री करने और भ्रामक विज्ञापन पर संबंधित प्राधिकारी जुर्माना कर सकता है. यही नहीं अप्राकृतिक और खराब गुणवत्ता वाले खाद्य पदाथरे की बिक्री पर आर्थिक दंड का भी प्रावधान है. लेकिन सच्चाई है कि तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण मिलावटखोरों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई नहीं हो रही है. आज जरूरत इस बात की है कि विकसित देशों की तरह भारत में भी खाद्य संरक्षा के मानक तय हों, ताकि पेय और पूरक आहार लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न डाल सके.

अरविंद जयतिलक
लेखक


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