कटाक्ष : राजपथ पर गाय

Last Updated 28 May 2016 04:39:37 AM IST

नीलगाय राजपथ पर पहुंच गई. वह भी ठीक दूसरी सालगिरह वाले दिन पर. पर्यावरणवादी और पुलिसवाले मामले को उलझाने में लगे हैं, वर्ना संदेश दो-दूनी चार की तरह साफ है.


राजपथ पर गाय

और किसी के आए हों न आए हों, गायों के अच्छे दिन आ चुके हैं.

माना कि स्वच्छ भारत होने के बाद भी खाने में पॉलिथीन की थैलियों के अनुपात में खास कमी नहीं आई है. माना कि सूखे में चारे से पानी तक, हर चीज के लाले हैं. माना कि अभी तक ‘राष्ट्रमाता’ का दर्जा भी नहीं मिला है. पर जो पिछले साठ साल में नहीं हुआ, वह तो हो रहा है. आए दिन गाय बचाने के नारे पर इंसान मारे जा रहे हैं, जेलों में डाले जा रहे हैं.

गोपूजा में नरबलि-इंसानों के न सही, पर गायों के इससे अच्छे दिन और क्या होंगे! जरूर अच्छे दिन लाने के लिए कृतज्ञता जताने और अच्छे दिन लाने वाली सरकार की दूसरी सालगिरह का जश्न मनाने के लिए नीलगाय, संसद के इलाके में पहुंची होगी. पर मिस-अंडरस्टेंड हो गई. जरा सी समारोही धमा-चौकड़ी क्या की, वीआइपी समारोहियों की सुरक्षा वालों ने उसे खतरा बना दिया. बेचारी को जंगल वालों के हवाले कर के ही चैन लिया.

बेचारी कहती ही रह गई कि जंगल वाले खुशी मनाने कहां जाएं! जंगल में तो मोर का नाच भी कोई नहीं देखता है. बिना टीवी चैनल के खुशी मनाना भी कोई खुशी मनाना है, लल्लू! खैर; विरोधियों को तो बैठे-बिठाए इसके ताने देने का मौका मिल ही गया कि बाकी चीजों की तरह इनका गाय-प्रेम भी बातों का ही है. वर्ना दूसरी सालगिरह पर राजपथ पर गाय पर ऐसे पुलिसिया डंडे न बरसते.

बेचारे सालगिरह मनाने वाले अब इसकी सफाई देते फिर रहे हैं कि राजपथ पर पहुंची वह तो नाम की ही गाय थी. कहां बेचारी पालतू गोमाता और कहां जंगली नीलगाय! पता नहीं गोवंश में भी आती है या नहीं. वर्ना इतनी तो अक्ल होती कि सालगिरह का समारोह इस बार राजपथ पर नहीं, सहारनपुर से शुरू होगा. अगला चुनाव यूपी का जो है. बिना चुनाव की जगह पर सालगिरह पर नाचे तो, पब्लिक का देखा और नहीं देखा सब बराबर.

कबीरदास


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