द्रमुक की हार की वजह

Last Updated 27 May 2016 05:50:00 AM IST

दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में असेंबली चुनाव में अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जे. जयललिता ने चक्रीय अंदाज में होने वाले द्रविड़ पार्टियों द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच 1989 से चले आ रहे हार-जीत के र्ढे को तोड़ कर ऐतिहासिक संघर्ष में विजय हासिल की है.


द्रमुक की हार की वजह

लेकिन उभरते सूरज, द्रमुक का चुनाव चिह्न, के प्रदर्शन को कम करके नहीं आंका जा सकता. पहली दफा हुआ कि चुनाव अभियान की बागडोर अकेले दम द्रमुक सुप्रीमो एम करुणानिधि के प्रतिभाशाली पुत्र एमके स्टालिन ने संभाली जिन्होंने सुनिश्चित किया कि पार्टी, टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद जिसकी लोकप्रियता खासी गिर चुकी थी, फिर से प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी के रूप में मजबूत होकर उभरे जिसके पास कभी लोक सभा की 39 तथा विधान सभा की 234 सीटें थीं. स्टालिन ने अब स्वयं को द्रमुक के निर्विवाद नेता के रूप में साबित कर दिया है. हालांकि इस दौरान उनके अपने भाई-बहनों से मतभेद भी रहे. लेकिन वह द्रविड़ आंदोलन के एकमात्र जीवित संस्थापक और क्षेत्रीय राजनीति के पुरोधा अपने 93 वर्षीय पिता एम करुणानिधि से पार्टी पर पूरा नियंत्रण पाने में सफल रहे.

असेंबली चुनाव के जो नतीजे आए हैं, उनसे द्रमुक, जिसे 2011 के चुनाव में बुरी तरह से पराजित होना पड़ा था, की उपलब्धियों को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए. इस बार वह सत्ता झटकने के करीब पहुंच गई थी. लेकिन तमिलनाडु के तटीय इलाकों में नव वर्ष से पूर्व आई भारी बारिश और बाढ़ से उपजा असंतोष तथा प्रतिष्ठान-विरोधी लहर अपना काम न कर सके. चुनाव में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं था, क्योंकि राज्य में बीते करीब पचास वर्षो से चले आ रहे द्रविड़ शासन के दौरान द्रमुक और अन्नाद्रमुक, दोनों ने भ्रष्टाचार को सांस्थानिक रूप दे डाला है. तमिलनाडु के लोगों को इसकी आदत हो गई है क्योंकि उनका राज्य देश में अच्छे से शासित कुछ प्रमुख राज्यों में शुमार किया जाता है.

चेन्नई की बाढ़ से निबटने में सरकार थोड़ा शिथिलजरूर रही लेकिन बाद में प्रशासन ने बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने में खासी चुस्ती दिखाई. इससे उनमें अम्मा के प्रति जो असंतोष था, वह काफूर हो गया. और उन्होंने उन्हें दोबारा सत्ता पर आसीन करने के मद्देनजर वोट दिया. उन्हें लगा कि दोनों द्रविड़ पार्टियों में अन्नाद्रमुक बेहतर है. देश में द्रमुक प्रथम क्षेत्रीय पार्टी है, जो सत्ता पर आरूढ़ हुई. वर्ष 1967 में वह सत्ता पर काबिज हुई. उससे पहले तक कोई अन्य क्षेत्रीय दल किसी भी राज्य में सत्ता तक नहीं पहुंच पाया था.

द्रमुक जिन नकारात्मक कारकों से जूझती रही है, उनमें से एक पार्टी पर करुणानिधि परिवार का वर्चस्व है. परिवारवादी राजनीति ने पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं तक को नाखुश कर दिया है. स्टालिन के ज्यादा प्रभावी होने के चलते उन्हें किनारे कर दिया गया है. स्टालिन ने पार्टी को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेने के लिए अपने लोगों को महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया  है. हालांकि इस चुनाव में स्टालिन के बड़े भाई अजागिरी ने खुल्लमखुल्ला उनका विरोध नहीं किया था. लेकिन ऐसी खबरें हैं जिनसे पता चलता है कि उन्होंने पूरे मन से पार्टी के चुनाव अभियान में काम नहीं किया. अजागिरी का राज्य के दक्षिणी  जिलों के कार्यकर्ताओं पर खासा प्रभाव है. स्टालिन की सौतेली बहन कनिमोझी,  जो राज्य सभा सदस्य हैं, ने भी पार्टी की जीत के लिए कड़ी मेहनत की लेकिन उनकी भाव-भंगिमा से लग रहा था कि वह पार्टी में करुणानिधि के बाद स्टालिन के निर्विवाद नेता के रूप में उभरने से खुश नहीं थीं.  

द्रमुक-कांगेस गठजोड़ को अन्नाद्रमुक की 134  सीटों के मुकाबले 98 सीटों पर विजय हासिल हुई है. अन्नाद्रमुक के साथ कोई प्रमुख गठबंधन नहीं था. स्टालिन द्वारा सभी 234 सीटों  पर जोरदार अभियान के बावजूद द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन को कोई फायदा नहीं मिल पाया. वह भी उस सूरत में जब जयललिता सरकार के प्रति लोगों में खासा असंतोष भी था. दरअसल, द्रमुक सांगठनिक दिक्कतों से जूझ रही थी. न केवल यह बल्कि स्टालिन के पार्टी के मामलों में सव्रेसर्वा बनने जैसी बातें भी सतह पर आ गई थीं. यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि चुनाव से पूर्व करुणानिधि को घोषणा करनी पड़ी थी कि मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी की ओर से वही उम्मीदवार हैं. अगर ऐसा होता तो वह देश में सबसे ज्यादा आयु में मुख्यमंत्री बनने वाले नेता होते.

फिर, द्रमुक के साथ यह आरोप भी चस्पा हो गया था कि उसने देश में तेजी से उतार की ओर बढ़ रही और सर्वाधिक भ्रष्ट पार्टी कांग्रेस के साथ गठजोड़ किया है. उसी कांग्रेस के साथ जिसने परिवारवादी राजनीति को पाला-पोसा है. कांग्रेस को श्रीलंका में सिविल वॉर के दौरान तमिलों के बड़े पैमाने पर संहार के लिए भी दोषी माना जाता रहा है. द्रमुक ने जयललिता पर आरोप लगाया था कि वह चुनाव जीतने के लिए धनशक्ति का इस्तेमाल कर रही हैं. हालांकि यही आरोप द्रमुक पर भी फिट बैठता है. द्रमुक भी कोई कम भ्रष्ट नहीं है. चुनाव जीतने के लिए धनबल और बाहूबल का इस्तेमाल करने से भी  गुरेज नहीं करती.

बहरहाल, इस चुनाव में द्रमुक और अन्नाद्रमुक के तमाम गुटों, कांग्रेस और एमडीएमके और पीएमके जैसी  नई उभरीं द्रविड़ पार्टियों को खासी शिकस्त मिली है. चुनाव से यह बात फिर से साफ हो गई है कि तमिलनाडु की राजनीति में द्रमुक और अन्नाद्रमुक ही प्रमुख द्रविड़ पार्टियां  रहनी हैं.  कांग्रेस, जो 1967 में राज्य की राजनीति से बेदखल हो गई थी, इस  चुनाव में और हाशिये की ओर बढ़ गई है. भाजपा ने बिना किसी  को साथ लिए अकेले दम चुनाव लड़ा था. लेकिन पार्टी ने मत प्रतिशत के लिहाज से कुछ बढ़त जरूर दिखलाई है लेकिन सीटों की बढ़ती संख्या के रूप में उसे कुछ हासिल होता नहीं दिख रहा. अलबत्ता, जयललिता के साथ उसके समीकरणों के चलते लगता है कि 2019 के लोक सभा चुनाव में पार्टी कुछ बेहतर प्रदर्शन करे.

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, डीएमके को तमिलनाडु में  छिड़े जस्टिस आंदोलन से उभरा माना जाता है. ‘द्रविड़ियन प्रोग्रेस फेडरेशन’ नाम से स्व. सीएन अन्नादुरै ने 1949 में एक संगठन की नींव डाली थी. यह संगठन पेरियार अन्नादुरै (ईवी रामास्वामी नाइकर के नेतृत्व वाले द्रविड़ कड़गम (जिसे 1944 तक जस्टिस पार्टी  के रूप में जाना जाता था) से अलग होकर वजूद में आया था. अन्नादुरै राज्य के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे, जिनका 1969 में देहांत हो गया था. और उसके बाद डीएमके का नेतृत्व मुथेवल करुणानिधि को सौंपा गया. द्रमुक तमिलनाडु की राजनीति के पुरोधा माने जाते हैं. पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उन्हें जुझारू नेता के रूप में जाना जाता है.

अब यह देखा जाना है कि उनके पुत्र स्टालिन आने वाले वर्षो में किस प्रकार से तमिलनाडु की राजनीति में द्रमुक की शान को बनाए रख पाएंगे. लेकिन इस बार के चुनावी नतीजों ने  यह बात भी स्पष्ट कर दी है कि स्टालिन अभी जयललिता का मुकाबला करने के लिए पूरी से तैयार नहीं हैं. लेकिन यह  बात दावे   के साथ कही जा सकती है कि उन्होंने देश की क्षेत्रीय राजनीति में क्षेत्रीय नेता के रूप में अपने आगमन का इस चुनाव में अहसास करा दिया है. इतना जरूर है कि पारिवारिक कलह से पार पा लेने के पश्चात उनके लिए रास्ते साजगार हो चलेंगे.

केआर सुधामन
वरिष्ठ पत्रकार


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