परिधि : नस्ली सोच की टीस
पिछले दिनों दिल्ली में अफ्रीकी देश कांगों के एक नागरिक की हत्या कर दी गई.
परिधि : नस्ली सोच की टीस |
मामले को तूल पकड़ता देख विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भारत में अफ्रीका के नागरिकों की सुरक्षा के संबंध में बयान जारी करना पड़ा. दरअसल, इस घटना को अफ्रीकी देश एक नस्लीय हमले के तौर पर देख रहे हैं.
एक ओर जहां अफ्रीकी राजदूतों ने हम पर ‘अफ्रीकी फोबिया’ से ग्रस्त होने का आरोप जड़ा है, वहीं सरकार इसे नस्लीय हमला मानने से इनकार कर रही है. दिल्ली के ही मालवीय नगर इलाके में 2014 में दिल्ली सरकार के मंत्री का गैरजिम्मेदाराना रवैया हर किसी के जेहन में है.
पहले झटके में तो हम ये मानने से एकदम मुकर जाएंगे कि हमारा समाज भी बेहद गहरे तक नस्लीय भेदभाव से भरा हुआ है. विशेषकर दलितों के प्रति हमारे समाज की सोच क्या है, यह भी जगगाहिर है. अफ्रीकी नागरिकों को लेकर भी कुछ गलतफहमी है, जैसे मादक पदाथरे की तस्करी और देह व्यापार से जुड़ा होना. हालांकि, यह आंशिक तौर पर ही सच है. लेकिन किसी एक व्यक्ति का गलत काम पूरे समाज को प्रतिबिंबित नहीं करता है.
इसी तरह हमारे ही देश के सुदूर उत्तर-पूर्व के नागरिकों को ‘चिंकी’ कहकर चिढ़ाना भी हमारी विकृत सोच को परिलिक्षित करता है. अफ्रीकी नागरिकों के संदर्भ में यही कुछ पूर्वाग्रह हैं, जो खत्म नहीं हो रहे हैं. कुछ अर्सा पहले भारतीय टीम आस्ट्रेलिया दौरे पर थी, हरभजन सिंह के साथ मैदान में हुई नस्लीय टिप्पणी पर सारा देश उबाल खा गया. लेकिन जब आत्मविवेचना की बात आती है, तो हम बंगले झांकने लगते हैं. हम नस्ली तौर पर किस कदर हीन भावना से घिरे हुए हैं, इसका अंदाजा भारत में ‘गोरा’ बनने-बनाने के कारोबार से लगाया जा सकता है.
अफ्रीका आज एक बड़ा बाजार है, जहां चीन हमसे पहले ही कई कदम आगे है, भारत में अफ्रीकी देशों से एक बड़ा तबका पढ़ाई और स्वास्थ्य सेवाओं के सिलसिले में आता है. अफ्रीकी देशों से भारत का करीब 10 बिलियन का व्यापार ऐसी घटना से रसातल में जा सकता है. ऐसी घटनाएं जहां वैश्विक स्तर पर हमारी छवि को धक्का पहुंचाएंगी, वहीं एक बड़े बाजार को खोने के साथ अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाएंगे. किसी शायर की पंक्ति है-लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई.
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