जयललिता ने रचा इतिहास

Last Updated 26 May 2016 05:52:08 AM IST

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इतिहास रच दिया है, क्योंकि उन्होंने सत्ता अपने हाथों से फिसलने नहीं दी है.




जयललिता ने रचा इतिहास

उनकी सरकार लगातार दूसरे कार्यकाल में प्रवेश कर गई है. हालांकि उनकी सीटों में कमी जरूर आई है. वर्ष 2011 में हुए असेंबली चुनाव में उनकी पार्टी ने 150 सीटें जीती थीं, वहीं इस बार 124 सीटें जीती हैं. कहा जा सकता है कि उनके लिए इस बार राह जरा मुश्किल भरी रहनी है. उनकी कट्टर विरोधी द्रमुक, जिसका नेतृत्व 92 वर्षीय वयोवृद्ध नेता एम करुणानिधि कर रहे हैं, ने 92 सीटें जीती हैं. करुणानिधि अपनी सीट जीत चुके हैं. जयललिता, जो अम्मा के रूप में लोकप्रिय हैं, को आने वाले समय में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा. लेकिन असल में महत्त्वपूर्ण बात यह  है कि करीब-करीब सभी एक्जिट पोल्स ने द्रमुक की संभावनाएं उज्ज्वल बताई थीं. द्रमुक के जीतने का कयास लगाया था, लेकिन तमाम कयासबाजी पूरी तरह गलत साबित हुई हैं.

बहुकोणीय मुकाबलों ने बदला मंजर
बेशक, जयललिता को यह कार्यकाल चुनावी संघर्ष के बहुकोणीय होने के कारण मिला है. उनके पूर्व सहयोगी एमडीएमके के विजयकांत छिटक कर पिपुल्स वेल्फेयर ग्रुप के नाम से वामपंथी दलों और वाइको के साथ मिलकर बने तीसरे  मोच्रे में शामिल हो गए थे. नतीजतन, उनका खाता तक नहीं खुल पाया. डॉ. अम्बुमनि के नेतृत्व वाली पीएमके अकेली मैदान में थी. इसी प्रकार भाजपा भी अकेले लड़ी. जयललिता की जीत से साबित होता है कि उनका करिश्मा बरकरार है. बाढ़ की आपदा का अच्छे से सामना नहीं करने तथा समय से राहत नहीं पहुंचाने जैसे उनकी सरकार पर द्रमुक द्वारा लगाए गए आरोपों समेत तमाम आक्रामक नकारात्मक अभियान पर जयललिता की कल्याण योजनाएं भारी पड़ीं. 

जया के जोरदार प्रयास
जयललिता, जो जन्मना कन्निडगा हैं, ने 1980 के दशक में तमिलनाडु की राजनीति में प्रवेश किया था. उससे पूर्व वह तमिल फिल्म उद्योग की लोकप्रिय अभिनेत्री थीं. खराब स्वास्थ्य संबंधी खबरों के बावजूद 68 वर्षीया नेता ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करती हैं. ऐसा  2011 तक नहीं था, जब उनकी पार्टी ने राज्य की 234 विधान सभा सीटों में से 150 पर जीत हासिल की थी. इसके बावजूद पिछले वर्ष राज्य खासकर चेन्नई में भीषण बाढ़ के कारण सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक की लोकप्रियता में मामूली कमी जरूर आई. तो भी मुख्यमंत्री ने बाढ़ प्रभावित लोगों तक बड़े स्तर पर सहायता पहुंचाने में शिथिलता नहीं आने दी. अपनी पार्टी की चुनावी संभावनाओं को ज्यादा नुकसान नहीं होने दिया.

हालांकि मध्यम वर्ग बाढ़ राहत कार्यों से कोई ज्यादा खुश नहीं था, लेकिन राज्य सरकार ने निम्न वगरे पर ज्यादा ध्यान दिया. यही तबके हैं, जो वोट बैंक का बड़ा हिस्सा हैं. इसके साथ ही, सरकार ने ऐसे मौके पर शुरू हो जाने वाली कानाफुसी को भी मजबूती के साथ थाम दिया. द्रमुक को नुकसान पहुंचाने वाला एक प्रमुख कारण पार्टी के भीतर पारिवारिक विवाद भी रहा. हालांकि पार्टी के  पुरोधा एम करुणानिधि ने अपनी राजनीतिक कुशाग्रता के बल पर कांग्रेस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) को अपने साथ लाने में कामयाबी पा ली थी, लेकिन आपस में लड़ते-झगड़ते पुत्रों-स्टालिन और अजागिरी-को नहीं समझा पाए. इसका पार्टी को खासा खमियाजा भुगतना पड़ा है.

चुनावी नतीजों को देखने से पता चलता है कि द्रमुक ने 2011 की तुलना में खासा बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन वह राज्य में सरकार विरोधी लहर (एंटी-इंकम्बेंसी) का फायदा नहीं उठा पाई. सीपीआई (एम) की पहल पर बनाए गए तीसरे मोच्रे पीडब्ल्यूएफ में कुशल नेतृत्व की कमी या अपने वजूद को तार्किक ठहराने वाली ठोस दूरदृष्टि भरी आस्ति का अभाव रहा. हालांकि नवम्बर और दिसम्बर में भारी बारिश और भीषण बाढ़ ने जयललिता सरकार की नाकामी जाहिर कर दी थी, और इन आपदाओं से निबटने तथा प्रभावित  लोगों तक राहत पहुंचाने के कमजोर प्रयासों, दोनों ही लिहाज से यह नाकामी दिखलाई पड़ी थी, तो भी मुख्यमंत्री ने गरीब से गरीब तबकों तक राहत मुहैया कराके अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी. चेन्नई तथा राज्य के अन्य उत्तरी जिलों में बाढ़ के बाद लोग बेघर हो गए थे, और ऐसे आरोप भी लगे थे कि राज्य सरकार द्वारा चिदाम्बरमबक्कम जलाश्य की अच्छे से बंदोबस्ती नहीं किए जाने से राज्य के लोगों को बाढ़-पानी की विभीषिका को झेलना पड़ा.

चुनावी जीत की जमीन की तैयार
लेकिन कुछेक महीनों के भीतर फिर से हवा जयललिता और उनकी सरकार के पक्ष में बहने लगी क्योंकि उन्होंने राहत कार्यों तथा बाढ़ पीड़ितों के लिए सीधे नकद हस्तांतरण जैसे उपायों से अपनी चुनावी जीत की जमीन तैयार कर दी थी. विडम्बना है कि बेहद तेजी से जयललिता की छवि धूमिल करने वाली इन घटनाओं से भी द्रमुक को फायदा नहीं हो सका क्योंकि चुनाव में द्रमुक के पक्ष में कोई लहर नहीं चल पाई. चुनाव की एक  विशेषता यह भी रही कि द्रमुक सुप्रीमो एम करुणानिधि ने अपना 13वां विधान सभा चुनाव जीता है. इस बार वह थिरुवरूर विधान सभा सीट से 68 हजार मतों के सर्वाधिक अंतर से जीते हैं. इस सीट से लगातार दूसरी बार विजयी हुए हैं. इस बार पहली दफा होगा कि विधान सभा में कम्युनिस्ट दिखलाई नहीं पड़ेंगे क्योंकि असेंबली चुनाव में वामपंथी पार्टियों का सफाया हो गया है. डीएमडीके नेता कैप्टन विजयकांत के हाथ खाली रह गए लेकिन उन्हें 7 प्रतिशत मत प्रतिशत हासिल हुआ है. रोचक बात यह कि पीएमके को जहां 6 प्रतिशत मत हासिल हुए हैं, वहीं उसे तीन सीटें भी मिल गई हैं, जबकि विजयकांत अपने मत प्रतिशत को सीटों में तब्दील करने में नाकाम रहे.

जयललिता की कारगर रणनीति
चुनाव विश्लेषकों का दावा है कि जयललिता ने कारगर रणनीति अपनाते हुए किसी के साथ खासकर भाजपा के साथ गठबंधन नहीं किया जो 232 असेंबली सीटों पर अपनी जमानत तक गंवा बैठी है. इसके अलावा, द्रमुक और डीएमडीके ने एक बड़ी भूल यह की कि उन्होंने परस्पर गठबंधन नहीं किया. अपने सात प्रतिशत मत हिस्से के बल पर डीएमडीके, द्रमुक के पक्ष में खासी सीटों को ला सकती थी. अकेले चुनाव लड़कर डीएमडीके के  मुखिया को न केवल खुद हार का मुंह देखना पड़ा बल्कि उनकी पार्टी ने द्रमुक के मतों में भी सेंध लगा दी. बहरहाल, जयललिता और उनकी कल्याण योजनाओं का करिश्मा ही रहा जो  वह सरकार बनाने के लिए जरूरी अपने जनाधार और सीटों को बचाए रख सकीं. वह पहले से जानती थीं कि वह जीत रही हैं. इस बात को भी कि इस बार उनकी सीटें जरूरी कम होंगी. लेकिन इस बार उन्हें अच्छा शासन देना होगा और विपक्ष के तीखे विरोध से भी सतर्क रहना होगा.

श्रीकृष्ण
वरिष्ठ पत्रकार


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