कार डिजाइन : खामियों से बढ़ता खतरा

Last Updated 26 May 2016 05:38:01 AM IST

देश में अव्वल नम्बर पर बिकनेवाली इन कारों में-उदाहरण के तौर पर रेनॉल्ट की क्विड, हुंडई की इआन, मारुति सुजुकी की सेलेरियो-क्या समानता की जा सकती है?


कार डिजाइन : खामियों से बढ़ता खतरा

यह सभी कारें वैश्विक सेफ्टी वॉचडॉग अर्थात जो कार की सुरक्षा को सुनिचित करने के लिए बनी वाचडॉग एजेंसी लंदन स्थित ग्लोबल न्यू कार एसेसमेण्ट प्रोग्राम (एनसीएपी) द्वारा संचालित परीक्षणों मे फेल हुई हैं. पिछले दिनों एनसीएपी की तरफ से जारी बयान में बताया गया कि भारत के पांच माडल्स-जिनमें महिंद्रा एंड महिंद्रा की स्कार्पियो और मारुति सुजुकी की ईको मिनीवैन भी शामिल  है-यह सभी उसके द्वारा आयोजित परीक्षणों में फेल हुए हैं.

एक ऐसे समय में जब संयुक्त राष्ट्रसंघ की तरफ से सड़क सुरक्षा के लिए निर्धारित दशक (2011-2020) मनाया जा रहा है और उन्हें किस तरह अधिकाधिक सुरक्षित किया जाए इस पर बात चल रही है, भारत-जो दुनिया के कारों के बाजार में छठे नंबर पर है-से आ रही यह बुरी खबर वास्तविकता का एहसास करा देती है. ग्लोबल न्यू कार एसेसमेंट प्रोग्राम (एनसीएपी) द्वारा अंजाम दिए गए परीक्षणों में उजागर हुआ है कि या तो इन कारों की बुनियादी संरचना में कुछ समस्या है या उनमें एअर बैग्ज की कमी है कि यह कारें टकराव की स्थिति में अंदर स्थित चालक या अन्य लोगों को खतरनाक चोटें पहुंचा सकती हैं. उसके मुताबिक यहां कारों के अग्रणी ब्रांडों के निर्माण में सुरक्षा मानकों का ध्यान नहीं रखा गया है, यहां तक कि दुर्घटना की स्थिति में या कहीं टकराए जाने की स्थिति में अंदर बैठे व्यक्ति को गंभीर चोटें लगने या उसके जान जाने की भीैआशंका है.

दिलचस्प है इन्हीं कारों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिकने वाले माडल्स को देखें तो वह परीक्षणों में सुरक्षित पाए गए हैं. इसका मतलब क्या वहीं कार निर्माता भारत की सड़कों पर बिकनेवाली कारों के निर्माण में सुरक्षा का कम ध्यान रखता है और बाहर भेजी जानेवाली कारों में अधिक ध्यान रखता है. इस बात को मद्देनजर रखते हुए कि भारत की सड़कें दुनिया में सबसे खतरनाक समझी जाती है, जहां हर साल एक लाख चालीस हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में ही मरते हैं, यह खबर अधिक चिंता पैदा करती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रोड सेफ्टी रिपोर्ट के मुताबिक यहां दुर्घटना की दर अमेरिका की तुलना में छह गुना ज्यादा है जबकि चीन की तुलना में तीन गुना अधिक है. कहने का तात्पर्य यह है कि दुनिया भर में सड़क दुर्घटनाओं में मरनेवाले हर दस लोगों में एक भारतीय होता है. वैसे यह कोई पहली दफा नहीं है जब एनसीएपी की तरफ से भारत की कारों का परीक्षण हुआ है और उनके मॉडल फिसड्डी साबित हुए हैं. दो साल पहले अपने परीक्षणों को अंजाम देने के लिए ग्लोबल एनसीएपी ने भारत की सड़कों पर लोकप्रिय-टाटा नैनो, हुंडई, मारुति सुजुकी, फोर्ड फिगो और फॉक्सवैगन-इन कम्पनियों के एक विशिष्ट मॉडल के कार के दो-दो नमूने कार शो रूम से मंगवाएं और उन्हें जर्मनी की प्रयोगाला में भेजा.

और इन पांचों कारों का दो अलग-अलग रफ्तार पर परीक्षण किया गया.
अगर पहला परीक्षण 56 किलोमीटर प्रति घंटा के हिसाब से किया गया तो दूसरा परीक्षण 64 किलोमीटर प्रति घंटा के हिसाब से किया गया, जिसमें यह जांचने की कोशिश की गयी कि यह कारें कितने टकराव को झेल सकती है. रेखांकित करनेवाली बात यह है कि सभी पांचों मॉडल इन परीक्षणों में फेल हुए. इस मामले में बहुत सस्ती कही गई कार सबसे असुरक्षित दिखी है. ग्लोबल एनसीएपी के प्रमुख डेविड वार्ड ने उन दिनों पत्रकारों को बताया था कि यह एक तरह से भारत के कार उद्योग पर अभियोग पत्र है कि जहां की सड़कें दुनिया में सबसे खतरनाक श्रेणियों में शुमार की जाती हैं. ध्यान रहे कि यूं तो कार/वाहन निर्माण करनेवाले तमाम मुल्कों ने सुरक्षा के अपने अपने मानक तैयार किए हैं, मगर धीरे-धीरे संयुक्त राष्ट्रसंघ की पहल पर कुछ वैश्विक नियमन बनाने की भी कोशिश चलती रही है.

उदाहरण के तौर पर यूनाइटेड नेशन्स वर्ल्ड फोरम फार हार्मनायजेशन आफ वेइकल रेगुलेशन्स के अंतर्गत दो लीगल इन्स्टुमेंट के जरिए इसे अंजाम दिया गया है. इस संदर्भ एक करार 1958 में हुआ था जिसमें 48 मुल्कों ने दस्तखत किए थे तो दूसरा करार 1998 में हुआ था जिसमें वैश्विक तकनीकी नियमनों पर मुहर लगी थी, जिस पर 31 मुल्कों ने हस्ताक्षर किए थे. मालूम हो कि 1998 के करार पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं.

सुभाष गाताडे
लेखक


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