भारत-ईरान : संबंधों में चाबहार

Last Updated 25 May 2016 04:43:36 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईरान की यात्रा की शुरुआत करने समय कहा कि इसे लेकर अटकलें न लगाएं, किंतु हमें हमारे संबंधों के इतिहास में एक नये अध्याय की शुरुआत और हमारी व्यापक सामरिक भागीदारी में एक नए आयाम का पूरा भरोसा है.


भारत-ईरान : संबंधों में चाबहार

गहराई से देखने पर साफ हो जाता है कि मोदी ने जो कुछ कहा था, परिणाम ठीक वैसे ही आया है. यह बात ठीक है कि चाबहार बंदरगाह समझौता इसमें काफी महत्त्वपूर्ण है और इसकी चर्चा सबसे ज्यादा होना भी अस्वाभाविक नहीं है. लेकिन यह समझौता अपने आप में ईरान का भारत पर विश्वास और उसके साथ लंबे और स्थायी व्यापारिक-आर्थिक एवं सामरिक भागीदारी की चाहत को प्रमाणित करता है.

आखिर, कोई देश यों ही तो अपना बंदरगाह विकसित करने के लिए किसी को नहीं दे सकता. यही नहीं, वह वहां से सड़क और रेल मार्ग बनाने की अनुमति भी दे रहा है तो यह भारत पर उसके विश्वास और स्थायी साझेदारी विकसित करने की चाहत की ही तो परिणति मानी जाएगी. आखिर जब पिछले जनवरी में चीन के राष्ट्रपति शि जिनपिंग वहां गए थे, वह उन्हें भी इसका प्रस्ताव दे सकता था. चीन इसे खुशी से स्वीकार करता. वह बगल में पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह विकसित करके वहां अपना पांव जमा ही चुका है. उसके लिए यह दूसरी रणनीतिक उपलब्धि होती. किंतु ऐसा नहीं हुआ तो इसके कुछ ठोस कारण हैं और यही भारत ईरान संबंधों की महत्ता को दर्शाता है.

चाबहार समझौते के तहत भारत बंदरगाह और संबंधित आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए 3376 करोड़ रु पये मुहैया कराएगा. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भी कि इस समझौते का तेजी से कार्यान्वयन करने के लिए दोनों देश प्रतिबद्ध हैं. मोदी ने कहा कि इससे आज इतिहास निर्माण हुआ है. दोनों देशों ने इस समझौते को अंग्रेजी में गेम चेंजर यानी क्षेत्र का परिदृश्य बदलने वाला करार दिया. ध्यान रखिए इस समझौते के दौरान अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भी वहां मौजूद थे. यह महत्त्वपूर्ण है. यह त्रिपक्षीय समझौता हो गया. जिसमें भारत बंदरगाह के साथ वहां से करीब कई सौ कि.मी. की रेल और सड़क मार्ग विकसित करेगा. करीब 200 कि.मी.मार्ग भारत अफगानिस्तान के सहयोग से पहले ही विकसित कर चुका है. इसके बाद इसकी महत्ता को समझने में समस्या नहीं होगी. इसका एक महत्त्व तो चीन और पाकिस्तान को जवाब के तौर पर देखा जा रहा है. ग्वादर यदि पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है तो चाबहार ईरान के बलूचिस्तान में.

भारत के कांडला बंदरगाह से चाबहार की दूरी मुंबई और दिल्ली के इतना ही है. वस्तुत: चाबहार बंदरगाह के तैयार हो जाने के बाद भारत और ईरान के जहाजों को पाकिस्तान की ओर से नहीं जाना पड़ेगा. इससे भारत के जहाज सीधे अफगानिस्तान पहुंच सकेंगे. कहने की आवश्यकता नहीं कि ईरान और अफगानिस्तान तक सीधी पहुंच से भारत आर्थिक एवं सामरिक हर दृष्टि से उस क्षेत्र में काफी मजबूत हो जाएगा. पाकिस्तान ने आज तक भारत के उत्पादों को सीधे अफगानिस्तान और उससे आगे जाने की इजाजत नहीं दी है. इसके बाद हमें उसकी किसी प्रकार आवश्यकता नहीं होगी. हमारे लिए इससे पूरा पश्चिम एशिया तथा मध्य एशिया से लेकर रूस एवं यूरोप तक आने-जाने का सीधा मार्ग मिल गया है. इस तरह चाबहार बंदरगाह समझौता पाकिस्तान और चीन को भारत का करारा जवाब मान लेने में कोई हर्ज नहीं है. वैसे तो यह समझौता 2015 में ही हो जाता, लेकिन ऐसा हो न सका. अगर प्रधानमंत्री ने ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह समझौते को मील का पत्थर कहा तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है.

अगर हम शुद्ध आर्थिक एवं व्यापारिक आधार पर विचार करें तो करीब 3000 करोड़ रुपये कर्ज स्टील निर्यात और उसे स्थापित करने के लिए एक्जिम बैंक देगा. करीब 10.10 अरब का कर्ज भारत का एक्सिस बैंक उपलब्ध कराएगा. 20 करोड़ डॉलर यानी करीब 13.48 अरब रुपया का निवेश मिर्नल और कार्गो बर्थ तैयार करने में होगा. अनुमान है कि करीब 1 लाख करोड़ रुपया का निवेश चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र में भारत कर सकता है. 8.5 करोड़ डॉलर यानी 5.73 अरब रुपये का निवेश दो कंटेनर गोदी और तीन मालवाहक गोदी के निर्माण पर खर्च होगा. चाबहार मुक्त व्यापार क्षेत्र में अगर यूरिया उत्पादन ईकाइयां लगतीं हैं तो सस्ती गैस उपलब्ध होने से सब्सिडी में काफी बचत होगी.

मोदी की विदेश नीति का एक पहलू है कि वह इसे संवेदना और भावना के स्तर पर ले जाते हैं, अतीत से जोड़ते हैं तथा इसके सांस्कृतिक पहलू को पूरा महत्त्व देते हैं. उन्होंने कहा कि मैं इस बात को कभी नहीं भूल सकता कि मेरे गृह राज्य  गुजरात में जब भूकंप आया तो मदद के लिए आगे आना वाला पहला देश ईरान ही था. मोदी ने ईरान के सर्वप्रमुख नेता अयातुल्लाह अली खमैनी को सातवीं सदी की कुरान भेंट की. राष्ट्रपति रोहानी को मिर्जा गालिब के शेरों का एक संकलन तथा फारसी में अनूदित सुमैर चंद की ओर से लिखी गई रामायण की प्रति भेंट की. मोदी ने पंचतंत्र की फारसी में अनूदित पुस्तक जारी की जिसमें भारत और ईरान के बीच सांस्कृतिक संबंधों पर फोकस किया गया है. मोदी ने चाबहार में एक कार्यक्रम में अपने भाषण की शुरुआत फारसी कवि हाफेज को याद करते हुए की. इसका मतलब था कि जुदाई के दिन खत्म हो गए, इंतजार की रात खत्म हो रही है, हमारी दोस्ती हमेशा बरकरार रहेगी.

अवधेश कुमार
लेखक


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