जन-मन को पढ़ नहीं पाए वामपंथी

Last Updated 25 May 2016 04:30:46 AM IST

नतीजा आने से पहले दिन तक वाम-कांग्रेस गठजोड़ के नेता दावा कर रहे थे कि ममता बनर्जी सरकार से बाहर जा रही हैं.


जन-मन को पढ़ नहीं पाए वामपंथी

यानी उनकी सरकार बनने जा रही है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जन-मन को पढ़ने में नाकाम रहे वामपंथी दल और इनके नेता. हालांकि एग्जिट पोल्स के आभासी नतीजों में तृणमूल कांग्रेस को बढ़त मिल रही थी. पर साथ ही साथ विपक्ष की हालत में सुधार की बात भी बताई जा रही थी. गौरतलब यह कि 200 या इससे ज्यादा सीटें किसी पक्ष को मिल सकती हैं, यह कयास एकाध सर्वे में ही था. लेकिन सत्ताधारी दल को 215 सीटें मिल गई. 294 वाली विधान सभा की बाकी सीटें विपक्षी दलों को मिलीं. इनमें पहली बार चार सीटें भाजपा के खाते में गई.

बावजूद हिंसा, धमकियों, आगजनी, तोड़फोड़, भ्रष्टाचार के लगातार लग रहे आरोपों के और इस बार के चुनाव के दौरान सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजामों के बाद भी विपक्ष को कोई खास लाभ नहीं हुआ. वाम-कांग्रेस गठजोड़ को कुल 72 सीटें मिली हैं. इनमें 30 वामदलों को और 42 कांग्रेस को मिली हैं. जाहिर है कि वाम से ज्यादा कांग्रेस फायदे में है. नतीजे का यह साफ संकेत हैं कि गठजोड़ के अभाव में तृणमूल इन्हें अपनी घोषणा के मुताबिक साइन बोर्ड में तब्दील कर देती.

यह ध्यान में रखने की बात कि पिछले चुनाव में तृणमूल के साथ कांग्रेस का तालमेल था. तब तृणमूल को 188 और कांग्रेस को 42 सीटें यानी कुल 230 सीटें मिली थीं. वाम मोर्चा को 62 सीटें. इस तथ्य को ध्यान में रख कर यह उम्मीद की जा रही थी कि नए गठजोड़ से हालत में सुधार होगी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. कुशासन, शारदा चिटफंड घोटाला, नारद स्टिंग ऑपरेशन, जिसमें तृणमूल के नेताओं, मंत्रियों को घूस लेते दिखाया गया था, पुल हादसा, सिंडिकेट की मनमानी आदि के बावजूद इस जीत से राजनीतिक प्रेक्षक भी हैरान हैं. सबसे ज्यादा हैरान वाम दल के नेता और उनके समर्थक हैं. वाम दलों की सीटों के साथ-साथ वोटों के फीसद में भी गिरावट आई है.

भाजपा का मत प्रतिशत गिरा
तृणमूल कांग्रेस को जहां 47 फीसद वोट मिले हैं, वहीं वाम को इस बार 27 फीसद वोट मिले हैं. कांग्रेस को कुल 11 फीसद. भारतीय जनता पार्टी को 11 फीसद वोट मिले हैं, और चार सीटें भी. हालांकि 2014 के लोक सभा चुनाव में उसे 17 फीसद वोट मिले थे. माना जाता है कि इसके बाकी के वोट तृणमूल की ओर गए हैं. इससे ममता बनर्जी की ताकत में इजाफा हुआ है.

पराजय के बाद अब वाम दल के नेताओं को लग रहा है कि कांग्रेस के वोट उस तरह उनके उम्मीदवारों को नहीं मिले, जैसे कि उनके वोट कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में पड़े. वैसे, राजनीतिक प्रेक्षकों के एक हिस्से का यह भी मानना है कि इस गठजोड़ से नाराज बहुत से कांग्रेसियों ने वाम के पक्ष में मतदान नहीं किया होगा. उनके इस अनुमान को एक बांग्ला चैनल के सर्वे से समझा जा सकता है, जिसमें बताया गया है कि 90 फीसद वाम समर्थकों ने कांग्रेस उम्मीदवारों को वोट दिया जबकि कांग्रेस के 75 फीसद वोट ही वाम प्रत्याशी के पक्ष में पड़े. चुनावी नतीजे के बाद माकपा सांसद मोहम्मद सलीम ने भी इस तरह की आशंका जताई है.

गठजोड़ की उम्मीदें उत्तर बंगाल से कुछ ज्यादा थीं, पर वहां की 76 सीटों में उसे 39 सीटें ही मिल पाई. वह भी मालदा और मुर्शिदाबाद जैसे कांग्रेसी गढ़ों के भरोसे. वाम दलों के लिए सबसे दुखद यह है कि माकपा के राज्य सचिव और विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्र चुनाव हार गए. लेकिन दूसरी तरफ सिलीगुड़ी से माकपा के बड़े नेता अशोक भट्टाचार्य और यादवपुर से सुजन चक्रवर्ती चुनाव जीत गए हैं.

राजनीति के जानकारों की राय है कि चुनाव से कम से कम एक साल पहले वाम दलों ओर कांग्रेस में जमीनी स्तर पर गठजोड़ हो गया होता तो तस्वीर कुछ और होती. प्रेक्षकों के एक हिस्से की यह राय भी है कि गठजोड़ कर वाम दलों ने भूल की है, लेकिन दूसरे हिस्से की यह राय भी है कि तब और बुरी हालत होती विपक्ष की. सूर्यकांत मिश्र ने अपनी हार को स्वीकार करते हुए कहा है कि 2014 में मिले वोट और स्थान की तुलना हमारी ताकत कम नहीं हुई है, लेकिन कुल मिला कर हम हारे हैं. हम इसकी विस्तार से इसकी समीक्षा करेंगे. कांग्रेस नेता अधीर चौधरी ने मनचाहा नतीजा नहीं मिलने की वजह को संगठन की कमजोरी माना है.

शैलेंद्र शांत
पूर्व स्थानीय संपादक, जनसत्ता


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment