आखिर असम में आ ही गई भाजपा

Last Updated 24 May 2016 05:54:16 AM IST

असम में भारतीय जनता पार्टी की जीत से पूरे भाजपा नेतृत्व को बड़ी राहत मिली है.


आखिर असम में आ ही गई भाजपा

क्योंकि दिल्ली और बिहार में करारी हार के बाद उत्तर प्रदेश चुनाव के पूर्व भाजपा को एक बड़ी जीत की तलाश थी. इसलिए भाजपा ने असम में जीत के लिए पूरी ताकत लगा दी थी.

इसके लिए उसने सभी क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया और इसमें उसे सफलता मिली. यदि असम गण परिषद (अगप) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) जैसे क्षेत्रीय दल उसके साथ नहीं आते तो भाजपा के लिए इतनी बड़ी जीत संभव नहीं थी. इस चुनाव में भले भी बीपीएफ को कोई फायदा नहीं हुआ. पिछले लोक सभा चुनाव में भी उसे 12 सीटें मिली थीं.

इस बार भी उसे इतनी ही सीटें मिली हैं, जबकि बीपीएफ के समर्थन की वजह से भाजपा को कमसे कम एक दर्जन सीटों पर लाभ हुआ. उसी तरह भाजपा के साथ दोस्ती करके अगम को कुछ फायदा हुआ. इस बार अगप को 14 सीटें मिलीं, जो पिछले विधानसभा की तुलना में चार सीटें अधिक हैं. लेकिन इसका लाभ भाजपा को भी मिला. कांग्रेस विरोधी वोट विभाजित होने से बच गए.

खास बात यह रही कि लोक सभा चुनाव की तरह इस विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने चाय बागानों में अपनी स्थिति को बहाल रखा. चाय बागानों में प्रभाव रखने वाले कांग्रेस के तमाम बड़े नेता इस बार हार गए. कांग्रेस समर्थित असम चाय मजदूर संघ के सबसे बड़े नेता पवन सिंह घाटोबार भी चुनाव हार गए. इसके साथ ही एतवा मुंडा, पृथ्वी मांझी भी चुनाव हार गए. चाय बागानों की अधिकांश सीटें भाजपा के कब्जे में चली गई. इसी से कांग्रेस का सारा समीकरण बिगड़ गया.

दरअसल, इस बार भाजपा ने भूमिपुत्र का अस्तित्व और अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के बढ़ते प्रभाव को मुख्य मुद्दा बनाया था. और इसको आगे बढ़ाने के लिए उसने असम गण परिषद, बोडोलैंड पीपुल्स पार्टी तथा दो अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया था. प्रदेश भाजपा के चुनाव व्यवस्था समिति के संयोजक डा हिमंत विश्व शर्मा कहना है कि असम की पहचान, असमिया संस्कृति की रक्षा और विकास के मसौदे के मतदाताओं ने स्वीकार कर लिया, इसलिए भाजपा गठबंधन को सत्ता की चाभी सौंप दी.

इस चुनाव में भाजपा के अकेले 61 सीटें मिली हैं, जबकि सरकार बनाने के लिए कुल 64 सीटें चाहिए. सहयोगी दल अगप को 14 और बोडोलैंड पीपुल्स प्रंट को 12 सीटें यानी भाजपा गठबंधन को कुल 87 सीटें मिली हैं. यानी दो तिहाई से अधिक. कांग्रेस को 25 और एआईयूडीएफ को 13 सीटें मिलीं. एक निर्दलीय को भी सफलता मिली है.

असमिया पहचान का मुद्दा पहली1985 में उठा था. उसके बाद भाजपा ने 2016 के विधानसभा चुनाव में इसे चुना और अन्य क्षेत्रीय दलों को जोड़ा. चुनाव नतीजे से यह साफ हो गया है कि कांग्रेस को अपने परंपरागत चाय मजदूर और अल्पसंख्यकों का वोट भी नहीं मिला. यानी लोक सभा चुनाव के परिणाम का प्रभाव इस विधानसभा चुनाव में दिखा. यह अलग बात है कि भाजपा के सहयोग दल अगप और बीपीएफ का प्रदशर्न उतना बेहतर नहीं हुआ. इसलिए भाजपा को सरकार चलाने में मित्र दलों की तरफ दबाव झेलने की स्थिति नहीं बनी.

चुनाव परिणामों यह साफ हो गया है कि निचले असम में अल्पसंख्यकों का वोट कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल नेतृत्व वाली आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बीच विभाजित हो गया. चुनाव परिणामों से साफ है कि कांग्रेस चुनावी रणनीति बनाने में विफल रही. बदरु द्दीन अजमल बार-बार कांग्रेस से गठबंधन के लिए आग्रह करते रहे, लेकिन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई अजमल से दूरी बनाए रखने की जिद पर अड़े रहे.अजमल का कहना है कि यदि एआईयूडीएफ के साथ कांग्रेस का गठबंधन होता तो वह सत्ता के करीब पहुंच सकती थी. इसलिए दूसरे चरण के चुनाव में भी भाजपा को आशातीत सफलता मिली है.

रविशंकर रवि
वरिष्ठ पत्रकार


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