भूमि सुधार : भूमिहीनों को दें हक

Last Updated 06 May 2016 05:18:51 AM IST

अनेक महत्त्वपूर्ण अध्ययनों व सरकारी रिपोर्टों में भूमि-सुधारों के महत्त्व को बार-बार स्वीकार किया गया है.


भूमि सुधार : भूमिहीनों को दें हक

निर्धनता दूर करने व खाद्य सुरक्षा मजबूत करने के अतिरिक्त कृषि उत्पादकता बढ़ाने में भी इनका महत्त्व स्वीकार किया गया है. इसके बावजूद हाल के समय में भूमि-सुधारों को लगभग पूरी तरह उपेक्षित कर दिया गया है व सरकारी नीति में इन्हें कोई महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं मिल रहा है. हम अगर सीलिंग कानून के अंतर्गत 2 प्रतिशत कृषि भूमि का भी पुनर्वितरण मान लें व उसमें गांव समाज भूमि का वितरण व भूदान भूमि का वितरण भी जोड़ लें, तो भी कुल कृषि भूमि की 4 प्रतिशत के आसपास की भूमि ही गरीब लोगों में वितरण के लिए उपलब्ध हुई है. 11वीं पंचवर्षीय योजना तैयार करते समय भूमि संबंधों पर जो वर्किग ग्रुप स्थापित किया गया था, उसकी रिपोर्ट में भी कई अहम सुझाव हैं.

केंद्र सरकार ग्रामीण-कृषि विकास की ऐसी खास स्कीमें शुरू कर सकती है, जिनके अंतर्गत काफी बड़ी विकास राशि उपलब हो पर यह पूरी तरह भूमिहीनों में भूमि वितरण से जुड़ी हो. जिन राज्यों में भूमि वितरण का लाभ अधिक भूमिहीनों तक पहुंचा है, वहां इन नए किसानों की सफल खेती के लिए लघु सिंचाई, जल व मिट्टी संरक्षण, भूमि समतलीकरण आदि के लिए सहायता उपलब्ध करवानी चाहिए. जो राज्य सरकार जितने अधिक भूमिहीनों को भूमि वितरण करेगी, उसे उतनी ही अधिक सहायता राशि मिलेगी. दूसरी ओर, जो सरकारें इन मामलों में उदासीन हैं उन्हें इस सहायता-लाभ से वंचित रखा जाएगा.

हमारे गांवों में आज भी लाखों की संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके पास अपनी आवास भूमि तक नहीं है. वे किसी तरह सरकारी या गांव समाज की ऐसी जमीन पर रहकर गुजर-बसर कर रहे हैं जिसे अतिक्रमण बताकर हटाया जा सकता है. या वे ऐसी भूमि पर रह रहे हैं, जिसे बड़े भूस्वामी अपनी भूमि बताते हैं. इस तरह की भूमि पर रहने की मजबूरी के कारण इन भूमिहीन परिवारों को धनी परिवारों की कभी बेगारी करनी पड़ती है तो कभी कोई अन्य जोर-जबरदस्ती सहनी पड़ती है. हालांकि इससे पहले जो लक्ष्य रखे गए या कार्यक्रम बनाए गए उसके अनुसार तो काफी पहले ही सब ग्रामीण परिवारों को आवास भूमि देने का कार्य पूरा हो जाना चाहिए था, परआज तक लगभग 80 लाख परिवार इस बुनियादी अधिकार से वंचित हैं.

कर्नाटक में ‘मेरी भूमि, मेरी बगिया’ योजना के अंतर्गत ग्राम सभाओं द्वारा बनाई गई सूची के आधार पर 12 डिसमिल भूमि उपलब्ध करवाने का प्रस्ताव है. आंध्र प्रदेश में महिला सहायता समूहों को इस कार्य से जोड़ा गया है. पश्चिम बंगाल में इस कार्य के लिए अच्छा-खासा बजट उपल्ध करवाया गया है. अनेक स्थानों का अनुभव यह रहा है कि यदि आवास भूमि के साथ कुछ बगीचे या किचन गार्डन की भूमि भी उपलब्ध करवाई जाए तो निर्धन परिवार विशेषकर महिलाएं इस भूमि का इस दृष्टि से बहुत सार्थक उपयोग करते हैं कि परिवार के पोषण में काफी सुधार के साथ ही आय में भी कुछ वृद्धि हो. हरी सब्जियां और कुछ स्थानीयफल उपलब्ध करवाने के लिए यह छोटे बगीचे बहुत उपयोगी हो सकते हैं. इनमें घरेलू बेकार जल का उपयोग कर अच्छे पोषण के खाद्य प्राप्त किए जा सकते हैं.

विस्थापन से त्रस्त लोग कह रहे हैं, आज देश को भूमि अधिग्रहण कानून की नहीं, भूमि रक्षा कानून की जरूरत है. उपजाऊ  कृषि भूमि को अन्य उपयोग में जाने से जहां तक संभव हो, रोकने की जरूरत है. इसके साथ बंजर या बेकार पड़ी जमीन को कृषि योग्य बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए. जो कृषि भूमि रसायनिक खाद व कीटनाशक खादों के अत्यधिक उपयोग के कारण बरबाद हो गई है, या अन्य प्रदूषण के कारण तबाह हो गई है, उसका उपचार कर उसे कृषि योग्य बनाना भी एक बहुत सार्थक कार्य है.

रसायनिक खाद की सब्सिडी रोक कर सरकार को इस पर खर्च करना चाहिए. इन उपायों से निर्धन भूमिहीन परिवारों में वितरण के लिए अधिक भूमि भी उपलब्ध होगी. सीलिंग कानून में सुधार करने से भी पुनर्वितरण के लिए बहुत-सी भूमि ग्रामीण निर्धन परिवारों में वितरण के लिए उपलब्ध हो सकती है. सरकार यह कोशिश करे कि अगले चार-पांच वर्षो में लगभग 2.5 करोड़ भूमिहीन; या लगभग भूमिहीन परिवारों में 5 करोड़ एकड़ भूमि का वितरण हो जाए. इसके साथ सामुदायिक भूमि की रक्षा, लघु वन उपज की रक्षा, गांववासियों के जलसंसाधनों की रक्षा करते हुए, जल-जंगल, जमीन को समग्र सोच को लेकर आगे बढ़ना चाहिए.

भारत डोगरा
लेखक


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