व्यंग्य : रहीमन पानी राखिये
रहीमन पानी राखिये बिन पानी सब सूनये कहावत पूर्व में जितनी प्रासंगिक रही होगी आज उससे भी अधिक मौंजू नज़र आती है.
व्यंग्य : रहीमन पानी राखिये |
आज सुन्दर गृहिणियों के चेहरे का पानी हौद में पानी भरने के चक्कर में लुप्त होता जा रहा है. जिन घरों में पानी है, वहां का रहन-सहन अन्य लोगों से भिन्न है. आज मेरे शहर में चूहे पर विराजमान गणेश या उल्लू पर बैठी लक्ष्मी उतने प्रासंगिक नहीं हैं, जितना प्रासंगिक टैंकर और उस पर विराजमान ड्राइवर है.
हाई प्रोफाइल महिलाओं से लेकर सामान्य गृहिणियों का जमघट जब टैंकर आने से इसके ईर्द-गिर्द एकत्र होता है तब टैंकर का प्रभारी ये ड्राइवर अनायास ‘कान्हा’ सा प्रतीत होने लगता है. जैसे गोपियों के मध्य कृष्ण का अस्तित्व था, वैसा ही परिदृश्य नज़र आने लगता है. टैंकर सामान्यत: दो प्रकार की प्रमुख श्रेणियों में विभक्त होते हैं, एक सशुल्क एवं दूसरा निशुल्क टैंकर सशुल्क के मुकाबले ज्यादा प्रतिष्ठित होता है.
भीड़ में लगकर बाल्टियां भरने एवं कोहनी से पड़ोसी को धक्का देकर सरकाने की कला जिनमें नहीं होती, वे निशुल्क टैंकर से पानी भरने के लिए अयोग्य होते हैं तथा उन्हें सशुल्क टैंकरों पर आश्रित होना पड़ता है. मोहल्ले-कॉलोनियों में निशुल्क एवं सशुल्क ये टैंकर कहां किसके घर कितनी देर पानी देते हैं. इससे परिवारों की राजनैतिक एवं आर्थिक स्थिति का सरसरी तौर पर पता लगाया जा सकता है.
गली में इसके प्रवेश के साथ ही वातावरण में एक अजीब सी गंध निर्मित होती है. इस गंध में लालच, दुर्भावना, प्रतिस्पर्धा, द्वेष तथा वैमनस्य जैसे सभी प्रकार के लवण अपने पूरे सामथ्र्य के साथ विद्यमान होते हैं. टैंकर पर विराजमान प्रभारी जिससे मुस्कुराकर बात करता है, उसकी सेटिंग हो गई यह माना जाता है. पानी हौद में आ जाने की यह क्रिया प्रथम बच्चे के जन्म के समय हुई प्रसन्नता-सा मीठा एहसास देती है. भविष्य के प्रति सचेत परिवार निशुल्क टैंकर का भी शुल्क हंसकर ऐसे देते हैं.
आजादी के 66 साल बाद भी पानी वितरण की व्यवस्था दोषपूर्ण बनी हुई है. लिहाजा, पानी सहेजने के नारे से कुछ नहीं होगा जरूरत प्रकृति से संतुलन बिठाने की है अभी लिखने को बहुत कुछ है पर ये कह रही है जल्दी बाल्टी उठाओ टैंकर आ गया है.
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