अगस्ता : प्रमाणित थी दलाली
अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में दलाली को लेकर मचे हंगामे का परिणाम क्या होगा कोई नहीं कह सकता.
अगस्ता : प्रमाणित थी दलाली |
लेकिन इटली की मिलान कोर्ट ऑफ अपील्स के फैसले के बाद अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हैलिकॉप्टर सौदे में दलाली को लेकर रत्ती भर संदेह की गुंजाइश नहीं रह जाती. न्यायालय ने फिनमेकेनिका के पूर्व प्रमुख गिसेप ओरसी को साढ़े चार साल तथा फिनमेकेनिका की हेलिकॉप्टर बनाने वाली कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के पूर्व सीईओ बुनो स्पेग्नोलिनी को भी चार साल जेल की सजा सुनाई है.
दोनों को अनुषंगी कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के जरिए भारत से 3565 करोड़ रु पये के 12 वीवीआईपी हेलिकॉप्टरों के सौदे में भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया. ओरवी व स्पेनोलिनी दोनों पर भारत से सौदे के लिए अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार व झूठे बिल देने के आरोप लगे थे. हालांकि दोनों को 9 अक्टूबर 2014 को निचली अदालत ने रित के आरोपों से बरी कर दिया था, लेकिन झूठे बिल देने का दोषी मानते हुए 2 साल जेल की सजा सुनाई थी. अब ऊपर की अदालत में इनको रित या दलाली का भी दोषी माना है. इनको सजा देने के साथ न्यायालय ने जो कुछ टिप्पणियां की हैं, उनसे पूरे पूर्व संप्रग सरकार और कांग्रेस पार्टी कठघरे में खड़ी हो जाती है.
मिलान कोर्ट ऑफ अपील्स ने अपने फैसले में माना है कि इस सौदे के दौरान हुए भ्रष्टाचार में पूर्व नौसेना प्रमुख एस पी त्यागी शामिल थे. 225 पन्नों के अपने फैसले में न्यायालय ने कहा कि जांच में ये बात साबित हो गई है कि सौदे में 10-15 मिलियन डॉलर भारतीय अधिकारियों को दिए गए. अदालत के फैसले के 17 पन्नों में पूर्व नौसेना प्रमुख एस पी त्यागी की घोटाले में भूमिका के बारे में लिखा है. फैसले के अनुसार त्यागी ने अगस्ता वेस्टलैंड को हेलिकॉप्टर कॉन्ट्रैक्ट दिलाने में मदद की. त्यागी के परिवार को घूस के पैसे नकद और वायर के जरिए दिए गए. लेकिन भारत में प्रवर्त्तन निदेशालय और सीबीआई जांच कर रही हैं और जांच के दायरे में एअर माशर्ल एस पी त्यागी भी हैं. यह आलेख लिखे जाने तक सीबीआई त्यागी से पूछताछ कर रही है. वे साल 2005 से 2007 के बीच नौसेना प्रमुख थे, जिस दौरान वीवीआईपी हेलीकॉप्टर सौदा किया गया था.
हालांकि त्यागी ने 2013 फरवरी में जब इटली में दोनों कंपनियों के वर्तमान सजायाफ्ता तत्कालीन प्रमुखों को पकड़ा गया था और भ्रष्टाचार की कथा सामने आई थी, अपनी किसी भी भूमिका से इनकार किया था. आज भी वो यही कह रहे हैं. उनका तर्क है कि उनके कार्यकाल के दौरान एक भी हेलीकॉप्टर जब आया नहींतो वे उसमें शामिल कैसे हुए. लेकिन जब इटली की उच्च स्तरीय अदालत ऐसा मान रही है और इसके आधार पर उसने फैसला सुनाया है तो फिर उसका कुछ तो अर्थ होगा. इसने निराशा प्रकट करते हुए कहा है कि सरकार ने इस मामले को नजरअंदाज किया. अदालत के अनुसार दलाली सामने आने के बावजूद तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस हेलीकॉप्टर दलाली के पीछे की सच्चाई का पता लगाने की न कोशिश की और न ही जांचकर्ताओं को संबंधित महत्त्वपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराए, भारत के रक्षा मंत्रालय ने तथ्यों को सामने लाने में लापरवाही की.
सरकार ने ऐसा क्यों किया होगा? आप पाक साफ थे तो आपको मामला न नजरअंदाज करना चाहिए था, न जांचकर्ताओं को दस्तावेज उपलब्ध कराने से बचना चाहिए था. अदालत के अनुसार, मामले के मुख्य आरोपित ने इटली के तत्कालीन प्रधानमंत्री मारियो मोंटी की ओर से भारत के समकालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बात करने की कोशिश भी की थी. अदालत ने इसके पीछे गिउस्प ओर्सी की ओर से जेल से मार्च 2013 में हाथ से लिखे गए एक पत्र को सामने रखा जिसमें लिखा गया था कि मेरे नाम मोंटी या टेरासिआनो को कॉल करें और उनसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बात करने को कहें. तो क्या ओर्सी की पहुंच प्रधानमंत्री तक हो गई थी? हालांकि भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद सरकार ने 1 जनवरी 2014 को सौदा रद्द कर दिया था. सीबीआई को जांच भी सौंप दिया. लेकिन यूपीए सरकार के कार्यकाल में जांच में कोई प्रगति हुई ऐसा सामने नहीं आई. बाद मोदी सरकार ने जुलाई 2014 में प्रवर्त्तन निदेशालय को भी जांच में शामिल किया.
फिनमेकनिका के एक एजेंट ने इटली के न्यायालय में आरोप लगाए थे कि कंपनी से सौदा करने के लिए भारतीय वायुसेना ने हेलीकॉप्टर की तकनीकी जरूरतें तक बदल दी थीं. एजेंट का कहना था कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि अगस्ता वेस्टलैंड के हेलीकॉप्टर निविदा की शर्तों के अनुरूप नहीं थे. इसके अनुसार फिनमेकेनिका एयरोस्पेस डिफेंस कंपनी ने तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी को मध्यस्थों के माध्यम से रित की रकम पहुंचाई थी.
तत्कालीन वायुसेना प्रमुख पर आरोप है कि उन्होंने वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की अधिकतम फ्लाइंग हाइट 6,000 मीटर से घटाकर 4,500 मीटर करने की अनुमति दी थी. सीबीआई का आरोप है कि फ्लाइंग हाइट कम करने की वजह से ही अगस्ता वेस्टलैंड को कॉन्ट्रैक्ट मिला. ऐसा नहीं किया जाता तो वह बोली में शामिल भी नहीं हो सकती थी. प्रतिस्पर्धा में अमेरिका की कंपनी सिकरोस्की भी मैदान में थी. 2013 में रक्षा मंत्रालय ने कहा कि जांच में प्राप्त जानकारियों को लेकर बार-बार आग्रह के बावजूद इटली और ब्रिटेन सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई. इटली की अदालत इसके उलट बात कर रही है. वैसे भी वहां की जांच के समाचार हमारे यहां आते रहे और उसके आधार पर सरकार पहले से जांच आरंभ कर सकती थी. इसने नहीं किया तो फिर दाल में काला दिखेगा ही. लेकिन वर्तमान सरकार का कार्यकाल दो वर्ष पूरा हुआ है. इसमें तो तेजी से कार्रवाई होनी चाहिए थी. मिलान कोर्ट का फैसला आने के बाद ही ऐसा क्यों हुआ है?
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