इंटरनेट के साइड इफेकट

Last Updated 03 May 2016 05:45:10 AM IST

जब कोई नई तकनीक हमारे सामने आती है तो वह सबसे पहले अपनी ताकत से हमें परिचित कराती है.


इंटरनेट के साइड इफेकट

उसके बाद शुरू होता है चुनौतियों का सिलसिला उन चुनौतियों से हम कैसे  निपटते हैं. उससे उस तकनीक की सफलता या असफलता निर्भर करती है. इंटरनेट ने उम्र का एक चक्र पूरा कर लिया है.

इसकी खूबियों और इसकी उपयोगिता की चर्चा तो बहुत हो ली, पर अब वक्त है इसके और आयामों पर चर्चा करने का. आज हमारी  पहचान का एक मानक वर्च्युअल वर्ल्ड में हमारी उपस्थिति भी है और यहीं से शुरू होता है फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग से जुड़ने का सिलसिला, भारत में फेसबुक के सबसे ज्यादा प्रयोगकर्ता हैं पर यह तकनीक अब भारत में एक चुनौती बन कर उभर रही है. आंकड़ों के अनुसार स्मार्टफोन व इंटरनेट लोगों को व्यसनी बना रहा है.

कहा जाता है कि मानव सभ्यता शायद पहली बार एक ऐसे नशे से सामना कर रही है, जिसका भौतिक इस्तेमाल नहीं दिखता, पर यह असर कर रहा है यह नशा है. डिजीटल सामग्री के सेवन का जो न खाया जा सकता है, न पिया जा सकता है, और न ही सूंघा जा सकता है फिर भी यह लोगों को लती बना रहा है. चीन के शंघाई मेंटल हेल्थ सेंटर के एक अध्ययन के मुताबिक, इंटरनेट की लत शराब और कोकीन की लत से होने वाले स्नायविक बदलाव पैदा कर सकती है.

मोबाइल ऐप (ऐप्लीकेशन) विश्लेषक कंपनी फ्लरी के मुताबिक, हम मोबाइल ऐप लत की ओर बढ़ रहे हैं. स्मार्टफोन हमारे जीवन को आसान बनाते हैं, मगर स्थिति तब खतरनाक हो जाती है, जब मोबाइल के विभिन्न ऐप का प्रयोग इस स्तर तक बढ़ जाए कि हम बार-बार अपने मोबाइल के विभिन्न ऐप्लीकेशन को खोलने लगें. कभी काम से, कभी यों ही. फ्लरी के इस शोध के अनुसार, सामान्य रूप से लोग किसी ऐप का प्रयोग करने के लिए उसे दिन में अधिकतम दस बार खोलते हैं, लेकिन अगर यह संख्या साठ के ऊपर पहुंच जाए, तो ऐसे लोग मोबाइल ऐप एडिक्टेड की श्रेणी में आ जाते हैं. पिछले वर्ष इससे करीब 7.9 करोड़ लोग ग्रसित थे. इस साल यह आंकड़ा बढ़कर 17.6 करोड़ हो गया है, जिसमें ज्यादा संख्या महिलाओं की है. उनके लिए यह समय काटने का भी साधन है.

वी आर सोशल की डिजिटल सोशल ऐंड मोबाइल 2015 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के आंकड़े काफी कुछ कहते हैं. इसके अनुसार, एक भारतीय औसतन पांच घंटे चार मिनट कंप्यूटर या टैबलेट पर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है. इंटरनेट पर एक घंटा 58 मिनट, सोशल मीडिया पर दो घंटे 31 मिनट के अलावा इनके मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल की औसत दैनिक अवधि है दो घंटे 24 मिनट. इसी का नतीजा है, तरह-तरह की नई मानसिक समस्याएं- जैसे फोमो, यानी फियर ऑफ मिसिंग आउट, सोशल मीडिया पर अकेले हो जाने का डर. इसी तरह फैड, यानी फेसबुक एडिक्शन डिसऑर्डर.

इसमें एक शख्स लगातार अपनी तस्वीरें पोस्ट करता है और दोस्तों की पोस्ट का इंतजार करता रहता है. एक अन्य रोग में रोगी पांच घंटे से ज्यादा वक्त सेल्फी लेने में ही नष्ट कर देता है. इस वक्त भारत में 9778 करोड़ मोबाइल और 14 करोड़ स्मार्टफोन कनेक्शन हैं, जिनमें से 2473 करोड़  इंटरनेट पर सक्रिय हैं और 1178 करोड़ सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. भारत जैसे देश में समस्या यह है कि यहां तकनीक पहले आ रही है, और उनके प्रयोग के मानक बाद में गढ़े जा रहे हैं.

वर्चुअल दुनिया में खोए रहने वाले के लिए सब कुछ लाइक्स व कमेंट से तय होता है. वास्तविक जिंदगी की असली समस्याओं से वे भागना चाहते हैं और इस चक्कर में वे इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताने लगते हैं, जिसमें चैटिंग और ऑनलाइन गेम खेलना शामिल है. और जब उन्हें इंटरनेट नहीं मिलता, तो उन्हें बेचैनी होती और स्वभाव में आक्रामकता आ जाती है और वे डिजीटल डिपेंडेंसी सिंड्रोम (डी डी सी) की गिरफ्त में आ जाते हैं.

इससे निपटने का एक तरीका यह है कि चीन से सबक लेते हुए भारत में डिजिटल डीटॉक्स यानी नशामुक्ति केंद्र खोले जाएं और इस विषय पर ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलाई जाए. ज्यादा प्रयोग के कारण डिजिटल डिवाइस से हमारा एक मानवीय रिश्ता सा बन गया है, पर तकनीक पर अधिक निर्भरता हमें मानसिक रूप से पंगु भी बना सकती है. इसलिए इंटरनेट का इस्तेमाल जरूरत के वक्त ही किया जाए.

मुकुल श्रीवास्तव
लेखक


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