चिंतन : प्रसन्न रहें, सन्न नहीं
प्रसन्नता सबकी अभिलाषा है. मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतिंग और वनस्पति भी. मनुष्य आदिम काल से ही सुख और प्रसन्नता चाह रहा है.
हृदयनारायण दीक्षित |
प्रसन्नता मनोभाव है, वस्तु या पदार्थ नहीं. हम प्रकृति के भाग हैं. प्रकृति परिवर्तनशील है. मनुष्य भी परिवर्तन की इस धारा के हिस्से हैं. कभी सचेत रूप में तो ज्यादातर अचेत रूप में. सारे सचेत कर्मो का लक्ष्य भी प्रसन्नता ही होती है. प्रसन्नता छुपाए नहीं छुपती. प्रसन्नता की अभिव्यक्ति प्राय: सामूहिक होती है. हम दुखी हों, तो अकेलापन चाहते हैं-‘लीव मी अलोन’ कहते हैं. प्रसन्न हों तो मित्र मंडली के साथ खुशी साझा करते हैं. गीत फूटते हैं. प्रसन्न अतिरेक से उफनाया चित्त नृत्य के लिए भी प्रेरित करता है. ऋग्वेद में सृष्टि सृजन के वर्णन में ‘देवो को भी नाचते हुए’ बताया गया है. प्रसन्नता की अभिव्यक्ति विध्वंसक या हिंसक नहीं होती लेकिन आज भारत में ‘हर्ष फायरिंग’ जैसी नई सामाजिक चुनौती सामने है. कथित हषिर्त लोग गोली चलाते हैं. निदरेष मारे जाते हैं. ऐसा घृणित कर्म भारतीय परंपरा में नहीं मिलता.
प्रसन्नता संक्रामक होती है. प्रसन्न व्यक्ति पड़ोसी को भी प्रसन्न बनाता है. प्रसन्न समाज रचनात्मक होते हैं. प्रसन्नता में गोली चलाने की मानसिकता मनोवैज्ञानिक चुनौती है. मैंने स्वयं अनेक मांगलिक उत्सवों में ‘हर्ष फायरिंग’ के असभ्य दृश्य देखे हैं. भद्र लोग मना करते हैं. कथित हषिर्त लोग मना करने के बावजूद गोली चलाते हैं. उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाओं की बाढ़ है. प्रशासन या पुलिस को ही दोषी ठहराकर नहीं बच सकते. यह कानून कम सामाजिक समस्या ज्यादा है. समझना कठिन है कि लोग गोली क्यों चलाते हैं?
राजनैतिक कार्यकर्ता भी बहुधा हर्ष फायरिंग का भाग बनते हैं. चुनावी जीत के जलसों में वैध के साथ अवैध असलहे भी लहराए जाते हैं. हीन ग्रंथि पीड़ित समर्थ ‘तमंचे पे डिस्को’ करते हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्वाचल का लोकप्रिय गीत है, ‘जबसे सिपाही से भइल हवलदार बा/नथुनियां म गोली मारे/सइयां हमार बा. गीत में सिपाही के हवलदार हो जाने का उत्साह है और इसी उत्साह में नथुनी पर फायरिंग. लेकिन यह मनोरंजक रूपक है. असलियत भयावह है. दलतंत्र में संगठन के पदों पर भी नियुक्ति के समय हुल्लड़ जुलूस निकलते हैं. उप्र की राजधानी लखनऊ में अधिवक्ताओं के प्रदर्शन के दौरान एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता ने पिस्टल तानी. घटना की मीडिया में भी व्यापक चर्चा हुई थी.
परंपरा में ऐसी हर्ष फायरिंग नहीं मिलती. पौराणिक संदभरे में श्रीकृष्ण के पास सुदर्शन चक्र है और शिव के पास त्रिशूल. देवी दुर्गा के पास भी तमाम आयुद्ध हैं. वैदिक देवता इंद्र के पास वज्र था ही. वैदिक काल यज्ञ आदि मंगल कार्यों से भरा-पूरा है. वेदों के अनुसार ऐसे आयोजनों में व्यापक समाज की भागीदारी थी. ऐसे आयोजन स्वाभाविक ही प्रसन्नता देते थे. लेकिन प्रसन्नता प्रकट करने के लिए इंद्र या वरुण द्वारा हथियार चलाने का उल्लेख कहीं नहीं मिलता. बारातों में होने वाले डीजे डांस, डिस्को में प्राय: विवाद होते हैं. इनमें हाल में ही अनेक लोग मारे गए हैं. हर्ष फायरिंग में होने वाली मौतों और ऐसे ही विवादों ने भारतीय समाज के विरुद्ध अनेक प्रश्न उठाए हैं. मूलभूत प्रश्न है कि क्या हम अभी भी ऐसा सभ्य समाज नहीं बना पाए हैं कि सामूहिक आयोजनों में प्रसन्नता प्रकट करने की प्रसन्न विधि का विकास करें. सामूहिक प्रसन्नता के अवसर पर हर्ष फायरिंग द्वारा प्रसन्न को सन्न में बदलने का औचित्य क्या है?
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