विश्लेषण : दिल्ली में जनप्रिय मोदी सरकार

Last Updated 30 Apr 2016 05:16:59 AM IST

देश की राजधानी दिल्ली में कौन पॉपुलर है? आप सरकार या फिर केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार?


दिल्ली में जनप्रिय मोदी सरकार

रसोई गैस सब्सिडी वापस करने वालों की संख्या का आंकड़ा देखेंगे, तो आपको इस सवाल का जवाब बड़ी आसानी से मिल जाएगा.

पिछले साल जनवरी में पेट्रोलियम मंत्रालय ने अपनी मर्जी से गैस सब्सिडी छोड़ने का अभियान शुरू किया था. इस अभियान का नतीजा हमें बताता है कि अगर देश हित की बात, ग़रीबों तक आम सहूलियतें पहुंचाने की बात ईमानदारी के साथ की जाए, तो देश के सुविधा-सम्पन्न लोग उसे ध्यान से सुनते हैं, और यकीनन अमल भी करते हैं. एक और बात बशर्ते कहने वाला कौन है, ये भी काफी माएने रखता है. जहां तक रसोई गैस पर सब्सिडी छोड़ने के अभियान की सफलता की बात है, तो अभी तक एक करोड़ 13 लाख लोगों ने ऐसा कर देश के प्रति अपनी भावनाएं जताई हैं. मैं मानता हूं कि यह भी देश प्रेम की भावना को अभिव्यक्त करने जैसा ही है. भले ही यह भावना अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्त की गई है, लेकिन देश के अपेक्षाकृत  संपन्न लोगों का यह फ़ैसला गर्व से सिर ऊंचा करने वाला है.

आबादी के हिसाब से देखें, तो दिल्ली वालों ने गैस सब्सिडी छोड़ने की योजना को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह दिखाया है. राज्यों के हिसाब से देखें, तो अभी तक महाराष्ट्र सबसे अव्वल है,  और वहां 16 लाख, 44 हज़ार लोगों ने अपनी मर्जी से गैस सब्सिडी छोड़ी है. दूसरे नम्बर पर उत्तर प्रदेश है. वहां क़रीब 13 लाख लोग अपनी मर्जी से सब्सिडी छोड़ चुके हैं. तीसरे नम्बर पर दिल्ली आती है, जहां सात लाख, 26 हज़ार लोगों ने मोदी सरकार की अपील मानते हुए गैस सब्सिडी से किनारा किया है.

यह जानना भी दिलचस्प होगा कि ऐसा नहीं है कि धन्ना सेठों ने ही ऐसा किया है. जिन लोगों ने अपनी मर्जी से सब्सिडी छोड़ने का फ़ैसला किया है, उनमें केवल तीन फ़ीसदी लोग ही सालाना दस लाख रुपए से ज्यादा की कमाई करते हैं. इससे साफ़ है कि मिडिल क्लास ने मोदी सरकार के इस अभियान को सिर-माथे पर लिया है. रसोई गैस सब्सिडी छोड़े जाने से केंद्र सरकार को पांच हज़ार करोड़ रु पये की बचत हुई है. ये रक़म ग़रीबों के घरों तक रसोई गैस कनेक्शन देने पर खर्च की जाएगी. पिछले साल सरकार ने अपना वादा निभाते हुए ग़रीबों को 60 लाख गैस कनेक्शन दिए थे. नई स्कीम में पांच करोड़ कनेक्शन के लिए आठ हज़ार करोड़ रुपये का खर्च तय किया गया है. इसके तहत पहले साल में डेढ़ करोड़ ग़रीबों को रसोई गैस कनेक्शन दिए जाएंगे.

मेरे लिए यह भी बेहद खुशी की बात है कि मोदी सरकार ने लोगों से कहा था कि आप केवल एक साल के लिए रसोई गैस सब्सिडी छोड़ दें. साल भर बाद अगर चाहें, तो दोबारा सब्सिडी के लिए आवेदन कर सकते हैं. लेकिन अच्छी बात यह हुई है कि एक साल बीत जाने के बावजूद गैस सब्सिडी छोड़ने वाले एक भी शख्स ने दोबारा यह सुविधा हासिल करने की अर्जी नहीं दी है. इसे कहते हैं किसी की बात माना जाना. ये भारत के सामाजिक जीवन में लोगों का दुर्लभ बदलाव है, अच्छी बात यह भी है कि सब्सिडी छोड़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक मई को ग़रीबों को मुफ़्त एलपीजी कनेक्शन बांटने की योजना शुरू करेंगे.

अब आप ही बताइए कि दिल्ली सरकार इस आंकड़े को कैसे झुठलाएगी. आप सरकार को चाहिए कि वह अपने मुंह मिट्ठू मियां बनने की साज़िशें रचने से बाज़ आए और मोदी सरकार की लोकप्रियता की बात मान ले. दिल्ली सरकार ने दिल्ली के लोगों की चाहत बताकर जिस तरह वाहन चलाने की ऑड-ईवन स्कीम दोबारा लॉन्च की है, वह झूठा प्रचार है. आप सरकार ने अभी तक यह आंकड़ा सही तरीक़े से जारी नहीं किया है कि दिल्ली के कितने लोग उनकी इस योजना को दोबारा और आगे भी लागू किए जाने के पक्ष में हैं? दिखावे की राजनीति करते हुए दिल्ली सरकार ने दिल्ली के लोगों के टैक्स की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रु पये अपना चेहरा चमकाने के लिए बड़े-बड़े विज्ञापनों पर उड़ा दिए.

दावा किया जा रहा है कि दिल्ली के लोग ऑड-ईवन से बेहद खुश हैं. लेकिन असल में हक़ीक़त कुछ और ही है. जिसपर बहुत सारे लोगों का ध्यान नहीं दिया. एक छोटी गाड़ी रखने वाले दिल्ली के •यादातर लोग ऑड-ईवन योजना से बुरी तरह त्रस्त हैं. ग़ौर कीजिए कि ये वही लोग हैं, जिन्होंने रसोई गैस सब्सिडी छोड़ने का देश से प्यार करने वाला फ़ैसला किया है.

साफ़ है कि दिल्ली सरकार मोदी सरकार से प्यार करने वाले दिल्ली वालों को हर तरह से परेशान करना चाहती है. अभी तो वह जो चाहे कर ले, लेकिन चुनाव में हक़ीक़त उसके सामने आ जाएगी. डंडा चलाकर, दो हज़ार रुपए जुर्माने का डर दिखाकर आप लोगों को दबा देंगे और फिर दावा करेंगे कि लोग आपके साथ हैं. फिर यही बात आप अपनी बड़ी-बड़ी तस्वीरों वाले विज्ञापनों में कह कर अपनी पीठ थपथपाएंगे, तो क्या आप दिल्ली के लोगों को मूर्ख समझ रहे हैं?

मोदी सरकार ने तो ऐसा कोई डर गैस सब्सिडी छोड़ने के लिए लोगों के मन में नहीं बिठाया. ऐसा कुछ नहीं किया गया, जिससे दस लाख रुपये से ज्यादा सालाना आमदनी वाला तबक़ा एक बार सोचे कि अगर सब्सिडी मर्जी से छोड़ने के अभियान में शामिल नहीं हुए, तो सरकार इन्कम टैक्स का जाल बिछाकर या किसी और तरीक़े से तंग करेगी. लोगों को लगा कि ऐसा करना सबके हित में है, तो उन्होंने किया. क्यों नहीं केजरीवाल सरकार ऑड-ईवन की योजना को लोगों की मर्जी पर छोड़ रही है? लोगों को अगर लगेगा कि इससे वास्तव में प्रदूषण कम होगा और उनकी सेहत पर असर पड़ेगा, तो वे ज़रूर इस पर अमल करेंगे. यह बात लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़कर साबित कर दी है.

विजय गोयल
लेखक


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