ओलंपिक : सलमान के साथ सम्मान भी दो

Last Updated 29 Apr 2016 05:55:55 AM IST

कुछ लोगों को लगता है कि सलमान के भारतीय दल से जुड़ने से उनके प्रशंसक भी खेलों से जुड़ेंगे और इसका खेलों को फायदा हो सकता है.


बॉलीवुड स्टार सलमान खान

कोई रियो ओलंपिक शुरू होने में सौ दिन से भी कम का समय बचा है पर हमारे यहां चर्चा खिलाड़ियों की तैयारी और भारत की संभावनाओं पर न होकर बॉलीवुड स्टार सलमान खान को रियो ओलंपिक के लिए भारतीय दल का गुडविल एम्बेसडर बनाना उचित है या नहीं, इस पर हो रही है. इस सच से सभी वाकिफ हैं कि आखिरी समय में किसी को भी गुडविल एम्बेसडर बनाने का कोई फायदा नहीं होने जा रहा है. पर खिलाड़ियों को लगता है कि सलमान को बनाने से उनके अधिकार क्षेत्र में सेंध लगा दी गई है. दूसरी तरफ, बॉलीवुड के सलमान के पक्ष में खड़े होकर रोज कुछ न कुछ बयान देने से लगता है कि उन्हें ओलंपिक साल में खेलों के बजाय अपने सुपर स्टार की ज्यादा परवाह है.

यह सही है कि सलमान बहुत ही लोकप्रिय अभिनेता हैं, और उनके बड़े पैमाने पर प्रशंसक हैं. कुछ लोगों को लगता है कि सलमान के भारतीय दल से जुड़ने से उनके प्रशंसक भी खेलों से जुड़ेंगे और इसका खेलों को फायदा हो सकता है. लेकिन दूसरे वर्ग का मानना है कि जब देश में मिल्खा सिंह और प्रकाश पादुकोण जैसे खिलाड़ी हैं, तो फिल्मी सितारे को गुडविल एम्बेसडर बनाने की क्या जरूरत पड़ गई? कहा जा रहा है कि फिल्म इंडस्ट्री के टॉप तीनों खान-सलमान, आमिर और शाहरुख बड़े अभिनेता होने के साथ बड़े व्यवसायी भी हैं, और इस कारण ही उनकी फिल्में कई सौ करोड़ रुपये का बिजनेस करती हैं. सलमान की जल्द ही ‘सुल्तान’ नाम की फिल्म आने वाली है, जिसमें वह पहलवान बने हैं, जानते हैं कि ओलंपिक का मौका इस फिल्म के प्रचार के लिए उम्दा साबित हो सकता है. भारतीय ओलंपिक दल से गुडविल एम्बेसडर के तौर पर जोड़ने से इस स्थिति का अच्छे से फायदा उठाया जा सकता है.

सलमान को गुडविल एम्बेसडर बनाए जाने के बाद आईओए से पूछे जाने की जरूरत है कि इससे भारतीय खेलों को कैसे फायदा होगा? क्या ओलंपिक की तैयारियों में जुटे खिलाड़ियों की सुविधाएं बढ़ जाएंगी, जिससे चार साल पहले लंदन ओलंपिक में जीते पदकों की संख्या में इजाफा हो जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ तो नजर नहीं आ रहा है. फिर गुडविल एम्बेसडर बनाने की क्या जरूरत पड़ गई? पहलवान योगेर दत्त लंदन ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता हैं, और सलमान की नियुक्ति पर सबसे पहले ऐतराज जताने वाले वही थे. उनका कहना था कि जब देश में मिल्खा सिंह और प्रकाश पादुकोण जैसे खिलाड़ी मौजूद हैं, तो बॉलीवुड स्टार को यह मौका देने का क्या फायदा है.

सही मायनों में भारतीय खेलों और खिलाड़ियों को आगे बढ़ने के लिए सलमान की नहीं, सम्मान की जरूरत है. अगर खेल फेडरेशन और सरकार खिलाड़ियों को सम्मान देने लगें तो तत्काल न सही पर आगे जाकर खेलों को फायदा जरूर रहेगा. मैंने राजधानी में तमाम टूर्नामेंटों में देखा है कि हॉफ टाइम में यदि किसी मंत्री या राजनेता को खिलाड़ियों से मिलवाने का कार्यक्रम है, और गेस्ट महोदय थोड़े लेट हो गए तो हॉफ टाइम को बढ़ा दिया गया और खेल तय समय पर शुरू हो गया तो गेस्ट के आने पर खेल को रोक दिया गया. किसी भी खेल फेडरेशन के लिए खिलाड़ी पहली वरीयता नहीं हैं और यदि ऐसा होता तो बॉक्सिंग फेडरेशन खिलाड़ियों की कीमत पर अपना साम्राज्य बचाने में नहीं लगी रहती.

इस मुद्दे पर छिड़ी बहस में कई दिनों से पक्ष-विपक्ष में बयान देने का सिलसिला चल रहा है. इनमें से कई ऐसे हैं, जिन्होंने अपने जीवनकाल में कभी मैदान में जाकर दौड़ तक नहीं लगाई है. असल में हो यह रहा है कि जिसके जो मन में आ रहा है, कह रहा है. सलमान के पिता सलीम खान ने एक ट्वीट करके कहा,..मिल्खा जी यह बॉलीवुड नहीं भारतीय फिल्म जगत है, जो विश्वभर में व्यापक रूप से विख्यात है. यह वही फिल्म जगत है, जिसने आपकी धूमिल हो रही छवि को फिर से लोगों के सामने उजागर किया है... इस पर मिल्खा सिंह ने पलटवार करते हुए कहा कि मेरे ऊपर फिल्म बनाकर किसी ने मुझ पर उपकार नहीं किया. असल में देश के लिए ओलंपिक और एशियाई खेलों में शानदार प्रदर्शन करके देश का गौरव बढ़ाने वाले मिल्खा सिंह पर इस तरह की टिप्पणी करने से बचा जाना चाहिए था. आपको मिल्खा सिंह भुनाने लायक लगे, तब ही तो उनके ऊपर फिल्म बनाई गई.

यह सही है कि ओलंपिक खेल सिर पर आ जाने की वजह से सलमान की नियुक्ति का कोई फायदा नहीं होने वाला है. लेकिन इसका कोई नुकसान भी तो नहीं है. हां, इतना फायदा जरूर हो सकता है सलमान की मौजूदगी खिलाड़ियों को ज्यादा मीडिया कवरेज दिला सकती है. लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है कि मीडिया में खिलाड़ियों के बजाय सलमान पर फोकस बनने लगेगा. हां, एक बात और है कि सलमान की इस नियुक्ति पर इतने बवाल की भी कोई तुक नहीं है क्योंकि खेलों और बॉलीवुड सितारों की साझेदारी पिछले काफी समय से चल रही है. नौ साल पहले आईपीएल का आयोजन शुरू करने के समय कई बॉलीवुड स्टार टीम खरीदने में साझेदार बने थे और कई ब्रांड एम्बेसडर के तौर पर जुड़े थे. खेलों में यह प्रयोग एकदम सफल रहा था,  और इसका विभिन्न टीमों को अपनी लोकप्रियता बढ़ाने में मदद मिली थी. इससे  प्रभावित होकर ही आईपीएल की तर्ज पर कुश्ती, कबड्डी, बैडमिंटन और फुटबॉल में लीगों का आयोजन किया गया. इन लीगों में भी फिल्मी सितारों को जोड़ा गया. उस समय किसी खिलाड़ी ने जरा भी विरोध नहीं किया. इसलिए मेरा मानना है कि इस विवाद को यहीं पर दफन करके खिलाड़ियों की तैयारियों पर फोकस किया जाए, जिससे रियो में बेहतर परिणाम मिल सकें.

मनोज चतुर्वेदी
लेखक


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