परिधि : राजनीतिक भाईचारा
यह कहना एक जल्दबाज निष्कर्ष माना जाएगा कि मोदी सरकार भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई मामले में राजनीतिक भाईचारा निभाने में लगी है.
परिधि : राजनीतिक भाईचारा |
हालांकि उसे इसके बजाय ‘राजधर्म’ निभाना चाहिए. आम चुनाव के दौरान और जीत कर आने के बाद भी वह भ्रष्टाचार न सहन करने की प्रतिबद्धता दोहराते रहे हैं.
इससे एक आस जगी थी कि कितनी भी ऊंची हैसियत के भ्रष्टाचारी हों, वे बच नहीं पायेंगे. विश्वास का ऐसा वातावरण बनाने में मोदी के उस जुमले का भी प्रताप था-न खाएंगे और न खाने देंगे. पर दो साल बीतते यह स्पष्ट होने लगा है कि मोदी को यूपीए कार्यकाल में हुए घोटाले में संलिप्त राजनीतिकों के प्रति सरकार सहज अनुराग दिखाएगी.
टूजी में मनमोहन सिंह का नाम आरोपित मंत्री ही ले रहा था. पर कानूनी दांव-पेच में फंसा कर बात दबा दी गई-कम से कम जनता में यही अर्थ गया. चुनाव के दौरान मोदी रॉबर्ट वाड्रा को कौड़ी के भाव दिये गए जमीन सौदों की जांच की बात जोर-शोर से कर रहे थे. अब यह बात भी आई-गई लगती है. रॉबर्ट इत्मीनान से चुनौती देते लगते हैं और सरकार चुप है.
कांग्रेस सरकार में प्रताड़ित रहे अशोक खेमका मोदी राज में भी दर-बदर होते रहे. संजय चतुव्रेदी भी एक ऐसा ही नाम हैं, जिनकी कर्त्तव्यनिष्ठा ही मौजूदा सरकार को खटक गई. छगन भुजबल का नाम एक अपवादस्वरूप हो सकता है. हालांकि कहने वाले कह रहे हैं कि छगन को अपनों ने ही छला या अपनों के छलने की कीमत वह कारागार जाकर चुका रहे हैं. सरकार को कार्रवाई का श्रेय तो ऐसे ही मिल गया. ऐसी ही परिस्थितियों में विजय माल्या के भागने को भगाना माना जा रहा है तो इसमें दोष छिद्रान्वेषण का ही नहीं है.
इशरत जहां केस में मोदी-शाह को फंसाने में पी.चिदम्बरम के सूत्राधार होने का सरकार का दावा हो या अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकाप्टर सौदे में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की संलिप्तता के नाम; विपक्ष को राजनीतिक दबाव में रखने के काम आने के मामले ज्यादा लगते हैं. इसलिए लगता नहीं कि अगस्ता-वेस्टलैंड मामले में असलियत सामने आएगी या जांच का सार्थक परिणाम निकेलगा. इसलिए कि मोदी सरकार को राजनीतिक भाईचारा निभाने का चाव जो लगा है. इसका मतलब यह हुआ कि तुम मेरी ढको और मैं तेरी का दस्तूर चलता रहेगा.
| Tweet |