तय करिए कौन है हत्यारा

Last Updated 14 Feb 2016 03:03:35 AM IST

दिल्ली के मॉडल टाउन थाना क्षेत्र में हुई आरजू नामक लड़की की हत्या आपराधिक तौर पर जितनी सनसनीखेज है, सामाजिक तौर पर उतनी ही डरावनी भी.


तय करिए कौन है हत्यारा

आरजू वह लड़की थी, जो लंबे समय से नवीन खत्री से रिश्ता बनाए हुए थी. उससे शादी करना चाहती थी. नवीन के साथ उसके रिश्ते को उसने नहीं बल्कि निरंतर आग्रह के बाद नवीन ने ही परवान चढ़ाया था. जब दोनों ने शादी करनी चाही तो आरजू का परिवार तो रजामंद हो गया. लेकिन नवीन का परिवार राजी नहीं हुआ, खासकर उसका पिता राजकुमार खत्री. राजकुमार ने अपने एक परिचित बिचौलिये के माध्यम से नवीन का रिश्ता एक दूसरी लड़की नेहा से पक्का कर दिया.

अपने पिता के दबाव में नवीन ने इसे मंजूर कर लिया. आरजू से किनारा करने का मन बना लिया. शादी से ठीक पहले उसने आरजू की हत्या कर दी और उसका शव उसी कमरे में छिपा दिया जिस कमरे में वह अपनी नवविवाहिता पत्नी नेहा को लेकर आया था. नेहा ने कमरे में दुर्गध आने की शिकायत की जिस पर नवीन के घरवालों ने ध्यान नहीं दिया. स्वयं नवीन इत्र छिड़क कर बदबू छिपाने की कोशिश करता रहा. उसी शाम जब पुलिस ने दबिश दी तब नेहा के सामने यह बात उजागर हुई कि उसके पति ने अपनी पूर्व प्रेमिका की हत्या कर उसका शव वहां छिपाया हुआ है. नेहा जिस दिन अपनी ससुराल आई थी, उसी दिन अपने पिता के साथ वापस अपने घर लौट गई. यह समूचा दृश्य किसी हॉरर फिल्म के जैसा प्रतीत होता है. लेकिन यह भारतीय समाज की निरंतर जारी क्रूर वास्तविकता का वास्तविक दृश्य है.

इस समूचे दृश्य में नवीन खत्री एक क्रूर खलनायक की तरह उभरता है. लेकिन इस दृश्य की पृष्ठभूमि को खंगालें तो वास्तविक खलनायक के तौर पर जो सामने आता है, वह है नवीन खत्री का पिता राजकुमार खत्री. जेल में सजा काट रहा राजकुमार खत्री अपने बेटे के विवाह में शामिल होने के लिए पैरोल पर बाहर आया था. वह एक हत्या के अपराध में सजा काट रहा है. अखबारों में प्रकाशित खबरों पर भरोसा करें तो उसने अपने एक पड़ोसी की हत्या इसलिए कर दी थी क्योंकि उस पड़ोसी का प्रेम प्रसंग उसके परिवार की लड़की से चल रहा था. एक प्रेम प्रसंग के चलते हत्या का अपराधी बना राजकुमार खत्री नहीं चाहता था कि उसका बेटा किसी लड़की से प्रेम विवाह करे. उसने अपने बेटे को विवश कर दिया कि वह पारंपरिक रस्म अदायगी के साथ उस लड़की से शादी करे जिससे वह करवाना चाहता है.

राजकुमार खत्री की इस जिद ने उसके बेटे नवीन को,  जिसका कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, जघन्य हत्यारा बना दिया. अब नवीन भी सलाखों के पीछे है. इस तरह राजकुमार नाम के एक व्यक्ति ने केवल कुछ वर्षो के अंदर ही चार-चार परिवारों को तबाह कर दिया-स्वयं अपने परिवार को, उस व्यक्ति के परिवार को जिसकी उसने हत्या की थी, आरजू के परिवार को और फिर नेहा के परिवार को जो अब किसी भी सूरत में नवीन के साथ अपना रिश्ता तोड़ना चाहता है. यानी राजकुमार खत्री ही वह बड़ा खलनायक है, जिसके कारण इतने परिवारों की शांति नष्ट हो गई. दर्जनों लोग जीवनभर के लिए आहत हो गए. लेकिन क्या एक व्यक्ति के तौर पर राजकुमार ही वास्तविक खलनायक है? आखिर, उसकी वह मानसिकता कैसे बनी जिसके चलते पहले उसने स्वयं हत्या की. फिर बेटे को भी हत्यारा बना दिया.

राजकुमार खत्री एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक परिघटना है,  जो समूचे समाज में व्यापक तौर पर मौजूद है. मां-बाप की रजामंदी न होने पर एक-दूसरे को पसंद करने वाले और शादी की इच्छा रखने वाले लड़के-लड़कियां अपने परंपरा पोषक अभिभावकों के डर से कभी घर छोड़कर भाग जाते हैं, कभी आत्महत्या कर लेते हैं, कभी बाह्य परिस्थितियों का दबाव सहन न कर पाने के कारण अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं, और यदि उनके ये संबंध विजातीय या विधर्मी हों तो उनकी हत्या तक कर दी जाती है, और प्राय: वे सामाजिक या सांप्रदायिक झगड़े का रूप लेकर व्यापक सामाजिक विग्रह का कारण बन जाते हैं. ऐसे लड़के-लड़कियां हर कदम पर अपने सामने किसी न किसी रूप में किसी न किसी राजकुमार खत्री को खड़ा पाते हैं, जो या तो उन्हें अपनी मर्जी से चलने के लिए बाध्य कर देता है और उनके जीवन में हमेशा के लिए एक जहर घोल देता है अथवा उन्हें दैहिक तौर पर नष्ट कर देता है. राजकुमार खत्री वह जड़ मानसिकता है, जो स्वयं को बदलना नहीं चाहती.

इसके कारण हर नई पीढ़ी एक द्वैध का शिकार बनी रहती है-एक ओर शताब्दियों से पोषित जीवन मूल्यों से संचालित वह परंपरा है, जो लड़के-लड़कियों के आत्मनिर्णय पर नियंत्रण लगाती है और उन पर पारिवारिक, जातीय अथवा सांप्रदायिक रीति-रिवाजों के अनुसार आचरण करने का दबाव बनाती है, तो दूसरी ओर संविधान प्रदत्त वह वैयक्तिक स्वतंत्रता है, जिसका लाभ लेकर लड़के-लड़कियां अपनी पसंद के साथी के साथ स्वेच्छा से विवाह कर अपनी तरह से अपना जीवन जीना चाहते हैं. जहां मां-बाप अधिक उदार या समझदार हैं, वहां उन्हें इस तरह की अनुमति मिल जाती है, लेकिन ज्यादातर मामलों में उन्हें पारिवारिक विरोध का सामना करना पड़ता है. यह पारिवारिक विरोध कभी-कभी कितना विनाशक होता है, राजकुमार खत्री का प्रकरण इसका एक जीवंत उदाहरण है.

इसी का एक पहलू उस बाजारवादी संस्कृति का है, जिससे प्रसूत सिनेमा, टेलीविजन धारावाहिक, इंटरनेट जैसे उप-उत्पादों का रिमोट कंट्रोल नवीन और आरजू जैसे युवक-युवतियों को उकसावे और भड़कावे के मोड में रखता है. पारंपरिक संबंधों के सारे रोमांसक-रोमांचक प्रयोग करते रहने को समूचे सामाजिक विवेक को ताक पर रख देने को विवश करता रहता है. इधर कुंआ उधर खाई वाली यह वह स्थिति है, जिसमें देश का समूचा युवा वर्ग फंसा हुआ है. इस स्थिति में युवक-युवतियां अपराध भी करते हैं और अपराधों के शिकार भी होते हैं. देश की व्यवस्था के पास इस रोग का कोई उपचार नहीं है.

देश का कानून राजकुमार खत्री और नवीन खत्री जैसे लोगों को उनके भौतिक अपराध के लिए गिरफ्तार कर सकता है, उन्हें दंडित कर सकता है, लेकिन अपराध के पीछे की उनकी मानसिकता और उनके परिवेश को बदलने के लिए कुछ नहीं कर पाता. और जहां तक चुनावी राजनीति का सवाल है, तो यह बहुत गंदा खेल खेल रही है-यह एक ओर जड़ पारंपरिक मूल्यों को जाति-संप्रदाय के नाम पर बढ़ावा दे रही है, तो दूसरी ओर विकृत सांस्कृतिक उत्तेजनाओं को भी बढ़ावा दे रही है. इन स्थितियों के बीच फंसकर भारतीय परिवार, खासकर लड़कियां और उनके परिवार भारी कीमत चुका रहे हैं. सबसे दुखद यह है कि देश के जागृत विवेक के पास सिवाय चुपचाप तमाशा देखते रहने के कोई सार्थक विकल्प उपलब्ध नहीं है.

विभांशु दिव्याल
लेखक


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