इश्क का इंटरनेटी दोहन

Last Updated 13 Feb 2016 01:08:21 AM IST

वैलेंटाइन डे के आसपास इश्क हवा में है, अगर इसे इश्क कहा जा सके.


इश्क का इंटरनेटी दोहन

पर साथ में एक और संदेश हवा में है-संदेश यह है कि खरीदिए अपने लव के लिए गिफ्ट खरीदिए. गिफ्ट खरीदिए क्योंकि तमाम ई-कामर्स वेबसाइट पर इश्क के त्यौहार वैलेंटाइन डे पर तरह-तरह की डिस्काऊंट-स्कीम आफर कर रही हैं और इश्क फेसबुक के इंटरनेट वक्त में बहुत आसान हो गया और उससे भी ज्यादा आसान हो गई इंटरनेट पर शापिंग, चार क्लिक करके आप कोई भी आइटम खरीद कर अपने लव को भरोसा दिला सकते हैं कि देखो कितना, कितना प्यार है तुमसे. वैलेंटाइन डे के आसपास तमाम ई-कामर्स वेबसाइटें तरह-तरह के विज्ञापन अभियानों द्वारा इस आशय के संदेश दे रही हैं कि, खरीदो क्योंकि इश्क करते हो.

इश्क का त्योहार हो, होली-दीवाली-दशहरा का त्यौहार; अब ई-कॉमर्स वेबसाइटें उसे खरीदारी का त्योहार बनाने में तुल जाती हैं. ऐसा नहीं है कि जब ऑनलाइन शापिंग नहीं थी, तब त्योहारों पर खरीदारी के संदेश नहीं दिए जाते थे. दीवाली, इयर इंड पर स्पेशल डिस्काऊंट तो बरसों से चलते आ रहे हैं. पर अब एक बुनियादी फर्क यह आ गया है बाजार कहीं दूर नहीं है, आपकी जेब में स्मार्टफोन में स्नैपडील, एमेजन, फ्लिपकार्ट समेत तमाम ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर है, कुछेक क्लिक दूर बस. बाजार इतना करीब पहले कभी नहीं था. इंटरनेट की कृपा से बाजार में आपको जाने की जरूरत नहीं है, वह तो आपके मोबाइल में पड़ा है, बस उठकर कुछ क्लिक मार दीजिए. ये बाजार आपके कौन से इमोशन को कब भुना ले जाए, पता भी ना चलेगा. फरवरी का महीना प्यार का महीना कहलाता है. वो भी ऐसे प्यार का जिसके लिए आप कुछ भी कर गुजरें. बीवी है तो भले दस बार सोच लेंगे उसे कोई गिफ्ट देने से, लेकिन बात जब प्रेमिका की हो, तो फिर तो कहने ही क्या. प्यार के इसी आवेग को कैश कराती हैं ई-कॉमर्स कंपनियां.

सोशल मीडिया से लेकर आपके ई-मेल तक सबमें कुछ ना कुछ बेचने के मैसेज जरूर होंगे, फिर भले ही उस प्रोडक्ट का दूर-दूर तक वास्ता आपके प्यार से ना हो. भारत में ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते बाजार के पीछे बहुत कुछ मोबाइल क्रांति का हाथ है. अब जहां हर हाथ में स्मार्ट फोन पहुंच गए हैं, वहीं ऑनलाइन स्टोर्स के मोबाइल एप्लीकेशन यानी एप भी लोगों को आकर्षित करते हैं. ये एप इतने यूजर-फ्रेंडली होते हैं कि, एक कम पढ़े-लिखे इंसान को भी इस पर शॉपिंग करना आसान हो जाता है. अमेजन जैसी कंपनियां जहां लोगों को ऑनलाइन शॉपिंग के फायदे से लेकर ऑनलाइन शॉपिंग कैसे करें; जैसी मूलभूत बातों को समझा रही हैं, वहीं फ्लिपकार्ट छोटे शहरों के व्यापारियों को उनके सामान की ग्लोबल पहुंच का फायदा समझा रही है. ई-कॉमर्स कंपनियों की वजह से लोगों में ऑनलाइन शॉपिंग की आदत बढ़ी है.

पहले नजर में तो ये आदत पैसा और समय दोनों को बचने वाली लगती है, लेकिन जैसे-जैसे इन आदतों को परखिए, कई मामलों में यह एक बीमारी सी लगती है. ऑनलाइन शॉपिंग में रोज आने वाले सेल के विज्ञापन चीजों के दाम इतने घटा कर दिखाते हैं कि लोगों को लगता है कि वो बहुत सस्ते में सामान खरीद रहे हैं और ये विज्ञापन इस तरह दिखाए जाते हैं कि विज्ञापन देखनेवाले को लगने लगता है कि अगर उसी समय उसे ना खरीदा गया तो वो डील इतने सस्ते में फिर कभी ना मिलने की, लेकिन हकीकत इन सबसे बिलकुल ही हट कर होती है. आपको लगभग सारे ही सामान, कुछ-कुछ समयान्तराल पर उसी कीमत में मिल जाएंगे. और इन सामानों पर दिखाई जा रही छूट भी वास्तविक नहीं होती, ज्यादातर मामलों में तो ये होता है कि कंपनी जो कीमत छूट के बाद बताती है वो ही उसकी वास्तविक कीमत होती है. मतलब ये कि जो सामान खरीद कर आप खुश होते हैं कि आप दुनिया जीत आए, वो वास्तव में अपने वास्तविक या सामान्य मूल्य पर खरीदी गई होती है.

शोध रिपोर्ट कहती हैं कि आज के समय में बढ़ता हुआ अकेलापन और डिप्रेशन ऑनलाइन शॉपिंग की आदत को बढ़ा रहा है. लोग अपने अकेलेपन से बचने के लिए ऑनलाइन स्टोर्स से शॉपिंग करते हैं. कभी सस्ते के झांसे में और कभी अपने ही वजूद से लड़ते हुए लोग ऐसा सामान खरीद लेते हैं, जिनकी उन्हें कोई जरूरत ही नहीं होती. ऑनलाइन शॉपिंग की बढ़ती हुई आदत के पीछे एक और महत्त्वपूर्ण कारण है, ऑनलाइन पेमेंट की सुविधा. यों देखा जाए तो ऑनलाइन पेमेंट बहुत ही सुविधाजनक है. सिर्फ  कुछ जरूरी जानकारियां फीड कीजिए और हो गया पेमेंट. ना नकद रखने का झमेला ना कोई और, पैसा सीधा आपके बैंक से निकला और पहुंच गया ई-कॉमर्स कंपनियों के खाते में, लेकिन ये ऑनलाइन पेमेंट ही ऑनलाइन शॉपिंग की बीमारी को बढ़ा रहा है. ऑनलाइन पेमेंट में जो भी पैसा आप सामान की खरीदारी के लिए अदा करते हैं, वो सिर्फ  एक नंबर होता है, जबकि अगर वही पैसा आप अपने हाथ से गिन कर किसी को दीजिए, तो उसकी वास्तविक कीमत महसूस होती है.

यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि यदि हम पैसे को अपने हाथ से गिन कर खर्च करते हैं तो हम उसकी कीमत को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. ऑनलाइन शॉपिंग में पेमेंट बस कुछ क्लिक्स पर होता है और ऐसे में शॉपिंग पर खर्चे जाने वाले पैसे की सही कीमत ही खरीदार नहीं समझ पाता. यानी अगर किसी मोबाइल को खरीदने के लिए पचास हजार रु पये कैश जेब से निकालते हैं, तो जेब से जाते हुए पचास हजार साफ दिखायी देते हैं, महसूस होते हैं. पर कार्ड से कुछ क्लिक के साथ पचास हजार जाएं, तो वह फील नहीं होता. इसके साथ ही आसान किस्तों पर सामान खरीदने की सुविधा भी लोगों में ऑनलाइन शॉपिंग को बढ़ावा दे रही है.

जब आपको ये चिंता ना हो कि आपके अकाउंट में उस समय सामान खरीदने लायक पर्याप्त राशि है भी या नहीं, तो कौन सोचता है कि सामान का खरीदा जाना कितना जरूरी है. हालांकि ये बात अलग है कि जैसे ही वो किस्त आपके अकाउंट से कटनी शुरू होती हैं और सामान आपके घर बेकार पड़ा रहता है, तब एक बार ये ख्याल जरूर आता है कि अब से कुछ भी खरीदारी सोच-समझ कर करेंगे, लेकिन ऐसा होता नहीं है.

ई-कॉमर्स कंपनियों ने शॉपिंग को बहुत ज्यादा सुविधाजनक बना दिया है. बस जरूरत है तो खरीदारी के समय सतर्कता की और सिर्फ  जरूरत का सामान खरीदने की. ऑनलाइन शॉपिंग जिस तरह से बड़े शहरों से निकल कर देश के छोटे शहरों और मध्यम-वर्गीय और निम्न-वर्गीय लोगों के बीच जगह बना रही है, वहां ये जरूरी हो जाता है कि लोगों को ऑनलाइन शॉपिंग के फायदे बताने के साथ-साथ ये भी बताया जाए कि ऑनलाइन शॉपिंग के समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? जिससे कि मेहनत से कमाए पैसे से खरीदी चीज खुशी देकर जाए, ना कि अफसोस. वैलंटाइन डे यानी इश्क के त्यौहार को खरीदारी का त्योहार बतानेवाले कुछेक हफ्ते बाद होली को भी खरीदारी त्योहार बताएंगे, यह जरूर याद रखिएगा.

रेशू वर्मा
लेखक


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