हेडली खुलासा : जवाबदेही पाक और दुनिया की

Last Updated 11 Feb 2016 02:57:05 AM IST

डेविड हेडली का भारतीय अदालत में साक्ष्य पाकिस्तान के सैन्य खुफिया प्रतिष्ठान द्वारा बरपा जा सकने वाले जिहादी आतंक का खाका खींचने के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम है.


हेडली खुलासा : जवाबदेही पाक और दुनिया की

आम धारणा, कि डेविड हेडली के खुलासे से कोई नये तथ्य पता नहीं चले हैं, के बावजूद साक्ष्य से मिली जानकारी के अनेक महत्त्वपूर्ण आयाम हैं.

जहां तक भारतीय लोगों की आम धारणा का संबंध है, तो यह यकीनन ‘पाकिस्तान’ की हताशा और उसे कठघरे में खड़ा सकने वाली स्थितियों को ज्यादा तवज्जो देती है. निहित स्वार्थों वाले ‘कैंडल ब्रिगेड’ को छोड़कर अधिकांश भारतीयों का मत है कि पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान जिहाद का जनक और एक नाकाम देश का शरारती संगठन है. इसलिए पाकिस्तान की शै पर किए जाने वाले तमाम आतंकी हमलों संबंधी ‘प्रमाणों’ और ‘साक्ष्यों’ का यह समूचा मुद्दा पाकिस्तान के लिए बेमानी है-यह अमेरिका के नेतृत्व में विश्व समुदाय और उसके पश्चिमी सहयोगी देशों के लिए जरूर आंखें खोलना वाला हो सकता है. हेडली का भारतीय अदालत में खुलासा राजनयिक उपलब्धि है.

भारत के लिए अवसर है कि वह अमेरिका या पश्चिमी जगत को स्पष्ट संकेत कर दे कि वह अब पश्चिमी हितों को प्रभावित करने वाले आतंकवादियों को ही आंख मूंदकर खलनायक के रूप में स्वीकार नहीं करेगा. इससे पूर्व, भारत के पास 26/11 हमले में पाकिस्तान की संबद्धता की बाबत अजमल कसाब के रूप में हाड़-मांस का सबूत था. अब जो सबूत मिला है, वह उस ‘असली षड्यंत्रकारी’ की ओर से मुहैया कराया गया है, जो अमेरिकी धरती से ही जुड़ा है. इसलिए पश्चिमी जगत ‘आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई’ में  अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मद्देनजर उसकी विश्वसनीयता कीमत पर इसको भी नजरअंदाज कर सकता है.

जैसी कि आज जो स्थिति है, उसके मद्देनजर यह विश्वसनीयता गंभीर सवाल के दरपेश है. भारत को उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान को ज्यादा नहीं तो उतना तो दंडित या प्रतिबंधित करेगा ही जितना कि उसने इराक, ईरान, सीरिया या म्यांमार को किया था. दंडित किए जाने में भेदभाव का रवैया भारत के हितों और सुरक्षा को आघात पहुंचाता है. अभी तक भारत पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई से संभवत: इसलिए बचा कि उसके  पक्ष में ‘पश्चिमी समुदाय’ तमाम अपीलें करता रहा है. यह कहते हुए कि अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई को देखते हुए पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई से परहेज किया जाए, लेकिन भारत अब इस प्रकार के विचारों और जरूरतों को अपनी सुरक्षा के आड़े नहीं आने दे सकता.

हेडली का साक्ष्य और इसके लिए अपनाए गए वैधानिक तरीके से एक सभ्य और जिम्मेदार देश के रूप में भारत के रुख की पुष्टि होती है. विश्व बिरादरी इसके इस रुख का सम्मान नहीं करती या इसके प्रति सकारात्मक रवैया नहीं दिखाती तो पक्की बात है कि ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग का वजूद ही नहीं रह जाएगा. हेडली के खुलासे से पाकिस्तान में पनपे आतंकवाद के अनेक चेहरे बेनकाब हुए हैं. आतंकी हमलों के तीन स्पष्ट हिस्सों-विचार करना, साजिश करना और साजिश को अंजाम देना-पर इस खुलासे ने रोशनी डाली है. 26/11  हमले का विचार उच्चतम, मुशर्रफ के स्तर पर हुआ था, जिनके पास सैन्य तानाशाह होने के नाते सैन्य-खुफिया प्रष्ठिान की पूरी कमान थी. वही थे, जिन्होंने 26/11 हमले को हिंदू-आतंक का मुलम्मा चढ़ाने का फैसला किया हो, लेकिन अजमल कसाब के पकड़ में आ जाने के कारण  पाकिस्तानी प्रतिष्ठान यह शैतानी मुलम्मा चढ़ाने में करीब-करीब सफल रहा. इस काम में उसे कुछ पत्रकारों, राजनेताओं और संभवत: कुछ पुलिस अधिकारियों से भी मदद मिली.

इससे पूर्व, हेडली ने एनआईए के समक्ष खुलासा किया था कि 2007 में भारत के अपने अनेक दौरों के दौरान उसने उपराष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट और सीबीआई मुख्यालय की टोह भी ली थी. मजे की बात है कि उन्हीं दिनों भारत में अंग्रेजी के एक चैनल ‘गपोड़’ किस्म के स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर एक स्टोरी चलाई थी जिसमें बताया गया था कि कुछ कथित ‘हिंदू आतंकी’ धार्मिक कारणों से उपराष्ट्रपति को निशाना बना रहे हैं, लेकिन मात्र 24 घंटों के भीतर ही यह स्टोरी हवा हो गई. इसलिए इस सवाल का जवाब हेडली दे सकता है कि क्यों पाकिस्तान और भारत में भी कुछ तत्त्व ऐसा हमला करने को आमादा थे, जिससे कि ‘हिंदू आतंक’ का हौवा बन जाए.

हेडली का खुलासा जिहादी आतंक पनपाने के लिए पाकिस्तान में पसरे मुफीद माहौल पर टिप्पणी है. इससे पता चलता है कि पढ़े-लिखे युवाओं को आतंकी योजनाएं बनाने और उन्हें अंजाम देने में इस्तेमाल करने की गरज से मदरसों में उन्हें मानसिक रूप से तैयार किया जाता है. ये ही युवा फिदायीन हमलावरों के रूप में इस्तेमाल होते हैं जबकि मुशर्रफ, हेडली और हाफिज सईद जैसे अन्य आतंकी ऐश की जिंदगी गुजार रहे हैं. हेडली ने भारत की अपनी सात यात्राओं के दौरान 26/11 की शुरुआती योजना तैयार की थी. बाद में उसे हाफिज सईद अैर लश्कर ए तैयबा से मदद मिली. नहीं लगता कि हेडली कोई रणनीतिक जानकारी मुहैया कराएगा. भले ही उसे इसकी जानकारी हो.

कारण, उसने ऐसा किया तो पाकिस्तान ही नहीं बल्कि अन्य अनेकों की स्थिति भी उलझन भरी हो सकती है. लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि हेडली कोई आम आतंकी नहीं है. वह छद्म-आतंकवाद के संजाल का प्रतीक है, जो पाकिस्तान की सैन्य खुफिया प्रतिष्ठान की कारगुजारियों को बयां करता है. नवाज शरीफ ने औपचारिक रूप से कहा है कि 1992 में पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख और आईएसआई के महानिदेशक ने उनके सामने एक प्रस्ताव रखा था जिसमें ‘देश के सैन्य अभियानों के लिए धन की व्यवस्था करने को एक विस्तृत खाका’ था.

हेडली छद्म-आतंक नेटवर्क या घिनौनी हरकत पर उतरे विभाग की ऊपरी परत से जुड़ा है. उसने अपना नाम दाऊद सईद गिलानी से बदल लिया है, ताकि नारकोटिक्स और आतंकी गतिविधियों को अच्छे से अंजाम दे सके. वह दोहरे कामों को  अंजाम देने वाला एजेंट बन गया था. इसलिए यूएस ड्रग इंफोर्समेंट एजेंसी ने भी हेरोइन की तस्करी के आरोपों में उसकी गिरफ्तारी के बाद उससे पूछताछ की है. बताया जाता है कि उसने आईएसआई को खासा धन मुहैया कराया है.

पाकिस्तान में हेडली की पहुंच और रुतबा असाधारण है. वह पाकिस्तान के हस्सन अब्दल स्थित प्रतिष्ठित  कैडेट कॉलेज में पढ़ा था. उसके सहपाठी 26/11 के समय सेना में ब्रिगेडियर और जनरल तक के पदों पर पहुंच चुके थे. उसका सौतेला भाई डेनियल गिलानी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी का प्रवक्ता था. उसके पिता भी प्रसिद्ध राजनयिक और ब्रॉडकास्टर थे. अमेरिका की सामरिक अनुमति बिना उनके खुलासे या साक्ष्य पेश करने की स्थिति नहीं बन पाती. बहरहाल, इस स्थिति ने पाकिस्तान को बेचारा बना छोड़ा है. क्या उसमें हाफिज सईद और मौलाना मसूद अजहर पर कार्रवाई करने का विवेक जागेगा? लगता तो नहीं.

(लेखक पूर्व रॉ अधिकारी हैं)

आर.एस.एन. सिंह
लेखक


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