अथ केजरीवाल साल कथा

Last Updated 10 Feb 2016 02:16:57 AM IST

क्या आप दिल्ली में जहरीली हवा को कम करने के लिए सम-विषम नंबरों वाली कारों को अलग-अलग दिन चलाने के अभियान को कहेंगे?


अथ केजरीवाल साल कथा

सरकार बनाने के फौरन बाद अरविंद केजरीवाल इलाज के लिए बेंगलुरु रवाना हो गए थे और अब संयोग देखिए कि सरकार के साल भर पूरे होने पर फिर वे इलाज कराकर बेंगलुरु से लौटे हैं. पहले साल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपलब्धि क्या है, अगर कोई यह पूछे तो क्या जवाब होगा?

क्या आप दिल्ली में जहरीली हवा को कम करने के लिए सम-विषम नंबरों वाली कारों को अलग-अलग दिन चलाने के अभियान को कहेंगे? या बिजली-पानी की दरों को सब्सिडी देकर देश में करीब-करीब सबसे सस्ती बनाए रखने के फैसले को? या, फिर उपराज्यपाल नजीब जंग और दिल्ली पुलिस आयुक्त के बहाने केंद्र से टकराव को? या भाजपा को नगर निगम से विस्थापित करने की उनकी रणनीति को, चाहे इसके नतीजतन शहर में अराजक हालात ही क्यों न पैदा हो गए हों?

सच पूछिए तो उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि इस दौरान उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बरक्स खड़ा करने में बाकी सबको पीछे छोड़ दिया. उन्होंने साबित किया कि वे आज देश में सबसे चतुर नेता हैं. वे अपने मंसूबे में कामयाब होंगे या नहीं, यह अलग मामला है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे बड़े करीने से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं.  मोदी और भाजपा के खिलाफ खड़े होने का कोई मौका तो दूसरे विरोधी भी नहीं छोड़ते, मगर भला कौन मोदी को ‘मनोरोगी’ तक कहने की सीमा तक जा सकता है. उनकी सरकार 14 फरवरी को साल भर पूरे कर रही है और इस दौरान अधिकांश मौकों पर वे प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार पर हमले करके सुर्खियों में आते रहे हैं.

ठनी चाहे उपराज्यपाल नजीब जंग या दिल्ली पुलिस आयुक्त से हो, उनके निशाने पर मोदी होते हैं. उन्होंने दादरी कांड का भी जैसे अपने प्रचार में इस्तेमाल किया, वह दूसरों को कहां सूझा! कई दिनों तक रेडियो-टीवी पर विज्ञापन के जरिए ‘आम आदमी’ केजरीवाल की बोली सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ गूंजती रही. फरवरी 2014 में विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित जनादेश हासिल करने के बाद केजरीवाल उन्हीं मामलों के लिए ज्यादा सुर्खियां बटोर रहे हैं, जो उनके अधीन नहीं हैं. केजरीवाल इतने नासमझ तो नहीं हैं कि यह न समझें कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है और यह केंद्र शासित प्रदेश है. भले यहां एक निर्वाचित मुख्यमंत्री है. यही व्यवस्था पुडुचेरी में भी है, लेकिन उनके लिए मुद्दा सिर्फ अफसरशाही पर या वैधानिक अधिकार हासिल करने का ही नहीं है. इसे उन्होंने अपनी अगली राजनीति का भी औजार बना डाला. वे अपने मौजूदा पद का इस्तेमाल इस तरह करना चाहते हैं, ताकि लोग उन्हें देश के अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखें. उनका अंतिम लक्ष्य दिल्ली पर मुख्यमंत्री के तई नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री की तरह राज करने का लगता है.

हममें से कितने लोगों को दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान केजरीवाल के 70 सूत्री एजेंडे की याद है? क्या हमने सोचा कि दिल्ली सरकार ने अपने उन वादों को पूरा करने की दिशा में कितना काम किया? स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, सड़कें और साफ-सफाई के मामले में क्या प्रगति हुई है? ये मामले सीधे दिल्ली सरकार से जुड़े हैं. लोकपाल बिल का क्या हुआ? क्या सार्वजनिक जगहों और बाजारों में मुफ्त वाई-फाई उपलब्ध हो पाई है? बहुप्रचारित दिल्ली डॉयलाग के जरिए मुफ्त वाई-फाई और शिक्षा को उन्होंने नौजवानों को आकषिर्त करने के लिए अपना सबसे प्राथमिक मुद्दा बनाया था. कहा था कि वे सरकारी स्कूलों को ही इतना बढ़िया बना देंगे कि लोग पब्लिक स्कूलों को भूल जाएंगे, लेकिन साल भर बाद दिल्ली सरकार पब्लिक स्कूलों से ही मैनेजमेंट कोटा और नर्सरी दाखिलों पर उलझी नजर आती है.

बेशक, पब्लिक स्कूलों की मनमानी रोकना और उन्हें रास्ते पर लाना भी अहमियत रखता है, लेकिन सवाल है कि सरकारी स्कूलों को दुर्दशा से निकालने के लिए क्या किया गया? इसी तरह, उस वादे की दिशा में कितना काम आगे बढ़ा कि दिल्ली का कोई बच्चा उच्च शिक्षा से वंचित नहीं रह पाएगा और दिल्ली के हर बच्चे को कॉलेजों वगैरह में दाखिला मिलेगा? उच्च शिक्षा के लिए सरकार ने बैंकों से शिक्षा कर्ज मुहैया कराने और किश्तें सरकार के जरिए भरने का वादा किया था. ऐसा ही वादा रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए भी किया गया था. अस्पतालों में मुफ्त दवा और इलाज की सहूलियत का भी किया गया था.  ये सभी कथित ‘दिल्ली डॉयलाग’ से निकले मुद्दे थे, जिसे जनता से पूछकर तय किया गया. इसके नाम पर ‘दिल्ली डॉयलाग कमीशन’ जरूर बन गया. ऐसे ही पार्टी के दूसरे नेताओं को तरह-तरह की व्यवस्थाओं के तहत सरकारी लाभ देने के तरीके निकाले गए हैं.

इस ‘नई राजनीति’ से ही जुड़ा एक और वादा है जिसकी भरपाई करने का केजरीवाल दम भर सकते हैं. उन्होंने बिजली और पानी सस्ती दर पर मुहैया कराने का अपना वादा जरूर पूरा किया, लेकिन वह भी सब्सिडी देकर ही. इसके विपरीत, असली वादा यह था कि वे डिस्कॉम कंपनियों का ऑडिट करवाएंगे और भ्रष्टाचार मिटाकर बिजली, पानी की सहूलियत सस्ती दर में मुहैया कराएंगे. यह बेहद गंभीर मुद्दा था, जो ‘याराना पूंजीवाद’ से जुड़ा था और इस पूरी गैर-बराबरी वाली व्यवस्था पर सवाल उठा रहा था. केजरीवाल कह सकते हैं कि इसमें अदालतें आड़े आ रही हैं, लेकिन उसके लिए आपने और इंतजाम क्या किए? कहां गया आपका लोकपाल? अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान ये सवाल उभरे थे और देश भर में बड़ी उम्मीदें पैदा हुई थीं. इससे देश के कुछ तेज नौजवान भी आंदोलित हुए थे.

आखिर केजरीवाल का लंबे समय का लक्ष्य है क्या? केजरीवाल भाजपा और मोदी के खिलाफ कोई मौका जाया नहीं करते. वे देश भर में कहीं भी मोदी के खिलाफ थोड़ी भी चिंगारी देखते हैं तो वहां पहुंच जाते हैं. इन दिनों केजरीवाल अफसरशाही पर नियंत्रण के लिए लड़ रहे हैं, कल वे केंद्र से अधिक अनुदान की मांग करेंगे. और उसके बाद वे दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग के साथ सड़कों पर उतर जाएंगे. इस प्रक्रिया में इतनी अराजकता फैल जाएगी कि केजरीवाल मनाने लगेंगे कि मोदी सरकार उन्हें हटा दे. अगर केजरीवाल सरकार को केंद्र बर्खास्त कर देता है तो वे शहादत का बाना पहन कर देश में गैर-भाजपा दलों के बीच ऊंचा स्थान हासिल कर लेंगे. तब मामला मोदी बनाम राहुल का नहीं होगा, न ही मोदी बनाम नीतीश का होगा. मामला मोदी बनाम केजरीवाल का बन जाएगा. और यही उनका आखिरी लक्ष्य है.

हरिमोहन मिश्र
लेखक


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