असहिष्णुता से सतर्क रहने की जरूरत

Last Updated 30 Nov 2015 04:59:08 AM IST

देश में इस समय असहिष्णुता को लेकर बवाल मचा हुआ है. जहां लेखक-साहित्यकार अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं, वहीं बॉलीवुड में भी भूचाल आ गया है.


असहिष्णुता से सतर्क रहने की जरूरत (फाइल फोटो)

अभिनेता आमिर खान के इस बयान के बाद कि ‘असहिष्णुता से भयभीत मेरी पत्नी ने मुझे देश छोड़ने तक कह दिया था’, बॉलीवुड की बड़ी हस्तियों के साथ ही भारतीय जनता पार्टी ने भी आमिर खान को निशाने पर ले लिया है. असहिष्णुता को लेकर प्रश्न उठता है कि जिस शब्द को लेकर देश का बड़ा वर्ग माथापच्ची कर रहा है, उस शब्द को आम आदमी तो दूर की बात है, बहुसंख्यक पढ़े-लिखे लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं. इन हालात में बवाल मचाने से ज्यादा असहिष्णुता के बारे में लोगों को जाग्रत करने की जरूरत है.

जरूरत इस बात की है कि कैसे इस पर अंकुश लगाया जाए? कैसे यह समस्या बढ़ी है? इस समस्या के बढ़ने की मुख्य वजह क्या है? ऐसे कौन लोग हैं?  असहिष्णुता के बढ़ने का दारोमदार किसी एक वर्ग या कौम पर नहीं है, यह बात साफ है. जनता और सरकार को यह बताया भी जाना चाहिए कि इस ब्रह्मपिशाच से मुक्ति कैसे और किस योजना के तहत मिल पाएगी.

असहिष्णुता के विरोध के माध्यम से केंद्र सरकार बुद्धिजीवियों के निशाने पर है. यदि लेखकों व साहित्यकारों की बात करें तो उनके अनुसार गलत बात का विरोध करने पर समाजसेवकों, लेखकों व साहित्यकारों का दमन किया जा रहा है. यहां तक कि उनकी हत्या तक करने से गुरेज नहीं किया जा रहा है.

इसके जिम्मेदार ये लोग केंद्र सरकार को मानते हैं. एमएम कलबुर्गी, नरेंद्र दोभालकर और गोविंद पानसरे की हत्या को भी असहिष्णुता से जोड़कर देखा जा रहा है.

असहिष्णुता देश में ऐसा मुद्दा बन गया है कि प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को सफाई देनी पड़ रही है. वैसे तो देश में अपने-अपने तरीके से असहिष्णुता का विरोध किया जा रहा है पर सबसे अधिक मुखर वामपंथी लेखक व साहित्यकार हैं. स्थिति यह हो गई है कि गत दिनों बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ विरोध जता रहे भारतीय लेखकों के पक्ष में वाशिंगटन में लेखकों के वैश्विक संघ ने केंद्र सरकार से अपील की कि इन लोगों को बेहतर सुरक्षा, अभिव्यक्ति व स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान किया जाए.

कनाडा के क्यूबेक सिटी में हुई ‘पेन इंटरनेशनल’ की 81वीं कांग्रेस में भाग लेने वाले 73 देशों के प्रतिनिधियों ने प्रतिष्ठित पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों व साहित्यकारों के साथ एकजुटता दिखाई. पेन इंटरनेशनल के अध्यक्ष जॉन राल्स्टन सॉल ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और साहित्य अकादमी को पत्र लिखकर केंद्र  सरकार से लेखकों और कलाकारों समेत हर किसी के अधिकारों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की अपील की.

असहिष्णुता का विरोध करने वाले लेखक, साहित्यकार, अभिनेता व अन्य लोग जो केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं, यदि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने के बजाय समाज में असहिष्णुता को खत्म करने पर बल दें तो यह ज्यादा कारगर होगा. केंद्र सरकार को झुकना भी पड़ेगा. पर देखा जाए तो किसी स्तर पर यह काम नहीं हो रहा है. अलबत्ता, विरोध के लिए विरोध हो रहा है.

असहिष्णुता का विरोध करने वाले ये वे लोग हैं, जिनकी कलम व विचार से समाज में बदलाव की बयार बहती  है. यह वर्ग फिर क्यों केंद्र सरकार की ओर आशा भरी निगाह से देख रहा है? वैसे भी इस वर्ग की समाज के प्रति बड़ी जवाबदेही है -पुरस्कार लौटाने व बयानबाजी करने के बदले. उन्हें चाहिए कि वह अपनी कलम से विचार फैलाने का काम करें ताकि जनता को उपयोगी-अनुपयोगी, वैज्ञानिक-अवैज्ञानिकता में फर्क का पता चल सके.

जब तक यह काम पूरा नहीं हो जाता, जनता या पाठक जागरूक होकर उनकी दलीलों से पूरी तरह सहमत नहीं हो जाते. उनको आत्मसात नहीं कर लेते, बुद्धिजीवी बिरादरी को अपना काम जारी रखना चाहिए. यदि यह वर्ग इस काम को कर ले गया तो ये लोग जनता से असली रिवार्ड पाएंगे, जो कोई सरकार व संस्था नहीं दे सकती है.

 

चरण सिंह राजपूत


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