मध्य प्रदेश के ये दस साल

Last Updated 28 Nov 2015 02:19:03 AM IST

शर्मीले, शांत, चतुर, कूटनीतिज्ञ, कर्मठ और लोकप्रिय-शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में आज दस साल पूरे करने जा रहे हैं.


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (फाइल फोटो)

मुझे याद है कि जब नवम्बर की राजनीतिक सरगर्मियों वाली एक शाम हम सभी पत्रकार टकटकी लगाए अटल बिहारी वाजपेयी के घर के बाहर इंतजार कर रहे थे कि बाबू लालू गौर के बाद मध्य प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? तभी 6, कृष्ण मेनन मार्ग से प्रमोद महाजन और अरुण जेटली बाहर निकले और कहा कि मध्य प्रदेश में विधायक दल के नेता शिवराज सिंह चौहान होंगे.

हर किसी के मन में इसे लेकर अंदेशा था कि क्या उमा भारती के वज्र विरोध को शिवराज झेल पाएंगे! खैर, उसके बाद सबको पता है कि अपने-पराए सभी को साथ लेकर चलने वाले शिवराज सिंह ने इन दस सालों में तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उनका चातुर्य व कूटनीति उनके बाकी गुणों पर भारी पड़ने लगी है. तभी तो पिछले लोकसभा चुनाव में वह कब नरेन्द्र मोदी की बराबरी पर आकर खड़े हो गए, किसी को पता भी नहीं चला! खैर, शिवराज की एक और खासियत यह है कि वह कछुए को ‘फॉलो’ करते हैं. उनकी गति कछुए की तरह होती है और जरूरत पड़ने पर कछुए की तरह ‘कवर’ में वापस भी हो जाते हैं.  बहरहाल, ऐसा क्या हुआ कि दस साल में मध्य प्रदेश के विकास पथ पर फर्राटा लगा रही शिवराज की गाड़ी में झाबुआ-रतलाम नाम का डेंट लग गया. 10 साल पूरे होने पर जो पार्टी एक बड़े जश्न की तैयारी कर रही थी, जिसमें नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को शामिल होना था, उसे निरस्त किया गया. यह सामान्य नहीं है. शिवराज भी यही मानते होंगे.

गलती शिवराज की भी नहीं है. उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल की पिच पर जितने भी चौक्के-छक्के मारे, सभी कांग्रेस की ही बॉल पर थे. मसलन, अपने दस में से आठ साल के कार्यकाल में वह मध्य प्रदेश की जनता को हर चुनाव में दिग्गी शासनकाल की कमियां, यूपीए की केंद्र सरकार से असहयोग, मध्य प्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार जैसी बातों को जनता के यकीन में बदल पाए. उन्होंने अपनी इन दलीलों पर यकीन दिलाने के लिए मध्य प्रदेश की सड़कों से लेकर दिल्ली में संसद भवन और जंतर-मंतर तक युद्ध स्तर पर धरने-प्रदर्शन किए. इनमें शिवराज समेत उनके मंत्री-विधायक और सांसद सभी बढ़-चढ़कर शामिल हुए.



पर अब खेल उल्टा है. केंद्र में बीजेपी की सरकार आए 18 महीने हो रहे हैं. मध्य प्रदेश की सरकार को केंद्र से उतनी राशि और योजनाएं भी नहीं मिल पा रही हैं, जितनी यूपीए सरकार में मिलती थीं. उल्टा कई योजनाओं में फंड की कटौती की गई. कई बंद होने के कगार पर हैं. फंड के साथ-साथ मध्य प्रदेश में सूखे का संकट भी है. शिवराज करें भी तो क्या करें. विधायकों-सांसदों का प्रदेश में सहयोग के नाम पर विरोध-प्रदर्शन तो छोड़िए, आवाज तक नहीं निकल रही. शिवराज तो आज भी लोकप्रिय हैं, पर उनके मंत्री, विधायक और बड़ी तादाद ऐसे प्रशासनिक अमले की है, जो उनकी लोकप्रियता में पलीता लगाने से नहीं चूक रहे हैं.

मजेदार बात है कि कांग्रेस जहां थी, वहीं ठहरी हुई है. शायद अभी दौड़ना नहीं चाहती. वह चाहती है कि पहले शिवराज दौड़ कर थक जाएं. पर यह भी सच्चाई है कि मध्य प्रदेश में शिवराज को अगर लोकप्रियता को कायम रखना है, तो मुझे लगता है कि चौहान को कार्यशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा. वह अपने मंत्रिमंडल के मंत्रियों का आंतरिक सर्वे कराएं. जिनकी छवि राज्य में जनसेवक कम और व्यापारी के रूप में बन गई है, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाएं और उनकी जगह नए और ऊर्जावान लोगों को मौका दें.

 फिलहाल, अपने मुख्यमंत्री सचिवालय को आरएसएस से दूर ही रखना होगा और कटु आलोचकों को सुनना होगा. बुजुर्ग ऐसे ही थोड़े न कह गए हैं-निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाए, और अंत में शिवराज सिंह चौहान को उनके 10 साल के मुख्यमंत्रित्व काल पूरा करने पर बधाई और शुभकामनाएं.

 

 

 

मनोज मनु
‘समय’ संपादक


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