150 सालों में धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ा

Last Updated 28 Nov 2015 01:42:41 AM IST

30 नवम्बर से 11 दिसम्बर तक पेरिस में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कोप-21) से ठीक पहले विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने धरती के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी का खुलासा किया है.


धरती के तापमान में वृद्धि (फाइल फोटो)

डब्ल्यूएमओ  के मुताबिक, 2011 से 2015 तक के पांच साल अब के सबसे गर्म साल रहे. इस गर्मी के मुख्य कारण मानव निर्मित वजहें और अलनीनो प्रभाव हैं. कोपेनहेगन सम्मेलन के बाद संयुक्त राष्ट्र ने सभी राष्ट्राध्यक्षों को सम्मेलन में आमंत्रित किया है, क्योंकि पेरिस सम्मेलन में सहमति बनेगी तो सभी देश जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य होंगे.

पिछले साल लीमा में हुए सम्मेलन में सभी देशों से कहा गया था कि वे अपने अपने लक्ष्यों का खुलासा करें. इस बार अच्छी बात है कि सभी देशों ने अपने अपने लक्ष्य दे दिए हैं. लेकिन पूरे विश्व के लक्ष्य मिला भी दिए जाएं तो यह धरती के तापमान को वर्ष 2100 तक 2 डिग्री तक बढ़ने से रोकने के लिए काफी नहीं है. इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों से अपील की है कि अपने लक्ष्यों में बढ़ोतरी करें, नहीं तो दुनिया को संकट से बचाना मुश्किल हो जाएगा.

इस बीच, डब्ल्यूएमओ ने पेरिस सम्मेलन के तैयार आंकड़ों में बताया कि औद्योगिक युग 1880 से पहले और औद्योगिकीकरण के बाद से लेकर अब तक धरती के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है. डब्ल्यूएमओ ने कहा कि मानव निर्मित कारणों यानी उद्योग धंधों, वाहनों व जीवाश्म ऊर्जा के अत्यधिक उपयोग के कारण धरती की सतह का तापमान और भी बढ़ा है. 1880 की तुलना में 2015 में सतह के तापमान में 14 डिग्री सेल्सियस का अंतर आ गया है.



धरती के तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) कोशिश कर रहा है कि दुनिया के देश एक मत हो और किसी सहमति पर पहुंचें. जिस तरह से सभी राष्ट्राध्यक्षों ने पेरिस पंहुचने पर सहमति व्यक्त की है, उससे लगता है कि कोई संधि हो सकती है. भारत की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मेलन में भाग लेंगे. विदेश मंत्री पेरिस के लिए रवाना हो चुकी हैं और पर्यावरण एवं वन मंत्री प्रधानमंत्री के साथ जाएंगे.

भारत ने 2030 तक अपनी कार्बन उत्सर्जन गहनता को 2005 के स्तर से 33 से 35 प्रतिशत तक घटाने की महत्वाकांक्षी प्रतिबद्धता की घोषणा की है. भारत की योजना के संबंध में 38 पन्ने के आईएनडीसी दस्तावेज में कहा गया है कि अब तक अपनाए गए रास्ते के उलट आर्थिक विकास के स्तर के अनुरूप जलवायु अनुकूल और स्वच्छ मार्ग के अनुसरण, 2030 तक 2005 के स्तर के मुकाबले उत्सर्जन गहनता को सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले 33-35 प्रतिशत करने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की मदद से 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा संसाधनों पर अधारित संयंत्रों से करीब 40 प्रतिशत बिजली उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने और हरित जलवायु कोष (जीसीएफ) समेत कम लागत वाले अंतरराष्ट्रीय वित्त के प्रावधान हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2030 तक 375 गेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य रखा है यदि यह लक्ष्य प्राप्त हो जाता है तो संभव है कि भारत का कार्बन उत्सर्जन कम हो जाए.

 

 

रोशन
एसएनबी


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