वेतन बढ़ने के साथ जवाबदेही भी बढ़े

Last Updated 27 Nov 2015 12:28:30 AM IST

सातवें वेतन आयोग ने केन्द्रीय कर्मियों के वेतन में वृद्धि की सिफारिशें वित्तमंत्री अरुण जेटली को सौप दी हैं.


वेतन बढ़ने के साथ जवाबदेही भी बढ़े

इसका फायदा केन्द्र सरकार के करीब 47 लाख से ज्यादा मौजूदा अधिकारियों-कर्मचारियों और 52 लाख से अधिक पेंशनधारियों को मिलेगा. ये सिफारिशें एक जनवरी, 2016 से लागू होंगी. सरकार पर इससे करीब एक लाख 2 हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा. इसमें 18 हजार रुपये न्यूनतम वेतन की सिफारिश की गई है. केन्द्रीय कर्मचारियों के मूल वेतन में 16 फीसद और भत्तों में 63 फीसद तथा पेंशन में 24 फीसद वृद्धि की सिफारिश की गई है. केन्द्रीय कर्मचारियों की न्यूनतम पेंशन भी नौ हजार रुपये हो जाएगी जो अभी 3500 है.

सातवें वेतन आयोग का गठन न्यायमूर्ति एके माथुर की अध्यक्षता में फरवरी, 2014 में हुआ था. रिपोर्ट के बाद केन्द्रीय कर्मचारियों में बेशक खुशी का माहौल है, लेकिन इसके कारण राजकोष पर अतिरिक्त भार पड़ने की बड़ी चुनौती है. लेकिन क्योंकि अभी वैश्विक मंदी के कारण देश के बाजारों में मांग में कमी से मंदी की स्थिति निर्मित होती दिख रही है, ऐसे में बढ़े हुए वेतन-भत्तों से वे ज्यादा बचत, खर्च व निवेश कर सकेंगे. ऐसे में सातवें वेतन आयोग से केन्द्रीय कर्मियों को जो वेतन वृद्धि व अन्य आर्थिक लाभ होंगे, उससे उनकी बढ़ी हुई क्रयशक्ति से अर्थव्यवस्था में नई मांग के निर्माण में कुछ सहायता मिल सकेगी.

अनुमान है कि केन्द्रीय कर्मियों के नए वेतनमान से अर्थव्यवस्था में 50 से 60 हजार करोड़ रुपए आएंगे. क्योंकि सरकारी कर्मचारी बढ़ी हुई आमदनी का करीब 60 फीसद आरामदायक जरूरतों पर खर्च करेंगे, ऐसे में कार, बाइक व कंज्यूमर ड्यूरेबल्स की मांग तेजी से बढ़ेगी और औद्योगिक उत्पादन बढ़ेगा. वैश्विक मंदी की आहट संबंधी भारतीय बाजार की चिंताएं कुछ कम होंगी. यद्यपि पेंशन वृद्धि का जीडीपी पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि वित्तीय घाटे की स्थिति अच्छी है. 2017-18 तक राजकोषीय घाटा घटाकर तीन फीसद लाने के लक्ष्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा. लेकिन जो राज्य पहले से कर्ज के दलदल में फंसे हैं, उनके लिए अपने कर्मचारियों को इसका लाभ देने में मुश्किलें होंगी. उनकी अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है. राज्यों की आय बढ़ाने के उपाय तलाशने होंगे.

इसमें दो मत नहीं है कि वेतन के साथ-साथ अन्य लाभों में भारी इजाफा करके सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें सरकारी नौकरियों को आकषर्क बनाते दिख रही हैं लेकिन अब वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद कर्मचारियों के कार्यों से आशातीत परिणामों की आंकाक्षा की जाएगी. निजी क्षेत्र में जितना वेतन दिया जाता है, उसका परिणाम मिल जाता है लेकिन सरकारी क्षेत्र में भारी-भरकम वेतन और अन्य सुविधाओं का अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाता है. निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की तुलना में सरकारी कर्मचारियों की उत्पादकता कम है. उनमें नए आर्थिक दौर के अनुरूप प्रतिस्पर्धा की दौड़ में कार्य करने के लिए पहल क्षमता और उत्साह का अभाव है.

सातवें वेतन आयोग का लाभ देते समय इसका भी मूल्यांकन जरूरी है कि छठा वेतन आयोग लागू होने के बाद इसके घोषित लक्ष्यों के अनुरूप कितनी उपयोगिता मिली है? गौरतलब है कि कोई सात वर्ष पहले 24 मार्च, 2008 को न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाले छठे वेतन आयोग ने तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदंबरम को जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें केंद्रीय कर्मचारियों को अच्छा वेतन देने के साथ-साथ उनसे नई कार्य संस्कृति की अपेक्षा की गई थी.

उस समय राजकोष पर करीब 12561 करोड़ रुपए का भार पड़ा. इसमें दो मत नहीं है कि वेतन के साथ अन्य लाभों में भारी इजाफा करके छठे वेतन आयोग ने सरकारी नौकरियों को आकषर्क बनाया है और सरकारी नौकरी में वेतन के साथ मिलने वाले अन्य लाभ बेहतर बनाए गए हैं. लेकिन छठे वेतन आयोग ने सिर्फ वेतन व भत्ते पर ही काम नहीं किया वरन कार्य संस्कृति, समयबद्धता, अनुशासन, कर्मचारियों की संख्या व खर्च में कटौती, कागजी कार्यों में कमी, अल्पावधि जांच, भ्रष्टाचार पर रोक, अनुबंधित सेवा, कार्यकुशलता आधारित पदोन्नति और लेटलतीफ कर्मचारियों पर निगरानी आदि पर भी सिफारिशें दी थीं.

लेकिन वेतन बढ़ा सरकार नई कार्य संस्कृति को आगे बढ़ाने का दायित्व पूरा नहीं कर पाई. वेतन वृद्धियां सरकारी क्षेत्र की कार्यकुलता पर खास असर नहीं दिखा पा रही हैं. ऐसे में सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के मद्देनजर दुनिया के आर्थिक परिवेश के अनुरूप भारत को आगे बढ़ाने के लिए देश के निजी क्षेत्र की तरह सरकारी सेवकों को नई कार्य संस्कृति की ओर आगे बढ़ाना होगा.

ऐसे में यह भी ध्यान में रखना होगा कि कम से कम प्रयास में अधिक से अधिक नतीजे हासिल हों और बेहतर काम पर ध्यान केंद्रित किया जाए, जो मूल्य में ज्यादातर इजाफा करे. ऐसे में समय, काम और स्मार्ट काम का सकारात्मक सहसंबंध खुशी के साथ अधिक उत्पादकता और गुणवत्ता देते हुए दिखाई देगा. सरकार का यह भी दायित्व होगा कि वह कार्य प्रस्तुतीकरण व कार्यकुशलता की तुलना करते हुए बेहतर काम करने वाले को तुरंत पदोन्नति देने, उसका वेतन बढ़ाने तथा अन्य प्रोत्साहन देने की सिफारिश को प्राथमिकता से लागू करे. ऐसा होने पर ही सातवें वेतन आयोग की उपयोगिता दिखेगी. साथ ही नई कार्य संस्कृति के बल पर भारत का सरकारी क्षेत्र निजी क्षेत्र की तरह उत्पादकता न््र गुणवत्ता का परचम लहरा सकेगा.

उल्लेखनीय यह भी है कि जहां सरकारी व संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों और निजी क्षेत्र के उच्च अधिकारियों के वेतन-भत्तों में लगातार इजाफा हो रहा है, वहीं छोटे और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन बहुत कम हैं. ऐसे में उच्च स्तर और निम्न स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में लगातार इजाफे के कारण समाज में पैदा हो रही आर्थिक-सामाजिक विषमता को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता.  दुनिया के प्रमुख संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (आईसीडी) द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में उदारीकरण के पिछले 25 वर्षो में निजी क्षेत्र में उच्च प्रबंधकों व सामान्य कर्मचारियों के बीच वेतन-विषमता दुनिया के अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक बढ़ी है.

नए कंपनी कानून व सेबी के कॉरपोरेट गवन्रेस कोड के तहत कंपनियों द्वारा 2014-15 की रिपोर्ट में वेतन और वेतन वृद्धि के बारे में जो जानकारियां दी गई हैं, उनके मुताबिक नामी कंपनियों के टॉप मैनेजमेंट का वार्षिक वेतन उन कंपनियों में काम करने वाले सामान्य कर्मचारियों के वार्षिक वेतन के मुकाबले कई गुना ज्यादा है. जहां कारपोरेट हस्तियां अपने घर ज्यादा से ज्यादा वेतन ले जाकर धन कुबेर का प्रतीक बन रही हैं, वहीं कॉरपोरेट कंपनियों के बाकी कर्मचारियों का वेतन असंतोषजनक अनुभव किया जा रहा है.

स्पष्ट है कि जहां निजी क्षेत्र के उच्च अधिकारी अपने प्रभाव से तथा संगठित क्षेत्र के कर्मचारी व अधिकारी अपनी संगठन शक्ति से वेतन वृद्धि करा लेते हैं, वहीं असंगठित क्षेत्र के लोग ऐसा नहीं कर पाते हैं. असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और कमजोर वर्ग की आय बढ़ाने से संबंधित ऐसी रिपोटरे और सिफारिशों की भारी कमी दिखाई दे रही है. निसंदेह अब सरकार को सरकारी, संगठित व निजी क्षेत्र में वेतन असमानता कम करने की ओर भी विशेष ध्यान देना होगा.

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


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