आतंक को ऐसे दें करारा जवाब

Last Updated 26 Nov 2015 01:04:40 AM IST

दुनियाभर को स्वीकार करना होगा कि फ्रांस एवं रूस इस समय सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के लिए काल बनकर खड़े हो गए हैं.


आतंक को ऐसे दें करारा जवाब

रूस तो पहले से ही हमला कर रहा था, लेकिन जैसे ही स्पष्ट हुआ कि 30 अक्टूबर को सिनाई प्रायद्वीप में उसके विमान को आईएस ने ही उड़ाया उसने 18 क्रूज मिसाइलों एवं जेट लड़ाकू विमानों से हमला कर एक ही दिन 20 नवम्बर को उनके कई सौ लड़ाकुओं को मार गिराया. उसका दावा है कि केवल इस हमले में कम से कम 7 बड़े ठिकानों को नष्ट किया गया. हालांकि तुर्की में उसका एक विमान गिराए जाने से माहौल बिगड़ा है, पर इससे उसकी कार्रवाई में अंतर नहीं. रूस लड़ाकू विमानों सें जो बम गिर रहे हैं, उन पर दो संदेश लिखे होते हैं, रूसी जहाज को मार गिराने की घटना पर ‘हमारे लोगों के नाम’ और पेरिस हमले का बदला लेने के लिए ‘पेरिस के नाम’. इंटरनेट पर कुछ तस्वीरें वायरल हुई हैं, जिनमें फ्रांसीसी सीरिया में गिराई जा रही मिसाइलों पर लिखा है, ‘फ्रॉम पेरिस विथ लव.’

वास्तव में 11 नवम्बर को हमले के बाद ही फ्रांसुआ ओलांद ने घोषणा किया कि फ्रांस आईएसआईएस पर और तेजी से हमला करेगा. उसको नष्ट करेगा. ओलांद ने संसद में कहा कि फ्रांस आईएस के खिलाफ जंग शुरू कर चुकी है. कहा, ‘हमें पता है कि पेरिस पर हमला करने वाले कौन हैं? हम उनसे बदला लेंगे. बेरहमी से मारेंगे.’ फ्रांस ऐसा ही कर रहा है. माली में भी आतंकवादियों ने होटल पर कब्जा किया तो वहां भी फ्रांस के विशेष बलों ने अमेरिका एवं माली के विशेष बलों के साथ मिलकर कार्रवाई की. 

पेरिस में आतंकी हमले का तरीका ठीक मुंबई 26/11 हमले जैसा था. लेकिन दोनों की कार्रवाई में अंतर देखिए. हमारी एनएसजी को हमला स्थल पर पहुंचने में 12 घंटे से ज्यादा लगा था. फ्रांस ने सेना के 1.15 लाख जवानों को आतंकियों को खोजने में लगा दिया. हमले के फौरन बाद फ्रांस ने सीमाएं सील कीं ताकि देश में घुस आए आतंकी भागने न पाएं. 168 तरह की सुरक्षा एजेंसियों को छापेमारी में लगाया. फ्रांस में 414 और यूरोप में 2000 से ज्यादा जगहों पर छापे मारे. फ्रांस में 67 लोगों को गिरफ्तार किया, 118 को नजरबंद किया और 75 हथियार जब्त किए. फ्रांस-बेल्जियम सीमा पर सभी घरों की तलाशी ली. फ्रांस ने अपना अहं त्यागकर पहली बार यूरोपीय देशों से सैन्य सहायता मांगी. दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार रूस से भी हाथ मिलाया. पुतिन ने हर मुमकिन मदद का आश्वासन दिया. ब्रिटेन ने अपनी नौसोना के जहाज एचएमएस डिफेंडर को पश्चिम एशिया भेजा ताकि आईएस पर हमले तेज हो सकें. ध्यान रखिए अमेरिका 9/11 हमलों के मुख्य सूत्रधार ओसाम बिन लादेन को मारने में 10 साल बाद कामयाब हो सका. उसे अफगानिस्तान में युद्ध छेड़ने के बाद भी कामयाबी हाथ नहीं लगी थी. भारत चार साल बाद कसाब को फांसी पर चढ़ा सका. हमलों के मास्टरमाइंड अभी पाकिस्तान में ही बैठे हैं.

दूसरी ओर, फ्रांस को देखिए. जैसे ही स्पष्ट हुआ कि इस हमले का सूत्रधार अब्देलहामिद अबाऔद है, जिसे इस्लामिक स्टेट में अबु उमर अल-बाल्जीकि नाम से जाना जाता है, उसने उसकी खोज आरंभ कर दी. उस पर पेरिस हमले के लिए फंडिंग और सीरिया में बैठकर हमले की मॉनिटिरंग का आरोप था. उसके सहित दूसरे साथियों पर यूरोप में एक नाकाम श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों की योजना में शामिल होने का संदेह था. पहले उसकी पूरी जानकारी ली गई. अब्देलहामिद मोरक्को के एक दूकानदार का बेटा था. 2013 में उसने सीरिया का रुख कर आईएसआईएस ज्वाइन कर लिया था. वह बेल्जियम के रास्ते फ्रांस में घुसा था. उसका फोन ग्रीस में ट्रेस किया गया. सुरक्षा एजेंसियों ने उसका पता कर लिया. सेंट डेनिस स्थित उसके अपार्टमेंट पर सीधा हमला किया. आठ घंटे गोलीबारी हुई. करीब 5 हजार राउंड गोली चलीं. अब्देलहामिद मारा गया. उसके स्किन के सैम्पल टेस्ट किए गए. जिस अपार्टमेंट में एनकाउंटर हुआ था, उसकी तीसरी मंजिल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी थी. उसमें शवों की शिनाख्त में वक्त लगना ही था. अब्देलहामिद की लाश गोलियों से छलनी हो चुकी थी. पहले खबर थी कि उसने कोई चारा न देख स्वयं को गोली मार ली थी. बाद में स्पष्ट किया गया कि वह कार्रवाई में ही मारा गया. चाहे वह जैसा मरा हो लेकिन बड़े आतंकवादी हमलों में यह दुनिया की सबसे तेज कार्रवाई थी.

अब आइए फ्रांस की सीमा से बाहर. वास्तव में रूस और फ्रांस को आईएस के हमलों ने निकट ला दिया है. रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि वह पेरिस हमले के बाद फ्रांस के अधिकारियों के साथ काम कर रहे हैं. वैसे, रूस 30 सितम्बर से ही अमेरिका आदि के विरोध के बावजूद सीरिया में आईएस के ठिकानों पर हवाई हमले कर रहा है. जॉर्डन और संयुक्त अरब अमीरात से फ्रांस के लड़ाकू विमान लगातार सीरिया के लिए उड़ान भर रहे हैं. फ्रांस ने एक न्यूक्लियर पार्वड एयरक्राफ्ट कैरियर जहाज भूमध्य सागर में भेज दिया. यह न्यूक्लियर मिसाइलों से लैस है. इसमें 26 फाइटर जेट्स एक साथ पार्क हो सकते हैं.

पेरिस हमले के बाद आईएसआईएस ने एक वीडियो मैसेज जारी कर कहा था कि हम फ्रांस को चैन से नहीं जीने देंगे. फ्रांस आगे भी ऐसे हमले झेलने के लिए तैयार रहे. फ्रांस सीरिया और इराक में अमेरिकी फौज का साथ देता रहा है. इसलिए आईएसआईएस उसे निशाना बना रहा है. फ्रांस सीरिया, इराक ही नहीं, माली और लीबिया में भी अमेरिकी सेना का साथ दे चुका है. फ्रांस ने विदेशों में जिहादियों से लड़ाई के लिए 10 हजार सैनिक भेज रखे हैं. इसमें पश्चिम अफ्रीका में 3 हजार, मघ्य अफ्रीका में 2 हजार और 3200 सैनिक इराक में तैनात हैं. अब फ्रांस ने साफ कहा कि वह आईएस के खिलाफ और सेना जहां आवश्यकता होगी भेजेगा. रूस ने भी यही कहा है. दोनों देश अपने बमों और मिसाइलों पर जो संदेश लिख रहे हैं, वे आईएस की धमकियों का ही उसकी भाषा में जवाब है.

इसमें फ्रांस एवं रु स को कितनी सफलता मिलती है, यह अलग बात है. लेकिन आईएस को इसी तरह का जवाब दुनिया से मिलना चाहिए था. अभी तक किसी देश ने इस तरह जवाब दिया नहीं था. इसलिए उसकी उन्मादित हिंसक मनमानी चल रही थी. जरा सोचिए, क्या भारत में ऐसा संभव है? वहां पूरा देश एक साथ है. एनकाउंटर में निर्दोष के भी मारे जाने की संभावना रहती है. हो सकता है कि कुछ मारे भी गए हों लेकिन कहीं इस पर चूं तक नहीं. ओलांद ने तुरंत आपातकाल की घोषणा की. फिर संसद में उसे तीन महीने बढ़ाने के लिए प्रस्ताव पेश किया. यह सर्वसम्मति से पारित हो गया. हमारे यहां वैसी स्थिति में कुछ दिनों के लिए भी आपातकाल लागू हो तो लोकतंत्र का गला घोंटना हो जाएगा, उससे संघवाद खत्म हो जाएगा. उसे फासीवादी व्यवस्था करार दे दिया जाएगा. आतंकवादी खतरे को देखते हुए हमें फ्रांस के राष्ट्रीय आचरण से सीखने की आवश्यकता है. देश की सुरक्षा से बड़ा कुछ नहीं. उसके लिए अपनी आजादी या और भी बहुत कुछ दांव पर लगानी पड़े तो एक अंतराल के लिए समस्या नहीं आनी चाहिए.

अवधेश कुमार
लेखक


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