बदल गया है हवा का रुख

Last Updated 08 Oct 2015 12:51:58 AM IST

महज दो दिन के भीतर क्रिकेट की दुनिया में दो बड़े बदलाव देखने को मिले हैं.


बदल गया है हवा का रुख

रविवार को शशांक मनोहर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हुए और सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही से स्पष्ट हो गया कि कभी अजेय समझे जाने वाले पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन अब पूरी तरह हाशिये पर आ गए हैं. अदालत की फटकार के बाद बोर्ड के वकील केके वेणुगोपाल ने साफ कहा कि श्रीनिवासन अभी भी हितों के टकराव के दोषी हैं, इसलिए वह बीसीसीआई की कार्यकारिणी या अन्य किसी बैठक में भाग नहीं ले सकते. मनोहर के कुर्सी संभालने के बाद श्रीनिवासन खेमे ने बदली हवा का रु ख पहचानने की समझ दिखाई, इसीलिये झटपट बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर के खिलाफ दायर झूठी गवाही से जुड़ी अपनी याचिका वापस ले ली.

बात आगे बढ़ाने से पहले इस मामले की पृष्ठभूमि जानना जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने गत 22 जनवरी को निर्णय दिया था, जिसमें बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन को हितों के टकराव का दोषी मान उनके बोर्ड चुनाव में खड़े होने या बैठकों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अदालत ने बीसीसीआई संविधान के उस विवादास्पद नियम को भी निरस्त कर दिया, जिसकी आड़ में पदाधिकारी रहते श्रीनिवासन ने अपनी कंपनी इंडियन सीमेंट के मालिकाना हक में आईपीएल की चेन्नई सुपर किंग टीम को खड़ा किया था. उच्चतम न्यायालय के कड़े रवैये के बावजूद श्रीनिवासन बतौर तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन अध्यक्ष, गत 28 अगस्त को बोर्ड की कार्यकारणी में भाग लेने कोलकाता पहुंच गए. उन्हें देख तत्कालीन अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी थी.

बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर ने यही मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाकर पूछा था कि क्या श्रीनिवासन को बोर्ड की बैठकों में भाग लेने का अधिकार है? जवाब में अदालत ने कहा कि वह इस बारे में अपना निर्णय जनवरी में ही दे चुकी है. अब अंदरूनी विवाद सुलझाने का काम बोर्ड को खुद करना पड़ेगा. बोर्ड के किसी निर्णय पर यदि श्रीनिवासन को ऐतराज होगा, तो वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं. बोर्ड को अदालत आने की कोई जरूरत नहीं है. ठाकुर ने शपथपत्र देकर कहा था कि श्रीनिवासन 28 अगस्त की बैठक में जबरन घुस आये थे, जबकि श्रीनिवासन ने इस दावे का खंडन किया. उनके समर्थन में बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी, उपाध्यक्ष टीसी मैथ्यू तथा केरल इकाई के संयुक्त सचिव जयेश जॉर्ज ने हलफनामे दाखिल किए जिससे ठाकुर का खेमा परेशान था. श्रीनिवासन ने यह भी कहा है कि उनका या उनकी कंपनी इंडियन सीमेंट का चेन्नई सुपर किंग से अब कुछ लेना-देना नहीं है. इस टीम की मिल्कियत एक ट्रस्ट को दे दी गयी है और इस बारे में बीसीसीआई को गत 23 फरवरी को सूचित किया जा चुका है. अनुराग ठाकुर ने अदालत को यह बताकर गुमराह किया है कि वह इस ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं जबकि सच यह है कि एन श्रीनिवासन नाम का जो ट्रस्टी है, वह एक अन्य व्यक्ति है. सब जानते हैं कि श्रीनिवासन और अनुराग ठाकुर में छत्तीस का आंकड़ा है, इसीलिये बोर्ड आज दो फाड़ दिखता है. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी इसकी राजनीति में घसीटने का प्रयास किया गया है.

जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी थे. उसी समय 24 सितम्बर, 2009 को हुई बोर्ड की आम सभा ने बीसीसीआई कार्यकारिणी द्वारा किये गए उस संविधान संशोधन (नियम-6.2.4) की सर्वसम्मति से पुष्टि की थी, जिसमें बोर्ड के पदाधिकारियों और सदस्यों को अपने वाणिज्यिक हित (टीम खरीदने) साधने की अनुमति प्रदान की गयी थी. श्रीनिवासन के अनुसार क्योंकि अनुराग ठाकुर का आरोप है कि उस आम सभा का प्रत्येक सदस्य उक्त संविधान संशोधन पारित करने की साजिश में शामिल था, इसलिए नरेन्द्र मोदी भी साजिश के हिस्सेदार हुए. वह भी आम सभा में शामिल थे.

लेकिन अब दोनों पक्ष समझ गए हैं कि बार-बार अदालत जाने से बीसीसीआई की ही नहीं, व्यक्तिगत छवि को भी चोट पहुंचती है. पिछले दो साल की कानूनी लड़ाई में बोर्ड के 65 करोड़ रु पये खर्च हो चुके हैं. भले ही शशांक मनोहर को श्रीनिवासन विरोधी समझा जाता है किन्तु अध्यक्ष बनने के बाद वह हर निर्णय निष्पक्ष भाव से करना चाहते हैं. वह बोर्ड की राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं, ईमानदार माने जाते हैं और कड़े फैसले करने से नहीं हिचकिचाहते. इंडियन प्रीमियम लीग (आईपीएल) के जन्मदाता ललित मोदी पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का बड़ा निर्णय उनके पहले कार्यकाल में ही हुआ था. आईपीएल में सट्टेबाजी कांड का खुलासा होने पर जब बोर्ड की बैठक में कोई सदस्य तत्कालीन अध्यक्ष श्रीनिवासन के खिलाफ चूं करने का साहस नहीं करता था, तब शशांक ही थे, जिन्होंने आंख में आंख डालकर उनका इस्तीफा मांगा था.

जगमोहन डालमिया के अचानक निधन से हुए चुनाव के बाद बीसीसीआई की राजनीति में सारे समीकरण उलट-पलट गए हैं. महज एक साल पहले दो तिहाई वोट अपनी जेब में रखने वाले श्रीनिवासन फिलहाल अलग-थलग पड़ चुके हैं. बोर्ड अध्यक्ष पद तो वह पहले ही गंवा चुके थे, अब उनकी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अध्यक्ष की कुर्सी भी खतरे में है. दूसरी खास बात है, पूर्व भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली का बोर्ड की राजनीति में ध्रुव तारा बनकर उभरना. जगमोहन डालमिया की शख्सियत इतनी बड़ी थी कि उनकी छाया में सौरभ जैसा बड़ा खिलाड़ी भी बौना लगता था. आज वह बंगाल क्रिकेट संघ के प्रमुख हैं. शशांक का समर्थन कर उन्होंने अपना भविष्य सुरक्षित कर लिया है.

पद संभालने के बाद बीसीसीआई के नए अध्यक्ष शशांक मनोहर ने जिस अंदाज में बयान दिया, उससे तो यही लगता है कि जल्द ही बहुत सी चीजें बदलेंगी. बकौल शशांक वह सबसे पहले गड़बड़ियों के कारण क्रिकेट की छवि को पहुंची क्षति को सुधारने का काम करेंगे. इसके लिए बोर्ड की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाई जायेगी और जवाबदेही भी तय होगी. बोर्ड में एक एथिक्स अफसर नियुक्त किया जायेगा, राज्य संघों के खातों की जांच के लिए स्वतंत्र ऑडिटर रखे जायेंगे, 25 लाख रु पये से अधिक के हर खर्च की जानकारी बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी तथा हितों के टकराव की शिकायतें दूर करने के लिए एक माह के भीतर नए नियम बना दिए जायेंगे.  

बहरहाल, छह माह पूर्व जब जगमोहन डालमिया सर्वसम्मति से अध्यक्ष बने थे, तब लगता था कि भले बोर्ड में गुटबाजी है, किन्तु सदस्यों का मनमुटाव सड़कों पर नहीं आएगा. डालमिया के असमय निधन से यह भ्रम टूट गया है. वैसे भी आईपीएल में सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग खुलासे के बाद बीसीसीआई लगातार विवादों में है. जनता का ध्यान अब क्रिकेट मैचों की हार-जीत से ज्यादा बोर्ड के झगड़ों पर रहता है. हर वर्ष अरबों की कमाई करने वाले बोर्ड में विवादों की असली जड़ पैसा ही है. स्थिति इतनी विकट है कि देश की सर्वोच्च अदालत को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई की कार्यप्रणाली में सुधार संबंधी सुझाव देने का काम लोढा पैनल को सौंपा है, जिसकी रिपोर्ट जल्दी आने की आशा है. उम्मीद है, उसके बाद बीसीसीआई की कार्यप्रणाली में कुछ सुधार होगा.

धर्मेन्द्रपाल सिंह
लेखक


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