जनसंख्या के भार से दबने का खतरा

Last Updated 07 Oct 2015 01:20:44 AM IST

इन दिनों पूरी दुनिया में भारत की छलांग लगाकर बढ़ रही जनसंख्या और भारत में शहरीकरण की बढ़ती हुई चुनौतियों से संबंधित दो रिपोर्टों को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है.


जनसंख्या के भार से दबने का खतरा

पहली रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग के द्वारा प्रस्तुत की गई है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जनसंख्या के मामले में 2022 में भारत चीन से आगे निकल जाएगा. सात साल बाद भारत चीन को पीछे करते हुए दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश हो जाएगा.

रिपोर्ट में वर्तमान वर्ष 2015 में चीन की जनसंख्या एक अरब 38 करोड़ और भारत की जनसंख्या एक अरब 31 करोड़ बताई गई है. रिपोर्ट का आकलन है कि सात वर्ष बाद दोनों देशों की आबादी तकरीबन एक अरब 40 करोड़ होगी. उसके बाद भारतीय जनसंख्या चीन से आगे निकल जाएगी. 2030 तक भारतीय जनसंख्या के डेढ़ अरब तक पहुंचने का अनुमान है. उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा दो वर्ष पहले वैश्विक जनसंख्या पर प्रकाशित रिपोर्ट 2013 में कहा गया था कि वर्ष 2028 में भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी. लेकिन छलांगे लगाकर बढ़ती हुई भारतीय जनसंख्या अब छह वर्ष पहले ही 2022 में दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या होने जा रही है.

दूसरी रिपोर्ट विश्व बैंक द्वारा दक्षिण एशिया में शहरीकरण की चुनौतियों पर प्रस्तुत हुई है. इस रिपोर्ट में विश्व बैंक ने कहा है कि बढ़ी हुई शहरी जनसंख्या के कारण भारत में शहरीकरण के दबाव से निपटने में दिक्कत आ रही है. कहा गया है कि भारत में बुनियादी सेवाओं, अवसंरचना, भूमि, आवास और पर्यावरण पर पर्याप्त ध्यान न देने के कारण अव्यवस्थित और अस्पष्ट शहरीकरण को बढ़ावा मिल रहा है. विश्व बैंक का कहना है कि 2011 की जनगणना के अनुसार यद्यपि भारत में शहरी जनसंख्या लगभग 31 प्रतिशत है. लेकिन शहरों के आसपास की बसावट पर भी ध्यान दें तो यह आंकड़ा 55.3 प्रतिशत तक पहुंच जाता है. कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद जैसे महानगरों की आधिकारिक सीमा रेखा के नजदीक एक ऐसी बड़ी आबादी रहती है जो अप्रत्यक्ष रूप से इन्हीं शहरों का हिस्सा है. वस्तुत: बड़ी संख्या में या कस्बों और गांवों से आए लोग बड़े शहरों के समीप के क्षेत्रों में बस जाते हैं. वहां रहने में ज्यादा खर्च नहीं पड़ता.

निश्चित रूप से सात साल बाद जब भारत दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होगा, तो भारत के समक्ष चिंताजनक शहरीकरण के साथ बढ़ी हुई जनसंख्या की चुनौतियां और अधिक होंगी. गौरतलब है कि दुनिया की कुल जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी 17.5 फीसद हो गई है. जबकि पृथ्वी के धरातल का मात्र 2.4 फीसद हिस्सा ही हमारे पास है. देश में तेजी से बढ़ती जनसंख्या का संसाधनों पर जबरदस्त दबाव और बढ़ जाएगा.

चूंकि संसाधनों को विकसित करने की रफ्तार जनसंख्या वृद्धि की दर से कम है, इसलिए देश में आर्थिक-सामाजिक समस्याओं का दुष्प्रभाव और बढ़ेगा. तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या देश की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की जननी बनकर देश के विकास के  लिए खतरे की घंटी दिखाई देगी. शहरों के आवास परिदृश्य पर सबसे अधिक चुनौतियां बढ़ेंगी. अभी भी स्थिति यह है कि देश में मकानों की कमी की चिंताजनक तस्वीर उभरकर दिखाई दे रही है. देश में करीब दो करोड़ मकानों की कमी है और करोड़ों लोग या तो जर्जर मकानों में गुजर-बसर कर रहे हैं या फिर झुग्गी-झोपड़ी में जीवन गुजार रहे हैं. शहरों में मकानों की कमी के कारण मलिन बस्तियां अब और तेजी से बढ़ती हुई दिखाई देंगी.

बढ़ती हुई जनसंख्या के मद्देनजर हमें स्मार्ट शहरों के निर्माण के साथ-साथ शहरीकरण की चुनौतियों से निपटने की रणनीति भी बनानी होगी. यह रणनीति इसलिए जरूरी होगी क्योंकि जनसंख्या वृद्धि शहरों में विभिन्न समस्यायों को बढ़ाते हुए दिखाई देगी.

अभी देश के शहरों में दो करोड़ मकानों की कमी है, यह कमी और विकराल रूप लेते हुए दिखाई देगी. कृषि संसाधनों का बंटवारा बढ़ जाएगा. तेज गति से बढ़ रही जनसंख्या की वजह से भारत में खाद्यान्न की खपत में भारी वृद्धि होगी. यद्यपि देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण हर उत्पादन वृद्धि नाकाफी दिखाई देगी. आने वाले वर्षो में बढ़ती हुई जनसंख्या की दृष्टि से शिक्षण संसाधनों की भारी कमी दिखाई देगी. देश में बेरोजगारों की संख्या में तेजी से वृद्धि होगी और विकास परिदृश्य पर गांव और अधिक पिछड़े दिखेंगे.

गांवों से लोगों का सुविधाओं के लिए शहरों की ओर पलायन बढ़ेगा. जैसे-जैसे जनसंख्या में बढ़ोतरी हो रही है, वैसे-वैसे जीविकोपार्जन के संसाधन में लोगों की हिस्सेदारी बढ़ने लगेगी. पर्यावरण पर दबाव बहुत बढ़ जाएगा. शहरों में जनस्वास्थ्य जैसी बुनियी सुविधाएं दयनीय होती जाएंगी. शहरों में प्रतिदिन निकलने वाले कूड़ा-करकट को हटाने और ठिकाने लगाने की व्यवस्था और चुनौतीपूर्ण बन जाएगी. बिजली-पानी की भारी कमी, खराब सड़कें, जमीन और जल का गहरा प्रदूषण, बेकाबू बीमारियां, ट्रैफिक जाम, घटिया जल-मल निकास व्यवस्था, अपराध, भीड़-भाड़ और संकरी गलियां भारतीय शहरों का अभिन्न अंग बनती दिखेंगी. शहरीकरण की इन सभी समस्याओं के निदान के लिए रणनीतिक प्रयास जरूरी होंगे.

यदि जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं की गई तो संसाधनों की कमी के कारण जीवनस्तर में भारी गिरावट शुरू हो जाएगी. परिणामस्वरूप भारत ऊंची विकास दर के बावजूद विकसित देशों जैसा जीवनस्तर हासिल नहीं कर पाएगा. हमें बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए शहरों के सुनियोजित विकास पर ध्यान देना होगा. यद्यपि सरकार ने देश को झुग्गियों से मुक्त कराने का लक्ष्य तय कर रखा है लेकिन झुग्गियों को लेकर सरकार की रणनीति को और अधिक कारगर तरीके से तैयार किए जाने की आवश्यकता है. जनसंख्या नियंत्रण की रणनीति पर गंभीर प्रयास जरूरी होंगे.

यद्यपि भारत दुनिया का पहला देश है, जिसने अपनी जनसंख्या नीति बनाई थी. लेकिन जनसंख्या वृद्धि दर आशा के  अनुरूप नियंत्रित नहीं हुई है. इस समय देश के  कुछ लोग राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के उस कथन को उचित मान रहे हैं जिसमें कहा गया है कि  जनसंख्या नियंत्रण का मामला सिर्फ  लोगों की इच्छा के  भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है. हमें जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए. जनसंख्या नियंत्रण के अभियान को फिर से नए रूप रंग के साथ नई रफ्तार देने की जरूरत है. 

हमें दुनिया के जनसांख्यिकीय विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत की जा रही इस राय को भी ध्यान में रखना होगा कि चीन की जनसांख्यिकीय चिंताओं के मद्देनजर भारत द्वारा आदर्श जनसंख्या की नई रणनीति बनाई जाए. जनसंख्या विशेषज्ञों का मत है कि भारत में जहां जनसंख्या विस्फोट को रोकना जरूरी है, वहीं जनसंख्या में ऐसी कमी से भी बचना होगा कि भविष्य में विकास की प्रक्रिया और संसाधनों का विदोहन मुश्किल हो जाए. यद्यपि हम चीन की तरह एक दंपत्ति एक बच्चे की नीति को कठोरता से न अपनाएं, किंतु एक बार फिर से ‘हम दो हमारे दो’ के नारे को मूर्तरूप देने की डगर पर आगे बढ़ना होगा.

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


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