बेरोजगारी से निबटने की चुनौती

Last Updated 06 Oct 2015 12:24:04 AM IST

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश राज्य सचिवालय में चपरासी के 368 पदों के लिए जब 23 लाख से अधिक आवेदन आए तो देश भर में खूब चर्चा हुई.


बेरोजगारी से निबटने की चुनौती

और आवेदकों में 255 पीएचडी डिग्री धारकों की खबर ने तो और भी सोचने पर मजबूर कर दिया. देश के हर राज्य में रिक्तियों के सापेक्ष आवेदकों की संख्या बढ़ रही है और उस अनुपात में रोजगार उपलब्ध नहीं हैं.   हाल में श्रम मंत्रालय की इकाई श्रम ब्यूरो द्वारा जारी ताजा सर्वेक्षण रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ है कि भारत में बेरोजगारी की दर 2013-14 में बढ़कर 4.9 फीसद पहुंच गयी है. 2012-13 में यह दर 4.7 फीसद थी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर 2013-14 में घटकर 5.5 फीसद पर आ गयी है जो पिछले वित्त वर्ष में 5.7 फीसद थी. रिपोर्ट के मुताबिक देश में सबसे कम बेरोजगारी की दर 1.2 फीसद गुजरात और सबसे अधिक सिक्किम में रही. अध्ययन के मुताबिक गुजरात में 15 साल से अधिक उम्र के प्रति 1000 लोगों में बेरोजगारी दर 12 रही जबकि कर्नाटक में यह 18, महाराष्ट्र में 28, मध्यप्रदेश में 29, तेलंगाना में 33, अरुणाचल प्रदेश में 140, केरल में 118, त्रिपुरा में 116, गोवा में 106, जम्मू-कमीर में 105, हिमाचल प्रदेश में 75, राजस्थान में 65, पंजाब में 58 और हरियाणा में 48 रही..

यह स्थिति तब है जब बेरोजगारी से निपटने के लिए ढेरों कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इनमें राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, समन्वित विकास कार्यक्रम, जवाहर रोजगार योजना, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, मनरेगा आदि प्रमुख हैं. लेकिन जिस तेजी से बेरोजगारी वृद्धि दर बढ़ रही है, उससे साफ है कि देश में बेरोजगारी से निपटने का ठोस रोडमैप नहीं है. भारत सरकार ने स्किल इंडिया के जरिए 2022 तक 40 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन नेशनल सैंपल सर्वे के ताजा सर्वेक्षण पर विश्वास करें तो इस लक्ष्य को हासिल करना फिलहाल मुश्किल ही है.

इसलिए कि रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर दस युवाओं में महज एक को ही किसी तरह का कारोबारी प्रशिक्षण हासिल है. यानी 15 से 59 आयु वर्ग के सिर्फ 2.2 फीसद लोगों ने औपचारिक और 8.6 फीसद लोगों ने अनौपचारिक कारोबारी प्रशिक्षण हासिल किया है.  दोनों को जोड़ दें तो आंकड़ा 10.8 फीसद ठहरता है लेकिन जिस गति से देश में बेरोजगारी बढ़ रही है, उस हिसाब से कारोबारी प्रशिक्षण की यह उपलब्धि ऊंट के मुंह में जीरा समान है. इस समय देश में नौजवानों का रुझान मेडिकल और इंजीनियर क्षेत्रों को लेकर ज्यादा है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इस क्षेत्र में भी रोजगार हासिल करने के लिए सिर्फ 2.5 फीसद नौजवानों के पास ही शैक्षिक योग्यता है.

सीआईआई की इंडिया स्किल रिपोर्ट-2015 बताती है कि भारत में हर साल तकरीबन सवा करोड़ शिक्षित युवा तैयार होते हैं. ये नौजवान रोजगार के लिए सरकारी और प्राइवेट सभी क्षेत्रों में किस्मत आजमाते हैं. लेकिन सिर्फ 37 फीसद ही रोजगार पाते हैं. इसके दो कारण हैं. पहला, सरकारी क्षेत्र में नौकरियां सिकुड़ रही हैं और प्राइवेट क्षेत्र में उन्हीं लोगों को रोजगार मिल रहा है जिन्हें कारोबारी दक्षता हासिल है.

उल्लेखनीय है कि देश में सालाना सिर्फ 35 लाख लोगों के लिए ही स्किल प्रशिक्षण की व्यवस्था है जबकि दूसरी ओर सवा करोड़ शिक्षित बेरोजगार रोजगार की कतार में खड़े होते हैं. दो वर्ष पहले योजना आयोग ने ऐलान किया था कि शिक्षित बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने के लिए 50 लाख स्किल सेंटर खोले जाएंगे. लेकिन अब तक लक्ष्य पूरा नहीं हुआ. सवाल लाजिमी है कि जब स्किल केंद्रों की संख्या में वृद्धि नहीं होगी तो रोजगार कैसे मिलेगा? उचित होगा कि सरकार स्किल प्रशिक्षण केंद्रों की संख्या बढ़ाए, साथ ही गांवों तथा शहरों में विकास केंद्रों में वृद्धि करे. अगर छोटे कस्बों में नए विकास केंद्र खोले जाएंगे तो इससे औद्योगिक ढांचे का विकेंद्रीकरण होगा और अर्थव्यवस्था अधिक आत्मनिर्भर बनेगी.

यह किसी से छिपा नहीं है कि अब तक अनुदान और प्रोत्साहन सिर्फ उत्पादन के आधार पर ही दिए जाते हैं. बेहतर होगा कि इस आधार को बदला जाए और इसे रोजगार के अवसर प्रदान करने के आधार पर दिया जाए. आज की तारीख में ग्रामीण बेरोजगारी सबसे अधिक है. लेकिन इसे अवसर में बदला जा सकता है. पर यह तभी संभव होगा जब खेती, बागवानी, पशुपालन, वृक्षारोपण, कृषि यंत्रों की मरम्मत के संबंध में आधुनिक तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाए और ग्रामीण निर्माण कार्यक्रमों का विस्तार होगा. अब समय आ गया है कि बेकार पड़ी भूमि को कृषि के अंतर्गत लाया जाए. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के मौकों में वृद्धि होगी. देश में अच्छे बीजों, उर्वरक तथा यंत्रों की मांग बढ़ गयी है. इनकी बिक्री तथा पूर्ति के कामों में काफी लोगों को रोजगार मिल सकता है.

बेहतर होगा कि केंद्र व राज्य सरकारें ग्रामीण क्षेत्रों में स्किल इंडिया केंद्रों का विस्तार करे. इससे बुनाई, मैकेनिक, ऑपरेटरी और हस्तशिल्प को बढ़ावा मिलेगा. हेल्थकेयर, रियल एस्टेट, शिक्षा एवं प्रशिक्षण, आईटी, मैन्युफैक्चरिंग, बैंकिंग एवं फाइनेंशियल क्षेत्रों में भी युवाओं को करियर संवारने का मौका मिलता है. लेकिन यह तभी संभव है जब सार्वजनिक व निजी क्षेत्र इसमें निवेश बढ़ाएंगे और लोगों को रोजगार देंगे. याद होगा 2012-13 में बैंक समूहों ने एक लाख लोगों को नौकरी देने का ऐलान किया था. इसके अलावा देशी-विदेशी कंपनियों ने भी कुछ इसी तरह की घोषणा की. लेकिन ऐलान के मुताबिक रोजगार उपलब्ध कराने में विफल रही.

अगर सिर्फ बैंकिंग समूह ही ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार करे तो यहां लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है. इसी तरह स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सरकार निवेश को बढ़ावा देकर रोजगार सृजित कर सकती है. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी है. अगर सरकार इसका विस्तार करे तो न सिर्फ रोजगार का सृजन होगा बल्कि सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को स्वास्थ्य लाभ भी मिलेगा.

स्किल इंडिया के अलावा कुछ अन्य दिशा में भी गौर फरमाने की जरूरत है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण है निवेश के ढांचे में परिवर्तन लाने की. अगर सरकार आधारभूत और उपभोक्ता वस्तु उद्योगों में निवेश बढ़ाए तो न सिर्फ शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा बल्कि वस्तुओं की पूर्ति में भी वृद्धि होगी. रोजगार बढ़ाने के लिए छोटे उद्योगों का विकास सबसे जरूरी है. इसलिए कि छोटे उपक्रम बड़े उपक्रमों से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं. अर्थशास्त्रियों की मानें तो लघु उद्योगों में उतनी ही पूंजी लगाने से लघु उद्योग, बड़े उद्योग की तुलना में पांच गुना अधिक लोगों को रोजगार मिलता है. देखना होगा कि सरकारें बेरोजगारी से निपटने कि लिए क्या कदम उठाती हैं.

अरविंद जयतिलक
लेखक


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