फरेबी विज्ञापनों का 'नेट'

Last Updated 05 Oct 2015 06:03:44 AM IST

इंटरनेट ने उम्र का एक चक्र पूरा कर लिया है. इसकी खूबियों और इसकी उपयोगिता की चर्चा तो बहुत हो ली, अब इसके दूसरे पहलुओं पर भी ध्यान जाने लगा है.


फरेबी विज्ञापनों का इंटरनेट

इंटरनेट के विस्तार के साथ ही इसका व्यावसायिक पक्ष भी विकसित होना शुरू हो गया. प्रारंभ में इसका विस्तार विकसित देशों के पक्ष में ज्यादा था, पर जैसे-जैसे तकनीक विकास होता गया, इंटरनेट ने विकासशील देशों की और रुख करना शुरू किया. नई-नई सेवाएं इससे जुड़ती चली गई. इंटरनेट पर संचालित नया मीडिया अपना कारोबार व इश्तिहार बढ़ा रहा है. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन और आईएमआरबी इंटरनेशनल के एक संयुक्त शोध के अनुसार, मार्च 2015 में भारत में ऑनलाइन विज्ञापन का बाजार 3,575 करोड़ रुपए का हो चुका है, जो 2014 के आंकड़े से करीब 30 प्रतिशत ज्यादा है.

ऑनलाइन विज्ञापन की इस बढ़त में भारत में स्मार्ट फोन की बढ़ती संख्या का बड़ा योगदान है. लेकिन विज्ञापनों का यह बढ़ता बाजार अपने साथ समस्याएं भी ला रहा है. भारत जैसे देश में यह समस्या ज्यादा गंभीर इसलिए हो जाती है, क्योंकि यहां इंटरनेट का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है, मगर नेट जागरूकता की खासी कमी है. भारत में इंटरनेट के ज्यादातर प्रयोगकर्ताओं के लिए यह एक नई चीज है और वे कुछ चालाक विज्ञापनदाताओं की चाल का शिकार भी बन जाते हैं. भारत में विज्ञापनों का नियमन करने वाले संगठन भारतीय विज्ञापन मानक परिषद यानी एएससीआई ने भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत करने के लिए बाकायदा एक व्यवस्था बना रखी है. लेकिन इंटरनेट अन्य विज्ञापन माध्यमों जैसा नहीं है.

इंटरनेट के विज्ञापनों पर नजर रखना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि भ्रामक विज्ञापन का शिकार बनने वाला भारत के किसी शहर में हो, जबकि विज्ञापनदाता सात समुंदर पार किसी दूसरे देश में. प्रिंट माध्यम के लिए तो इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी जैसी संस्था है, जो विज्ञापन एजेंसी को मान्यता देती है और किसी शिकायत पर वह मान्यता खत्म भी कर सकती है. वीआर सोशल की डिजिटल सोशल एंड मोबाइल 2015 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के आंकड़े काफी कुछ कहते हैं.

इसके अनुसार, एक भारतीय औसतन पांच घंटे चार मिनट कंप्यूटर या टैबलेट पर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है. इंटरनेट पर एक घंटा 58 मिनट, सोशल मीडिया पर दो घंटे 31 मिनट के अलावा इनके मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल की औसत दैनिक अवधि है दो घंटे 24 मिनट. इस वक्त भारत में 97.8 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं, जिनमें से 24.3 करोड़ इंटरनेट पर सक्रिय हैं और 11.8 करोड़ सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं.

इस बीच टेलीकॉम कंपनी एरिक्सन ने अपने एक शोध के नतीजे प्रकाशित किए हैं जो काफी दिलचस्प हैं. इससे पता चलता है कि स्मार्टफोन पर समय बिताने में भारतीय पूरी दुनिया में सबसे आगे हैं. एक औसत भारतीय स्मार्टफोन प्रयोगकर्ता रोजाना तीन घंटा 18 मिनट इसका इस्तेमाल करता है. इस समय का एक तिहाई हिस्सा विभिन्न तरह के एप के इस्तेमाल में बीतता है. एप इस्तेमाल में बिताया जाने वाला समय पिछले दो साल की तुलना में 63 फीसद बढ़ा है. स्मार्टफोन का प्रयोग सिर्फ चैटिंग, एप या सोशल नेटवर्किंग के इस्तेमाल तक सीमित नहीं है. लोग ऑनलाइन शॉपिंग से लेकर तरह-तरह के व्यावसायिक कार्यों को स्मार्टफोन से निपटा रहे हैं. वैिक परामर्श संस्था मैकेंसी का एक नया अध्ययन बताता है कि इंटरनेट  साल 2015 तक भारत की जीडीपी में 100 बिलियन डॉलर का योगदान देगा जो वर्ष 2011 के 30 बिलियन डॉलर के योगदान के तीन गुने से भी ज्यादा होगा.

अध्ययन यह भी बताता है कि अगले तीन साल में भारत दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा इंटरनेट उपभोक्ताओं को जोड़ेगा और देश की कुल जनसंख्या का 28 प्रतिशत इंटरनेट से जुड़ा होगा. यह चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या समूह होगा. निकट भविष्य में रेडियो, टीवी और समाचार पत्रों की विज्ञापनों से होने वाली आय में कमी होगी, क्योंकि ये माध्यम एकतरफा हैं. मोबाइल के मुकाबले इन माध्यमों पर विज्ञापनों का रिटर्न ऑफ इन्वेस्टमेंट (आरओआई) कम है. मोबाइल आपको जानता है, उसे पता है कि आप क्या देखना चाहते हैं और क्या नहीं. मोबाइल फोन के इस्तेमाल से जुड़ा एक दिलचस्प आंकड़ा यह भी है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या में कोई खास अंतर नहीं है. मोबाइल के जरिये अब बेहद कम खर्च पर देश के निचले तबके तक पहुंचा जा सकता है.

मोबाइल मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार, भारत में वित्तीय वर्ष 2013 में मोबाइल विज्ञापन 60 प्रतिशत की दर से बढ़ा है. वैिक परिदृश्य में शोध संस्था ई मार्केटियर के अनुसार, मोबाइल विज्ञापनों से होने वाली आय में 103 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. साल 2014 की पहली तिमाही में इंटरनेट विज्ञापनों पर व्यय की गई कुल राशि का 25 प्रतिशत मोबाइल विज्ञापनों पर किया गया. इसमें बड़ी भूमिका फ्री मोबाइल ऐप निभा रहे हैं जिनके साथ विज्ञापन भी आते हैं. इस समय भारत में दिए जाने वाले कुल मोबाइल विज्ञापनों का लगभग 60 प्रतिशत टेक्स्ट के रूप में होता है. आधुनिक होते मोबाइल फोन के साथ अब वीडियो और अन्य उन्नत प्रकार के विज्ञापन भी चलन में आने लगे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2015 तक भारत में मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट का उपभोग करने वालों की संख्या 16 करोड़ से भी अधिक हो जाएगी. मोबाइल फोन एक अत्यंत ही व्यक्तिगत माध्यम है और इसीलिए इसके जरिए इसे उपयोग करने वाले के बारे में सटीक जानकारी एकत्रित की जा सकती है.

दूसरा पहलू डाटा के उपभोग से जुड़ा है. इंटरनेट पर जब भी कोई काम किया जाता है, तो कुछ डाटा खर्च होता है, जिसका शुल्क इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां वसूलती हैं. पर किसी-किसी वेबसाइट पर जाते ही उपभोक्ता से बगैर पूछे अचानक कोई वीडियो चलने लगता है, तो काम भी बाधित होता है और उपभोक्ता का कुछ अतिरिक्त डाटा भी खर्च होता है. इसके पैसे तो उससे वसूल लिए जाते हैं, पर उस विज्ञापन को देखने या सुनाने के लिए उससे अनुमति नहीं ली जाती है. यू-ट्यूब के वीडियो में शुरुआती कुछ सेकेंड आपको मजबूरी में विज्ञापन देखने पड़ते हैं, जिसमें आपका अतिरिक्त डाटा खर्च होता है.

निजता का मामला भी इसी से जुड़ा मुद्दा है. हम इंटरनेट पर क्या करते हैं, क्या खोजते हैं, इस सबकी जानकारी के हिसाब से हमें विज्ञापन दिखाए जाते हैं. अमेरिका की चर्चित संस्था नेटवर्क एडवर्टाइजिंग इनिशिएटिव (एनआईए) ने ऐसे मामलों के लिए भी संहिता बनाकर कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे उपभोक्ताओं को ऐसे विज्ञापनों को न देखने का विकल्प भी उपलब्ध कराएं. निजता की रक्षा के लिए भी यह जरूरी है. भारत में इंटरनेट का बाजार अभी आकार ले रहा है, इसलिए सतर्कता बरतने का यह सबसे सही समय है.

मुकुल श्रीवास्तव
लेखक


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