शिक्षा, सेहत और आत्मनिर्भरता की मुहिम
देश में लाखों आंगनवाड़ी केंद्र संचालित हैं लेकिन अधिसंख्य तमाम सरकारी कोशिशों के बावजूद सार्थक आयाम नहीं ले सके हैं.
शिक्षा, सेहत और आत्मनिर्भरता की मुहिम (फाइल फोटो) |
शिक्षा व पोषकता को रेखांकित करने वाले आंगनवाड़ी केंद्र खुद को सीमित दायरे से बाहर नहीं ला सके. हालांकि शासन-सत्ता ने इन आंगनवाड़ी केंद्रों को समृद्ध बनाने की कोशिश की लेकिन अधिसंख्य संचालकों-व्यवस्थापकों के कमाने-खाने के धंधे बन गये. ऐसा नहीं कि आंगनबाड़ी के गोरखधंधे से शासन-सत्ता व नीति-नियंता बेखबर हों. शायद इसीलिए आंगनवाड़ी केन्द्रों को अब गरीब-गुरबा व कमजोर वर्ग का \'शक्तिदाता\' बनाने की कोशिश होती दिख रही है. शासकीय व्यवस्थाओं से कहीं अधिक विास निजी संस्थाओं पर दिख रहा है.
गरीब को गरीबी से उबारने और उसे स्वस्थ बनाने के मकसद से सरकार व निजी क्षेत्र ने हाथ मिलाए हैं. फिलहाल चार हजार आंगनवाड़ी केन्द्र \'शक्तिदाता\' बनेंगे. इस मिशन पर करीब चार सौ करोड़ खर्च होंगे. यह आदर्श आंगनवाड़ी केंद्र वास्तविक शक्तिदाता के रूप में होंगे. इसमें एक ऐसा परिवेश गढ़ने का ताना-बाना बुना जाएगा जिसमें बच्चों की शिक्षा हो, बालिकाओं-महिलाओं का सशक्तिकरण हो, विकास के लिए सामूहिक सहभागिता हो, गरीबी उन्मूलन और कुपोषण को हटाने-मिटाने की व्यवस्थाएं हों. शिक्षा केवल कहने के लिए शिक्षा न हो बल्कि उसका स्तर भी गुणवत्तापूर्ण हो. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय एवं एक निजी उद्योग समूह के संयुक्त प्रयास से खुलने वाले यह चार हजार आदर्श आंगनवाड़ी केंद्र फिलहाल तकरीबन एक दर्जन राज्यों में खुलेंगे. बहुआयामी क्षमताओं वाले यह केंद्र पच्चीस से तीस के क्लस्टर्स में बनेंगे. भूमि की व्यवस्था का उत्तरदायित्व स्थानीय निकाय एवं ग्राम पंचायतों का सौंपा गया है.
खास बात यह है कि आंगनवाड़ी की मौजूदा व्यवस्थाओं में इंफारमेशन टेक्नॉलॉजी से लेकर कौशल विकास की बेहतर व अपेक्षित व्यवस्थायें होंगी जिससे ये केंद्र केवल शो पीस बन कर न रह जाएं. ई-लर्निग शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता को बेहतर बनायेगी तो वहीं कौशल विकास रोजी-रोजगार के अवसर विकसित करेगा. रोग प्रतिरक्षण की व्यवस्थाएं सुनिश्चित होंगी, तो वहीं संवेदनशीलता एवं भावनात्मकता से भी समुदाय को आपस में जोड़ने की कोशिश होगी. स्वास्थ्य की अपेक्षित देखभाल के रूप में भी यह केंद्र काम करेंगे. कोशिश है कि जीवन को उच्चस्तरीय व कौशल सम्पन्न बनाया जाये जिससे लोगों में आत्मनिर्भरता बढ़े. शायद इसीलिए आदर्श आंगनवाड़ी केंद्र में पचास प्रतिशत समय शिक्षा व्यवस्था पर केंद्रित होगा तो वहीं पचास प्रतिशत समय कौशल विकास की प्रबलता को दिया जाएगा.
गौरतलब है कि कौशल विकास की योजनाएं करीब दो दशक से चली आ रही हैं. नीति-नियंताओं की कोशिश होनी चाहिए कि कौशल विकास प्रशिक्षण यथार्थ में हो क्योंकि तभी उसकी सार्थकता होगी, जब व्यक्ति उस प्रशिक्षण के लाभार्थ रोजी रोजगार हासिल कर सके. परिवार का भरण-पोषण कर सके. शायद यह कोशिश आदर्श आंगनवाड़ी केंद्र के जरिये हो रही है.
कौशल विकास प्रशिक्षण पर गौर करें तो पाएंगे कि इसमें मध्य प्रदेश पूरे देश में अग्रणी रहा. मध्य प्रदेश ने 5.06 लाख व्यक्तियों को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया. इसके बाद महाराष्ट्र में 4.86 लाख, उत्तर प्रदेश में 4.51 लाख, कर्नाटक में 4.08 लाख, तमिलनाडु में 3.33 लाख, आंध्र प्रदेश में 3.25 लाख, गुजरात में 2.22 लाख, बिहार में 2.11 लाख, पश्चिम बंगाल में 1.98 लाख युवाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण दिया गया. लेकिन कई राज्य इस मामले में पीछे रह गए. शायद इसीलिए भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों को निजी क्षेत्र-निजी संस्थाओं से हाथ मिलाने पड़े.
नीतियां बनाने व अपेक्षित धनराशि उपलब्ध कराने से ही परिणाम फलीभूत नहीं हो जाते. इसके लिए आवश्यक होगा कि पात्र व्यक्ति को नीति एवं योजनाओं का लाभ अवश्य मिले. इनकी अपेक्षित जानकारी भी समाज के निचले स्तर तक आसानी से पहुंचे, क्योंकि तभी नीति-नियंताओं की कुशलता साबित हो सकेगी.
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