आवास परिदृश्य पर नई चिंताएं
इस समय देश के आवास परिदृश्य पर मकानों की कमी और तैयार बिना बिके मकानों की छलांगे लगाकर बढ़ती संख्या की एक विसंगतिपूर्ण चिंताजनक तस्वीर उभरकर दिखाई दे रही है.
आवास परिदृश्य पर नई चिंताएं |
इस तस्वीर में दिखाई दे रहा है कि एक ओर देश में करीब दो करोड़ मकानों की कमी है और करोड़ों लोग या तो जर्जर मकानों में गुजर-बसर कर रहे हैं या फिर झुग्गी-झोपड़ी में जीवन गुजार रहे हैं. जबकि दूसरी ओर करीब 1.1 करोड़ सजे-धजे मकान बिक नहीं पाने के कारण खाली पड़े हुए हैं.
स्थिति यह है कि शेयर बाजार में सूचीबद्ध आवास क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों के पास मार्च 2015 के अंत तक करीब 70,000 करोड़ रुपए मूल्य के अनबिके मकान मौजूद थे. न केवल आवास क्षेत्र की बड़ी कंपनियां बल्कि छोटी-छोटी कंपनियों की आवास निर्माण और आवास विक्रय संबंधी तस्वीर एकदम भयावह दिखाई दे रही है. आवास संबंधी राष्ट्रीय अध्ययन बता रहे हैं कि वर्ष 2015 में देश भर में मकानों की कीमत गिरेगी तथा कंपनियों के नकदी प्रवाह की स्थिति और बुरी हो जाएगी. यह स्थिति पहले से ही आर्थिक तंगी झेल रही आवासीय कंपनियों को बैंक का ऋण चुका पाने में असमर्थ बना देगी.
देश में मकानों की मांग और अनबिके मकानों की स्थिति के बीच विसंगति कितनी चिंताजनक है, इसका शहर स्तर पर अनुमान हाल ही में प्रकाशित प्रॉपर्टी सलाहकार नाइट फ्रैंक की नवीनतम रिपोर्ट से लगाया जा सकता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 की पहली छमाही में दिल्ली-एनसीआर में घरों की बिक्री में 50 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह बिक्री 14,250 इकाई रही. इतना ही नहीं, नए घरों की पेशकश 68 प्रतिशत घटकर 11,360 इकाई ही रह गई, जो पिछले साल की समान अवधि में 35,500 इकाई थी. दिल्ली-एनसीआर में बन चुकीं, पर बिक नहीं पाई आवासीय इकाइयों की संख्या 1.9 लाख है.
आवास क्षेत्र से संबंधित अनुभवी लोगों का कहना है कि यदि मौजूदा बिक्री को ध्यान में रखा जाए, तो बिल्डरों को इन मकानों को बेचने में पांच साल लगेंगे. चूंकि महंगे मकानों की अधिकांश खरीद निवेश के उद्देश्य से की गई है, न कि स्वयं उपयोग के लिए, इसलिए आवास क्षेत्र के हालात और खराब हो गए हैं. देश के आवास क्षेत्र में सुधार की संभावना इसलिए कम है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था सुस्ती की चपेट में है और भारतीय अर्थव्यवस्था भी उससे अछूती नहीं है.
यकीनन जिंदगी की तीन अनिवार्य आवयकताओं रोटी, कपड़ा और मकान में से मकान की कमी इस समय देश के करोड़ों लोगों को दिन-प्रतिदिन के जीवन में तनावग्रस्त करते हुए दिखाई दे रही है. एक गैर सरकारी संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि देश में करीब 15 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें जर्जर व बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चले मकानों और मलिन बस्तियों में गुजर-बसर करनी पड़ रही है. देश में लगातार तेजी से बढ़ती जनसंख्या आवास समस्या को और चुनौतीपूर्ण बनाते हुए दिखाई दे रही है. हाल ही में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग की रिपोर्ट में बताया गया है कि जनसंख्या के मामले में 2022 में भारत चीन से आगे निकल जाएगा. चीन की आबादी अभी एक अरब 38 करोड़ है, जबकि संयुक्त राष्ट्र ने भारत की जनसंख्या वर्तमान में एक अरब 31 करोड़ बताई है. रिपोर्ट का आकलन है कि सात वर्ष बाद दोनों देशों की आबादी तकरीबन एक अरब 40 करोड़ होगी. उसके बाद भारतीय जनसंख्या चीन से आगे निकल जाएगी. 2030 तक भारतीय जनसंख्या के डेढ़ अरब तक पहुंचने का अनुमान है.
ऐसी छलांगे लगाकर बढ़ती हुई जनसंख्या आवास समस्या को और बढ़ाते हुए दिखाई देगी. शहरों में आवास की कमी जहां मलिन बस्तियों की संख्या बढ़ाते हुए दिखाई देगी, वहीं जल-मल और पर्यावरण जैसी समस्याओं को और चिंताजनक रूप देते हुए दिखाई देगी. इसके अलावा आवास क्षेत्र को चिंताजनक बनाने के लिए कुछ और कारण भी हैं. मसलन गांवों से लोगों का शहरों की ओर पलायन, लोगों की कम आमदनी के कारण घर लेने की क्षमता का अभाव, आवास निर्माण सामग्रियों का लगातार महंगा होना, आवास ऋण प्राप्ति में कठिनाई, आवास ऋण पर ब्याज की दर अधिक होना, रिहायशी जमीन का पर्याप्त विकास न होना और उपलब्ध आवास निर्माण जमीनों का बहुत सारे कानूनी विवादों में फंसे होना आदि.
ऐसे में केंद्र सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह तत्काल आवास क्षेत्र की विसंगति को दूर करने की डगर पर आगे बढ़े. जरूरी है कि सरकार एक ओर तेजी से बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण मकानों की कमी को दृष्टिगत रखते हुए आम आदमी तक उसकी पहुंच सुनिश्चित करे. वहीं दूसरी ओर सरकार मकानों की लागत को कम करने और मकानों की बिक्री के लिए प्रोत्साहनदायक सहयोग के हाथ आगे बढ़ाए. देश में आवास क्षेत्र संबंधी विसंगति को दूर करने के लिए कार्य योजना बनाए. चूंकि वर्तमान में मकानों की करीब 75 फीसद समस्या समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग वाले लोगों से जुड़ी हुई है. ऐसे में इस वर्ग के लोगों को आवास हेतु जमीन उपलब्ध कराने एवं आवास ऋण पर ब्याज व अन्य सब्सिडी मुहैया कराने की जरूरत है ताकि वे खुद का मकान खरीद सकें. इसके साथ-साथ सरकार के द्वारा समाज के वंचित और कमजोर वगरे के आवास की विभिन्न योजनाएं को भी सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने के लिए ठोस और कारगर कदम उठाने होंगे.
जिन लोगों के पास मकान खरीदने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, उनके लिए किराए के मकानों की व्यवस्था सरल की जानी चाहिए. कई ऐसे लोग भी हैं जो अपने मकान को केवल इस वजह से किराये पर नहीं देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि किरायेदार उनके मकान पर कब्जा जमा लेगा. ऐसे में जरूरी है कि किराया नियंत्रण कानून को व्यवस्थित किया जाए. ऐसा किए जाते समय मकान मालिक के हित भी सुरक्षित रखे जाएं. बड़ी संख्या में लोगों को किराए पर मकान मिल सकें, इस हेतु यह भी किया जा सकता है कि खाली पड़े मकानों को बाजार में लाने के लिए उन पर कर लगाया जाए. बैंकों को भी आवास ऋण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी.
देश में आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के परिप्रेक्ष्य में कुछ और बातों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. नए किफायती आवास प्रावधान सुनिश्चित किए जाएं जिसमें फ्लोर स्पेस इंडेक्स यानीअधिक ऊंची इमारतें बनाने, घनत्व की आसान शतरे और अनिवार्य पार्किग की शर्तों में ढिलाई बरतने जैसी बातें शामिल हों. सरकारी शुल्क कम किए जाने चाहिए. इससे मकानों की कीमतों में कमी आएगी और मांग बढ़ेगी. इससे आवास निर्माण कंपनियों का नकदी प्रवाह संभावित नकारात्मकता से बचेगा और वे बैंकों के ऋण चुकाने में सक्षम बनी रहेंगी. आवास क्षेत्र को प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर के दायरे में लाए जाने का प्रयास करना चाहिए ताकि खरीदार और विक्रेता, दोनों को लाभ हासिल हो सके.
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