बहुत कुछ रखा है नाम में

Last Updated 31 Aug 2015 05:25:11 AM IST

लुटियन दिल्ली के औरंगजेब रोड का नाम अब होगा एपीजे अब्दुल कलाम रोड.


औरंगजेब रोड़ का नाम अब होगा एपीजे अब्दुल कलाम रोड़.

औरंगजेब रोड पर ही पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का भी बंगला है. दरअसल दिल्ली में अहम जगहों के नाम 70 के दशक से बड़े पैमाने पर बदलने लगे. उन नामों को खासतौर पर बदला गया जो अंग्रेजों से जुड़े थे. देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद अंतरिम सरकार के दौर में रहते थे 1, विक्टोरिया रोड के बंगले में. इसलिए यह रोड हो गई राजेंद्र प्रसाद रोड. यह रोड शास्त्री भवन के ठीक आगे है.

जिस कृष्ण मेनन मार्ग में आजकल अटल बिहारी वाजपेयी रहते हैं, इसे कभी कहते थे हेस्टिंग्स रोड. इधर ही रक्षा मंत्री रहने के दौर में कृष्ण मेनन भी रहे. शायद इसलिए यह रोड हो गई उनके नाम पर. दिल्ली में स्थित अखबारों की दुनिया की ‘काशी’ को 1967 तक दिल्ली-मथुरा रोड कहते थे. फिर यह हो गया बहादुर शाह जफर मार्ग. और अब तो यादों से भी ओझल हो चुका है पुराना नाम. जिस जनपथ में देश के खासमखास लोग रहते हैं, वह कभी था इम्पीरियल रोड. इसी रोड पर इम्पीरियल होटल भी है. इधर कॉफी पीने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना लगातार आते थे. उनके उस दौर के कुछ चित्र अब भी इधर लगे हैं.

हालांकि कुछ नाम बदले गए पर वे फिर भी पूरी तरह से नहीं मिटे. उदाहरण के रूप में सन् 1977 में इरविन रोड हो गया बाबा खड़ग सिंह मार्ग. यह कनाट प्लेस वाले हनुमान मंदिर के सामने है. पर इस रोड पर स्थित पेट्रोल पंप की पर्ची पर आपको अब भी इरविन रोड पेट्रोल पंप ही लिखा मिलता है. इससे ज्यादा दूर नहीं है बंगला साहिब मार्ग. क्या आपको पता है यह किधर है? पर दिल्ली से परिचित लोगों को बेर्यड रोड का जरूर आइडिया होगा. बंगला साहिब मार्ग का पुराना नाम बेर्यड रोड ही था. वह अब भी अपनी जगह बनाए हुए है. इधर काली का प्राचीन मंदिर है.

देश के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की 1969 में मृत्यु के बाद शवयात्रा वेजले रोड से निकली जामिया मिलिया इस्लामिया जाने के लिए. इसलिए इस रोड का नाम कर दिया गया जाकिर हुसैन मार्ग. यह रोड ओबराय होटल के ठीक सामने है. देश में 70 के दशक के अंतिम सालों में जनता पार्टी की सरकार बनी तो लगभग भुला से दिए गए समाजवादी आंदोलन के दो दिग्गजों क्रमश: राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के नाम पर विलिंग्डन अस्पताल और इरविन अस्पताल के नाम रख दिए गए.

उधर, जयप्रकाश नारायण अस्पताल के ठीक सामने वाली रोड 1972 तक कहलाती थी सकरुलर रोड. उसके बाद हो गई जवाहर लाल नेहरू मार्ग. नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों के नामों पर स्लम बस्तियों से लेकर अस्पतालों के नामों को रखने की जिद-सी रही. सत्तर के दशक के अंत से पहले राऊज एवेन्यू का नाम रख दिया जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय मार्ग के नाम पर. दरअसल 1965 से लेकर 1975 के दौरान दिल्ली में बहुत-सी जगहों के नामों को बदलने का सिलसिला चला. उम्मीद के मुताबिक लेखकों, चित्रकारों, कलाकारों की अनदेखी हुई.

कम से कम एक रोड को दो नामों से जाना जाता है. दोनों ही नाम ठीक हैं. हम बात कर रहे हैं संसद मार्ग की. इसे पहले पार्लियामेंट स्ट्रीट ही कहते थे. और संसद मार्ग के ठीक आगे की सड़क ओल्ड मिल्स रोड हो गई रफी अहमद किदवई के नाम पर रफी मार्ग. वे देश के शिक्षा मंत्री भी रहे.

आपको मालूम होगा कि एक खास तिथि पर दिल्ली की एक खास सड़क का नाम है. जिस अलबुर्कर रोड पर स्थित बिड़ला हाऊस में गांधी जी की हत्या हुई उसे अब कहते हैं तीस जनवरी मार्ग. इस जगह से एक फर्लाग की दूरी पर है राजेश पायलट मार्ग. आठ साल पहले तक ये था साउथ एंड रोड. ये औरंगजेब रोड यानी अब एपीजे अब्दुल कलाम रोड से सटा है.

 और एक दौर में दिल्ली-6 वाले एडर्वड पार्क में सुबह घूमने के लिए पहुंचते थे. उसे 1972 में कर दिया गया सुभाष पार्क. 70 के दशक  के आसपास ही हार्डिग एवेन्यू हो गया तिलक मार्ग और हार्डिग ब्रिज हो गया तिलक ब्रिज. उसी दौर में हार्डिग लाइब्रेरी को कहा जाने लगा हरदयाल लाइब्रेरी. हालांकि दिल्ली-6 वाले इसे अब भी हार्डिंग लाइब्रेरी कहना ही पसंद करते हैं. इसी दौर में कर्जन रोड बन गया कस्तूरबा गांधी मार्ग. 70 के दशक के मध्य में लोधी रोड की एक खास सड़क का नाम तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती मार्ग कर दिया गया. इसके पास ही गुरु देव रविंद्र नाथ टेगौर के नाम पर सरकारी अफसरों की कॉलोनी रविंद्र नगर भी है. पर, दिल्ली में कोई खास सड़क या पार्क किसी हिंदी के लेखक के नाम पर हो, इस बात की उम्मीद कम है.

देश आजाद हुआ तो बड़े सरकारी बाबुओं के लिए शान नगर और मान नगर नाम से दो कालोनियां बनीं. क्या आप बता सकते हैं इनके मौजूदा नाम? बाद में इनके नाम कर दिए गए रविंद्र नगर और भारती नगर. कारण यह था कि शान नगर और मान नगर को लेकर बहुत से लोगों को आपत्ति थी. उनका कहना था कि इन नामों से लगता है मानो देश में अब भी राजे-रजवाड़ों का राज हो.

 पर हैरानी होती है कि नई दिल्ली को बनाने में खास योगदान देने वाले सरदार सोबा सिंह के नाम पर यहां पर कोई सड़क, लेन या पार्क का नाम नहीं है. दिल्ली के इतिहासकार आरवी स्मिथ ने इस बात पर अफसोस जताया कि सर सोबा सिंह के जनपथ स्थित घर के आगे एक पत्थर तक नहीं लगा है जो बताता हो कि आखिर कौन थे सर सोबा सिंह. जिस शख्स ने राजधानी की तमाम खासमखास इमारतों का ठेकेदार के रूप में निर्माण करवाया हो उसके नाम पर बंगले के बाहर तक कोई पत्थर नहीं लगा. यही हाल  महान आर्किटेक्ट जोसेफ एलेन स्टीन के साथ भी किया गया. उन्होंने राजधानी में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, इंडिया हैबिटेट सेंटर, त्रिवेणी कला संगम समेत अनेक इमारतों के डिजाइन तैयार किए, पर उनके नाम पर भी कोई सड़क या पार्क नहीं है.

कलकत्ता से राजधानी दिल्ली स्थानांतरित कर दी गई साल 1911 में. उसके साथ ही राष्ट्रपति भवन (वाइसराय निवास), साउथ ब्लाक, नार्थ ब्लाक, तीन मूर्ति भवन और कनॉट प्लेस समेत बहुत-सी इमारतों के निर्माण का फैसला लिया गया. हालांकि राजधानी में तमाम नेताओं के नामों पर रोड, पार्क और दूसरी जगहें हैं, पर नई दिल्ली की महान इमारतें बनाने वाले डिजाइनर लुटियंस के नाम पर कुछ नहीं है. उन्होंने राष्ट्रपति भवन के साथ-साथ इंडिया गेट, राष्ट्रीय अभिलेखागार, जनपथ, राजपथ और गोल मार्किट का भी डिजाइन तैयार किया था.

क्या आप कनॉट प्लेस के बिना नई दिल्ली की कल्पना भी कर सकते हैं. निर्विवाद रूप से यह राजधानी का सबसे खास प्रतीक है. लुटियंस के साथी और नई दिल्ली के चीफ आर्किटेक्ट रोबर्ट टोर रसेल ने इसका डिजाइन तैयार किया था. अफसोस कि उनके नाम पर भी कनॉट प्लेस में कोई गली या लेन का नाम नहीं है.

विवेक शुक्ला
लेखक


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