तीन साल बाद

Last Updated 30 Aug 2015 12:37:16 AM IST

यह ‘लव, सेक्स और धोखा’ टाइप कोई फिल्मी कहानी नहीं है बल्कि एक ऐसी मौलिक हत्या कथा है जो र्मडर मिस्ट्री फिल्मों और सीआईडी टाइप के सीरियलों से कहीं आगे की है.


सुधीश पचौरी, लेखक

हत्या की कहानी किस तरह से पेश की जाती है, किस तरह से वह दर्शकों के साथ साधरणीकृत होती है, किस तरह कहानी उच्चवर्ग की सेक्सुलिटी और उन्मुक्त जीवनशैली को खोलती है और किस तरह ऊंचे वर्ग की अंदरूनी स्वार्थपरता, कपट, छल,  फरेब को खोलकर एक दर्शक के रूप में हमें एक नई सत्यकथा वाली सनसनी में शामिल कर लेती है और किस तरह चैनलों, एंकरों और दर्शकों को इस कहानी में अपने-अपने चेहरे दिखने लगते हैं और सतत लाइव प्रसारण किस तरह अपराध कथा को बेचता है, यह सब देखने की कोशिश ही इस टिप्पणी का उद्देश्य है. हत्याकांड के विवरण से ज्यादा महत्वपूर्ण है इस कहानी की टीवी प्रस्तुति और उसका समेकित प्रभाव. यह कहानी रहस्य रोमांच से भरपूर है. इसके केंद्रीय चरित्र ऊंचे, ताकतवर और पैसे वाले हाई सोसाइटी के लोग हैं. उनकी मुक्त और चिर समारोहित जीवनशैली, उसकी चमक-दमक, उसका ग्लैमर और इस सबके बीच एक ‘परफेक्ट र्मडर’ है. एक हत्यारी है या कई हत्यारे हैं और सबकी लंबी चुप्पी है. फिर अचानक कहानी का कोढ़ की तरह फूटना और चैनलों पर बहना है.

यह ‘लव, सेक्स और धोखा’ टाइप कोई फिल्मी कहानी नहीं है बल्कि एक ऐसी मौलिक हत्या कथा है जो र्मडर मिस्ट्री फिल्मों और सीआईडी टाइप के सीरियलों से कहीं आगे की है. इसका प्रसारण हमें किस तरह से और किस प्रकार का दर्शक बनाता है, यह देखना एक हत्या कथा को देखने से ज्यादा जरूरी है. कहानी की अपनी ताकत है कि वह अनिवार्य हो उठी है. वह हर शाम रेशा-रेशा खुल रही है और एक सनसनी बनती चली जा रही है. हर दिन नई सूचनाएं, नए गवाह और नई पूछताछ है. पुलिस जितना जानती है उसका एक अंश ही हम तक आता है. कहानी हर शाम की दावत बन गई है. लगता है हम ‘बीस साल बाद’ की तर्ज पर ‘तीन साल बाद’ देख रहे हैं. इस कहानी में अपनी ताकत है, अपनी सनसनी है और रहस्य-रोमांच का रस है. ऐसी कहानियां दर्शक को ‘तुरंता जासूस’ बना देती हैं और हर दर्शक कयास लगाने लगता है कि हत्यारा कौन है? हत्यारा एक है कि कई हैं? हत्या का ‘मोटिव’ क्या हो सकता है? पक्के सबूत हैं या नहीं?

जिस दिन कहानी फूटी है, उसी दिन से कहानी के पक्ष और विपक्ष बन गए हैं. कहानी की पेशबंदी सब चैनलों पर  कुछ इस तरह से की गई है मानो असल  हत्यारी/हत्यारे हमारे  सामने हैं और अब सिर्फ हत्या के हेतु की तलाश की जानी है. ताकतवरों के दो पक्ष चैनलों पर हर शाम अपने तर्क देते हैं. एक ओर कथित हत्यारी/हत्यारे को ‘बिला शक हत्यारा’ मानकर चला जाता है, तो दूसरी ओर ऐसे ‘इनसाइडर’ भी सामने आते हैं जो कहते हैं कि यह बिना प्रमाण के मीडिया ट्रायल है इसे नहीं होना चाहिए. दिल्ली के एक चौराहे पर किसी  मामूली लड़के -लड़की से कहासुनी होने पर लड़के के एकतरफा मीडिया ट्रायल से उनको तकलीफ नहीं होती. तकलीफ तभी होती है जब अपने बंदे का मीडिया ट्रायल होता है! एक चैनल पर एक नामी पूर्व संपादक और कालमकार तो पहले दिन से ही कहने लगे कि इंग्लैंड में ऐसे केस के साथ ऐसा मीडिया ट्रायल न हुआ होता. ताकतवर लोगों के दोस्त अपने दोस्तों को हर हाल में बचाने की कोशिश करते हैं. दोस्त हों तो ऐसे!

हर चैनल बहस में शामिल लोगों से और प्रकारांतर से दर्शकों से सवाल पूछता है कि यह कैसी मां है जो बेटी को बहन बताती रही और कैसा पति है जो उस बेटी के बहन होने का यकीन करता रहा? यह कैसी मां है जो अपनी बेटी/सौतेली बहन को मारने के बाद, उसे अमेरिका में तीन साल तक जीवित बताती रही और मारने के बाद उसका इस्तीफा ईमेल किया? उसके मोबाइल/मेल पर उसके मित्रों को शीना के नाम से संदेश भेजती रही ताकि उनको लगे कि शीना जिंदा है? और यह कैसा पति है जिसने तीन साल में कभी यह पूछने की कोशिश तक न की कि शीना तीन साल तक कहां गायब  है?

ऐसे विवरणों के बाद कई एंकर कहानी की ‘भीतरी सड़ांध’ पर थू-थू करने लगते हैं. यह दर्शक की मिडिल क्लासी नैतिकता और मर्यादा को जगाना है जो दर्शक को नैतिक न्याय में कहानी के गिरे हुए पात्रों से ऊपर उठा हुआ बताए. इस तरह यह अपराध अपवाद नजर आए, अति सफल उच्चवर्ग अन्यथा साफ-सुथरा नजर आए! अफसोस कि देसी रूपर्ट मर्डोक अपनी कहानी को संभाल नहीं पाए, वरना सब कुछ ठीक ही तो था! ऐसा भाव भी संचारित होता है. 

कहानी की प्रस्तुति एक नैतिक विमर्श प्रसारित करती है. समाज के ‘मूवर और शेकर’, ताकतवर सेलीब्रिटी परिवार के इस तरह के ‘अंदरूनी अजनबीपन’ को देख आम दर्शक चौंकता है कि यह कैसा परिवार है? कैसे पति-पत्नी हैं कि घर की एक युवा लड़की अचानक गायब है और किसी को उसके सीन से हट जाने की परवाह तक नहीं है? अपने परिवार के साथ कहानी देखता दर्शक अपने मन में तुलना करने लगता है कि उसके परिवार के मुकाबले पीटर-इंद्राणी परिवार के सदस्य ‘बेहद स्वार्थी’ और ‘आत्मलिप्त’ हैं. और इस तरह दर्शक अपने को अपने परिवार की ‘बेहतर केअर’ करने वाला बनकर इन ऊंचे सेलीब्रिटीज से अपने को नैतिक रूप से ऊंचा और आदर्श समझने लगता है.

कहानी क्या है, पूरी एक हत्यारी पटकथा है जिस पर नया ‘सनसनी’ टाइप धरावाहिक बन सकता है और फिल्में भी बन सकती हैं. वह आईना भी है जो दिखाता है कि कहीं बाकी अतिसफल लोगों की चमक-दमक के पीछे भी ऐसी ही अपराध कथाएं तो नहीं छिपीं. कहानी में इतने ‘ट्विस्ट्स और टर्न्‍स’ है और अभी और खुलासे आने हैं कि अंत में वह किस करवट बैठेगी? लेकिन अंत में अति सफल और ताकतवर लोगों के ‘सामाजिक महत्व’ का महत्व समझाया जाने लगेगा और हम फिर ऐसे लोगों को हमदर्दी देने को विवश किए जाएंगे. प्रसारण इधर ही जा रहे हैं और जाएंगे.



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