देशी चिकित्सा से दुरुस्त होगी सेहत

Last Updated 29 Aug 2015 12:31:47 AM IST

दिल्ली में एम्स की तर्ज पर सरिता विहार में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद अगले वर्ष शुरू हो जाएगा.


देशी चिकित्सा से दुरुस्त होगी सेहत

आयुष मंत्रालय का यह निर्णय भारत के स्वास्थ्य मानचित्र में एक नया अध्याय जोड़ेगा. इसके साथ ही मंत्रालय ने यह भी सुनिश्चित किया है कि हर जिले में एक आयुष अस्पताल हो. आयुर्वेद को आगे बढ़ाने के लिए शोध एवं विकास पर जोर दिए जाने की जरूरत को समझते हुए, इसके लिए करीब 150 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है. इसमें नेशनल रिसर्च सेंटर बनाने की योजना भी प्रस्तावित है.

हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों की कितनी कमी है इसका अंदाजा वैश्विक औसत से लगाया जा सकता है. प्रति 10 हजार लोगों पर फिजिशियन वैश्विक औसत 14.1 है वहीं भारत का सात है. इससे भी पीड़ाजनक स्थिति यह है कि डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं जाना चाहते. ऐसे में यह जरूरी है कि अपने परंपरागत चिकित्सा तंत्र को मजबूत किया जाए. यह दुर्भाग्य है कि देश की मूल चिकित्सा पद्धति अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. जब भी कोई चिकित्सा सुधार योजना बनती है तो उसमें आधुनिक चिकित्सा सुधार के लिए भारी भरकम बजट का प्रावधान होता है, पर भारत की अपनी पद्धति आयुर्वेद के शिक्षण स्तर में सुधार के लिए शायद ही कोई ठोस उपाय किया जाता है. नई और वैज्ञानिक उपचार विधियों के इस युग में पारंपरिक और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के विकास, स्तरोन्नयन और अनुसंधान के जरिए ही भारतीयों की अस्वस्थता को दूर करने की पहल की जानी चाहिए, क्योंकि आज इस तथ्य को स्वीकार किया जा रहा है कि स्वास्थ्य का अर्थ ‘मात्र रोग से मुक्ति’ नहीं बल्कि इसमें शरीर से भी अधिक महत्वपूर्ण अन्य पहलू शामिल है.

वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में विशेष रोग के इलाज की बजाए प्रकृति का ही एक अंग समझकर मरीज का उपचार किया जाता है. दरअसल, यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम सहज उपलब्ध तरीके, जो पश्चिमी संस्कृति की देन हैं उन्हें ही प्रमुखता देते हैं, परंतु वे देश भी विविध प्रकार के प्राकृतिक इलाज की ओर रुख कर रहे हैं, जो एलोपैथिक के पुराने पैरोकार हैं. दूसरी तरफ पुरातन चिकित्सा पद्धति के प्रति हमारी उदासीनता बनी हुई है. जबकि भारतीय वैकल्पिक चिकित्सा बोर्ड द्वारा चलित अंतरराष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय अकादमी है जो भारत व विदेशों में प्राकृतिक एवं पूरक चिकित्सा और स्वास्थ्य संवर्धन के क्षेत्र में अग्रणी संस्था है. अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर कॉम्प्लीमेंटरी एंड ऑल्टरनेटिव मेडीसिन ऐसे उदाहरणों का उल्लेख करता है जिसमें अन्य पद्धतियों के अतिरिक्त प्राकृतिक चिकित्सा, पाद-चिकित्सा, जड़ी-बूटी, आयुर्वेद, ध्यान, योग, पोषण-आधारित उपचार पद्धतियां शामिल हैं.

बीते दशक में वैश्विक लहर का आगाज हुआ है जिसका लक्ष्य आम आदमी को बेहतर जीवन देना, चिकित्सक और मरीजों के बीच बेहतर रिश्ते की बुनियाद रखना और कम खर्च में अच्छा इलाज मुहैया कराना है. विविध प्रकार के प्राकृतिक इलाज की ओर रुख कर रहे इस नए प्रारूप को इंटिग्रेटेड मेडिसिन या समन्वयकारी चिकित्सा कहा जा रहा है. विश्व का एक बड़ा तबका वैकल्पिक चिकित्सा की ओर न केवल बढ़ रहा है बल्कि उसके विस्तार के लिए एक नवीन धरातल भी तैयार कर रहा है. 

ऐसे देश जहां लंबे समय से पश्चिमी चिकित्सा को ही सबसे अच्छा माना जा रहा है आज वहां भी वैकल्पिक चिकित्सा को अपनाया जा रहा है. इसके प्रति रुझान कनाडा में 70 प्रतिशत, फ्रांस में 75 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया में 48 प्रतिशत और अमेरिका में 10 प्रतिशत है. अमेरिका में ‘डीन ऑर्निश’ ने जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों से निपटने के लिए उनके नुस्खे लोगों तक पहुंचाए. वे ऐसे पहले शख्स है जिन्होंने साक्ष्य आधारित शोध के जरिए सिद्ध किया कि शाकाहार के साथ शरीर और मन में सकारात्मक भावों को जगाकर दिल की बीमारी, टाइप टू डायबिटीज और कुछ तरह के कैंसर को भी शुरुआती दौर में ही ठीक किया जा सकता है. वैकल्पिक चिकित्सा के महत्व को सत्यापित करने हेतु इन्होंने अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में प्रिवेंटिव मेडिसिन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की. ब्रिटेन के डॉ. जॉर्ज लोविथ ने चिकित्सा की मल्टीस्किल तकनीक को विकसित करने में मदद की है. आज वे ब्रिटेन में वैकल्पिक चिकित्सा के सबसे प्रमुख समर्थकों में से एक हैं.  भारत के पहले रोड्स स्कॉलर और पीजीआरएमईआर चंडीगढ़ के पूर्व निदेशक रंजीत राय चौधरी पिछले 40 सालों से भारत के परंपरागत चिकित्सकों की सदियों तक इस्तेमाल में लाई गई सैकड़ों जड़ी-बूटियों के स्वास्थ्य संबंधी दावों के अध्ययन, पहचान और परीक्षण में केंद्र सरकार की मदद कर रहे हैं. उनका मानना है कि पारंपरिक ज्ञान और चिकित्सा प्रणालियों के विशाल भंडार की आधुनिक चिकित्सा के आने के बाद व्यापक रूप से अनदेखी की जाती रही है.

वैश्विक स्तर पर वैकल्पिक चिकित्सा को स्वीकार किया जाना इस सत्य को स्थापित करता है कि स्वास्थ्य का तात्पर्य रोगों से मुक्ति मात्र नहीं अपितु निरोगी काया की रचना करना है. ऐलोपैथी यद्यपि तुरंत परिणामों का दावा करती है तथापि वह रोगों की जड़ समाप्ति की बात कहीं नहीं करती. भारत जैसे विशाल देश में, जहां की लगभग सत्तर प्रतिशत जनसंख्या आज भी गांवों में निवास करती है, वैकल्पिक चिकित्सा का ज्ञान, स्वस्थ भारत की पृष्ठभूमि निर्मित कर सकता है और यही कारण है कि 1995 में भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी विभाग की स्थापना की गई थी. नवम्बर 2003 में इसका नाम बदल कर आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी एवं होम्योपैथी (आयुष) विभाग रखा गया. परंतु जिस गति से इसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता थी, वह नहीं हुआ. जरूरत है कि चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र, विशेषकर आयुष शिक्षा में सुधार हों जिससे स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ आम जन तक पहुंचाया जा सके. बीते दशकों में आयुष चिकित्सा-शिक्षा के पाठ्यक्रम को नवीनीकृत नहीं किया गया. आयुष चिकित्सा शिक्षा प्रणाली के शोध पर न ही कोई ध्यान दिया गया और न ही इस प्रणाली में बीमारियों से संबंधित किसी भी प्रकार के शोध आंकड़े उपलब्ध हैं.

अब केंद्र सरकार आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी जैसी विधाओं (आयुष) के लिए पृथक नियामक बनाने जा रही है. सरकार की नई स्वास्थ्य नीति में इसे शामिल किया जाएगा. स्वास्थ्य मंत्रालय आयुष के लिए केंद्रीय औषधि नियंत्रक गठित करने की कवायद में है. यह निकाय विशेष तौर पर आयुष उत्पादों और उनके मानकों पर नजर रखेगा. केंद्र सरकार का यह प्रयास स्वस्थ भारत के निर्माण में तभी सफल भूमिका निभाएगा जब ‘स्वास्थ्य शिक्षा’ पर जोर दिया जाएगा. ‘स्वास्थ्य शिक्षा’ रोगों के कारणों और निराकरण की जानकारी ही नहीं, ‘स्वस्थ-जीवन’ की ओर किस तरह कदम बढ़ाया जाए यह दिशा निर्देशन देती है. इसलिए माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर ही ‘स्वास्थ्य शिक्षा’ जैसे विषय को जोड़े जाने की आवश्यकता है. भारत में मुख्यधारा से जुड़ी चिकित्सा प्रणाली में ढांचागत सुधार सहजता से होना संभव नहीं है. ऐसे में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति स्वस्थ भारत के स्वप्न को साकार करने में यकीनन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. जरूरत है अपनी परंपराओं को पहचानने एवं स्वीकारने की.

ऋतु सारस्वत
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