न्यू डेवलपमेंट बैंक की सार्थकता

Last Updated 04 Aug 2015 12:26:31 AM IST

ब्रिक्स देशों के न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) ने कामकाज शुरू कर दिया है.


न्यू डेवलपमेंट बैंक की सार्थकता

बैंक के उद्घाटन समारोह में एनडीबी के मुखिया केवी कामथ, चीन के वित्तमंत्री लू जिवेई और ब्रिक्स समूह देशों के अधिकारियों ने जिस उत्साह का प्रदर्शन किया उससे बैंक की सार्थकता की उम्मीद बढ़ गयी है. संभावना व्यक्त की जा रही है कि यह बैंक चीन के नेतृत्व वाले नए एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) के साथ मिलकर पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाले विश्व बैंक की तर्ज पर काम करेगा. अच्छी बात यह है कि विश्व बैंक और जापान समर्थित एशियाई बैंक समेत सभी वैश्विक आर्थिक संस्थान व समूहों ने इस बैंक को अपना प्रतिद्वंदी मानने के बजाए ब्रिक्स देशों के विकास के लिए आवश्यक माना है.

ब्रिक्स समूह ने गत आठ जुलाई को रूस के उफा में आयोजित सातवें सम्मेलन में इस बैंक को लांच किया था. इससे पहले ब्राजील के समुद्र तटीय शहर फोर्टलेजा में छठे शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स विकास बैंक और आकस्मिक निधि की स्थापना का निर्णय लिया गया. गौरतलब है कि ब्रिक्स देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसी विश्व की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं. बदलते वैश्विक परिदृश्य में इनके बीच आर्थिक व सांस्कृतिक सहयोग बेहद आवश्यक माना जा रहा है. आज अमेरिका भले विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन इस समूह की अर्थव्यवस्थाएं उसके वर्चस्व को चुनौती दे सकती हैं.

यह सही है कि 2007 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था ब्रिक्स देशों की तुलना में दोगुनी थी लेकिन ब्रिक्स देशों की लगातार बढ़ती अर्थव्यवस्था के चलते इनकी सामूहिक शक्ति पिछले साल अमेरिकी जीडीपी के लगभग बराबर पहुंच गयी. ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना के समय 100 अरब डॉलर की अधिकृत पूंजी का निर्णय लिया गया पर शुरुआती साल में यह पूंजी 50 अरब डॉलर की होगी जिसमें हर ब्रिक्स सदस्य का बराबर का योगदान होगा. आईएमएफ और विश्व बैंक के विपरीत एनडीबी में पांच संस्थापक देशों में से किसी के पास वीटो नहीं है. हर पांच साल बाद प्रेसीडेंसी रोटेट होती रहेगी.

एनडीबी के अस्तित्व में आने से अब ब्रिक्स देशों की ढांचागत परियोजनाओं मसलन सड़क, रेल और बंदरगाह जैसे क्षेत्रों में सुधार के लिए आसान शतरें पर ऋण उपलब्ध हो सकेगा साथ ही विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी वित्तीय संस्थाओं पर इन समूह देशों की निर्भरता घटेगी. ब्रिक्स देशों की सर्वाधिक आर्थिक निर्भरता इन पश्चिमी वित्तीय संस्थाओं पर ही है जो ढांचागत सुविधाओं के विस्तार के लिए न सिर्फ ऊंची दर पर ऋण देती हैं बल्कि मनमाना ब्याज भी वसूलती हैं. यही नहीं, ये संस्थाएं अमीर देशों के प्रभाव में हैं और उनके हितों का पोषण करती हैं किंतु अब एनडीबी की स्थापना से विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को छलांग लगाने का आसमान मिल गया है. माना जा रहा है कि एनडीबी द्वारा पहला ऋण चीनी मुद्रा रेनमिनबी में अगले वर्ष अप्रैल में जारी होगा.

ब्रिक्स समूह देशों ने निर्णय लिया था कि एनडीबी दो साल के अंदर मूर्त रूप ले लेगा किंतु तय अवधि से पूर्व ही कामकाज शुरू कर इसने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर दी है. एनडीबी का मुख्यालय चीन के शंघाई में है. इसकी अध्यक्षता की कमान पहले छह साल तक भारत के हाथों में है. इस समय एनडीबी के मुखिया केवी कामथ हैं. उन्होंने आशा जतायी है कि एनडीबी और चीन के एआईआईबी के बीच करीबी तालमेल होगा और इसके लिए दोनों बैंकों के बीच बेहतर तालमेल के लिए हॉटलाइन स्थापित कर दी गयी है.

गौरतलब है कि एआईआईबी में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा शेयर होल्डर है. मौजूदा समय में इस बैंक में चीन की 20.06 फीसद हिस्सेदारी है जबकि भारत साढ़े सात फीसद का हिस्सेदार है. रूस की हिस्सेदारी तकरीबन 5.92 है. ब्रिक्स देशों के बीच इस बात पर सहमति बनी है कि एनडीबी में दस-दस अरब डॉलर की पूंजी लगाएंगे और सभी का बैंक पर बराबर का मालिकाना हक होगा. इसके अलावा सदस्य देशों ने 100 अरब डॉलर की आपात आरक्षित विदेशी विनिमय व्यवस्था का भी निर्णय लिया है. इस कदम से सदस्य देशों को अल्पकालिक नकदी दबाव से निपटने में मदद मिलेगी.

भारत में कई ढांचागत परियोजनाएं पूंजी के अभाव में सुस्त पड़ी हैं. एनडीबी की मदद से इन्हें गति मिलेगी. भारत रूस से पेट्रोलियम परिसंपत्तियां खरीदने के लिए आसान दर पर कर्ज हासिल कर सकेगा. चीनी कंपनियां भी भारत में निवेश में रुचि दिखा सकती हैं. तर्क दिया जा रहा था कि रूस व चीन तथा भारत-चीन के बीच गहरे मतभेद हैं, लिहाजा ब्रिक्स शिखर सम्मेलनों का कोई परिणाम नहीं निकलने वाला लेकिन ब्रिक्स की येकाटेंरिनवर्ग से शुरू हुई फोर्टलेजा तक की यात्रा ने सभी आशंकाएं निमरूल साबित कर दी हैं. 

माना जा रहा है कि ब्रिक्स के सदस्य देश अमेरिका व यूरोपिय संघ की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ देंगे. ब्रिक्स देशों के पास विश्व का 25.9 फीसद भू-भाग एवं 40 फीसद आबादी है और विश्व में सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान तकरीबन 15 फीसद है. ब्रिक्स देश एकजुट रहे तो भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था में इनकी भूमिका प्रभावी होगी. सदस्य देशों ने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में मतदान वाली विधि में संरचनात्मक परिवर्तन पर जोर दिया है. वर्तमान मत प्रणाली में ब्रिक्स देशों के मत देने का अधिकार उनकी आर्थिक शक्ति के लिहाज से काफी कम है लेकिन एनडीबी से वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनकी धाक बढ़ेगी.

बहरहाल, ब्रिक्स देशों के पास प्रचुर मात्रा में संसाधन हैं. वे एक-दूसरे का सहयोग कर आर्थिक विकास को नई दिशा दे सकते हैं. चीन विनिर्माण के क्षेत्र में दुनिया में अव्वल है. रूस के पास ऊर्जा का असीमित भंडार है. प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सिरमौर है. ब्राजील कृषि क्षेत्र का महाशक्ति कहा जाता है. भारत कृषि और आईटी दोनों में तेजी से विकास कर रहा है. दक्षिण अफ्रीका प्राकृतिक संसाधनों से लैस है. उम्मीद है कि भविष्य में ब्रिक्स देशों की स्थिति और अधिक मजबूत होगी. देखना दिलचस्प होगा कि एनडीबी क्षेत्रीय व वैश्विक चुनौतियों से पार पाते हुए किस तरह ब्रिक्स समूह देशों के लिए फलदायी साबित होता है.

अरविन्द जयतिलक
लेखक


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