छद्म युद्ध का दायरा बढ़ाने की चाल
करीब बीस सालों से पंजाब में हमले नहीं हुए थे. इससे कई लोग मान बैठे थे पंजाब में स्थाई तौर पर शांति कायम हो चुकी है.
छद्म युद्ध का दायरा बढ़ाने की चाल |
लेकिन हम यह भूल गए थे कि पाकिस्तान लगातार खालिस्तान वाले दौर को वापस लाने लिए सक्रिय है. वह खालिस्तानी उग्रवादियों को जिंदा करने की कोशिश में है. बेशक यह हमला खालिस्तानी उग्रवादियों ने नहीं किया है. यह लश्करे तैयबा द्वारा किए जाने वाले हमलों के पैटर्न पर है. खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों का इतिहास फिदायीन हमलों का नहीं रहा है. वे ठहर कर हमला नहीं करते थे. हमले करते और भागते थे. हालांकि यह संभव है कि पाकिस्तान में जमे खालिस्तानी आतंकवादियों ने हमला करने में मदद की हो. स्थानीय आतंकियों की मदद लेने की बात संभव है. हमले ने साफ कर दिया है कि पंजाब अब भी निशाने पर है. पंजाब में जब-जब थोड़ा भी अस्थिरता का माहौल बनता है, पाकिस्तान द्वारा पंजाब के हार्डलाइनर की मदद से आतंक पैदा करने की कोशिश की जाती है.
हमले से यह भी साफ है कि आतंकी पूरी तरह प्रशिक्षित थे. वे भारत-पाक सीमा क्षेत्र से आए थे, इसका भी खुलासा हो चुका है. यकीनन पंजाब पुलिस की मुस्तैदी और त्वरित कार्रवाई से ज्यादा नुकसान होने से बच गया. आतंकियों की मंशा इससे कहीं ज्यादा नुकसान करने की थी. यह रेलवे ट्रैक पर मिले बमों से आसानी से समझा जा सकता है. हमले से यह जाहिर हुआ है कि आतंकी जम्मू कश्मीर के साथ अब पंजाब को भी अपने टारगेट पर लेना चाहते हैं. कश्मीर की सीमा पंजाब से लगती है और पाकिस्तान की भी. निश्चित तौर पर आतंकियों का कमांड सेंटर पाकिस्तान होगा और वहीं से उन्हें पल-पल निर्देश मिल रहे होंगे. अब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई आतंकवाद का दायरा बढ़ाना चाहती है और इसके लिए उसने जान-बूझकर सॉफ्ट टारगेट के बतौर पंजाब को चुना. ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब उफा में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने संयुक्त घोषणापत्र जारी किया था और शांति के लिए बातचीत आगे बढ़ाने की बात कही थी. घोषणापत्र जारी होने के बाद के हालात पर गौर करें तो साफ दिखता है कि पाकिस्तान की ओर से सीमा पर गोलीबारी बढ़ती जा रही है. पंजाब के आतंकी हमले के बाद भी अमरनाथ जाने वाले रास्ते पर मोर्टार दागे गए हैं.
संदेश साफ है कि पाकिस्तानी सेना नहीं चाहती कि किसी कीमत पर भारत-पाक के बीच बातचीत का माहौल बने. हालांकि पंजाब के हमले से एक सकारात्मक संकेत मिल रहा है. वह यह कि जम्मू कश्मीर के सांबा-कठुआ जैसे सेक्टरों में सेना ने सुरक्षा का फंदा इतना कस दिया है कि पाकिस्तान के लिए भारत की ओर हथियार, गोला-बारूद और आतंकियों को भेजना मुश्किल हो गया है. पुंछ और राजौरी सेक्टर में भी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद है. इस सुरक्षा की सख्ती के कारण आतंकियों को अपनी कार्रवाई का क्षेत्र मजबूरन दक्षिण में बनाना पड़ा. कश्मीर के दक्षिण में गुरदासपुर और पठानकोट बड़ी आबादी वाले सेंटर हैं. सेना इस बार उफा वार्ता के बाद चौकस थी और अंदाजा यही था कि सांबा-कठुआ में आतंकी एक्शन में आएंगे. थोड़ा आश्चर्य यकीनन इस बात पर हुआ कि पंजाब को निशाने के तौर पर चुना गया. घटना के बाद पंजाब में सुरक्षा ग्रिड को कसना जरूरी है.
साथ ही कठुआ से गुरदासपुर की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रावी बेल्ट में बीएसएफ की सक्रियता जरूरी है. जाहिर है, पाकिस्तान की तरफ से छद्म युद्ध का दायरा बढ़ने वाला है. हमारे पास पर्याप्त सशस्त्र पुलिस है, इसकी सक्रियता से मामला हमारे पक्ष में हो सकता है. हमें निरंतर अपनी खुफिया व्यवस्था भी मजबूत करनी होगी. जैसे-जैसे ऐसे इलाकों में पाकिस्तानी आतंकियों की सक्रियता बढ़ेगी, जहां अभी वे निष्क्रिय हैं, खुफिया जानकारियों की अहमियत और बढ़ती जाएगी. जाहिर है, पाकिस्तान की सरकार पहले आतंकी वारदातों से अपना पल्ला झाड़ती है.
दरअसल, सीमा के उस पार की रणनीति यही है कि पाकिस्तान सरकार ऐसे हमलों की खुद निंदा करे और सारा मामला आतंकी संगठनों पर आ जाए. यकीनन करतूत तो आतंकी संगठन ही करते हैं लेकिन उसके पीछे एक तयशुदा रणनीति होती है. कश्मीर में आतंकियों की आज तक ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके पीछे पाकिस्तान का हाथ नहीं मिला हो. पंजाब में जिस खालिस्तान के कारण अशांति रही उसके पीछे भी पाकिस्तान का ही हाथ था. सेना प्रमुख कोई हो, सरकार पर सेना काबिज हो या राजनीतिक दल, पाकिस्तान की सोच का केंद्रबिंदु ही भारत विरोध है. यह देश जब से वजूद में आया, लगातार भारत विरोध के लिए ताकत जुटाकर औकात बनाई गई.
ऐसा नहीं कि वहां के आम लोग यही सोच रखते हों लेकिन सेना, सत्ता और आतंकी संगठनों के घनघोर अभियान में वे भी रह-रह कर सोच बदलने को मजबूर हो जाते हैं. पाकिस्तानी नेतृत्व जितनी सफाई दे, बरसों से यह सच सामने है कि आईएसआई पाकिस्तानी सेना का सबसे महत्वपूर्ण अंग है. पाकिस्तान की सेना रणनीति के तहत आतंकियों का उपयोग करती है. 2017 में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वहां नए सिरे से तनाव पैदा करने की कोशिश की जाएगी. सुरक्षाबलों पर दबाव बनाने और लोगों में दहशत का माहौल बनाने के लिए उसकी सक्रियता आगे भी बरकरार रह सकती है.
आतंकवाद से लोकतंत्र की लड़ाई अभी लंबी चलने वाली है. जीत भले हमारी होगी लेकिन इसके लिए हमें अलर्ट मुद्रा में लगातार बने रहने की जरूरत है. याकूब मेमन की फांसी के बाद आतंकी संगठनों की ओर से और कार्रवाई हो सकती है. आतंकियों की ताजा कार्रवाई के बाद हमें न तो होश गंवाने की जरूरत है और न जरूरत से अधिक इस पर चर्चा करने की. मीडिया को इस मुद्दे को लेकर कम से कम कवरेज मिल पाए, इसका हमें ध्यान रखना चाहिए. यहां मैं मीडिया के नियमन की बात नहीं कर रहा बल्कि मसले को कम से कम तूल देने की बात कर रहा हूं. तो सवाल यह उठता है कि क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठ रहें. नहीं, हमें चाहिए कि सीमा पर जब भी कोई उकसावे वाली कार्रवाई हो, तत्क्षण मुंहतोड़ जवाब दें. हमें हमेशा अपनी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखनी चाहिए. इसे पॉलिटिकल समस्या कम सुरक्षा समस्या अधिक बनाने की जरूरत है. अमूमन होता यह है कि हम ऐसे मुद्दों पर राजनीति करने लग जाते हैं, जो समस्या को और चर्चा के केंद्र में ला देता है.
(लेखक सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं)
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