इतिहास संकलन की भारतीय शैली

Last Updated 05 Jul 2015 01:51:46 AM IST

इतिहास को लेकर बहस है. यूरोपीय विचार के लोग भारतीय इतिहास शैली को इतिहास ही नहीं मानते.


हृदयनारायण दीक्षित, लेखक

गांधी जी ने ‘हिंद स्वराज’ में यूरोपीय इतिहास को कोलाहल कहा है. पश्चिम के इतिहास में ‘कोलाहल’ है. हिंसा, रक्तपात और युद्धों का लेखा है. यूनानी परंपरा के देवता बने-बनाए हैं. हम भारतवासी अपनी हरेक अनुभूति को नमस्कार करते आए हैं. रोमांचक आश्चर्य है कि अथर्ववेद में बुखार, ज्वर जैसे शारीरिक कष्ट को भी नमस्कार किया गया है. पुस्तक कोष में किताबें होती हैं. वे उपभोक्ता वस्तु हैं. वे हमारे मन, बुद्धि और विवेक को स्वस्थ बनाती हैं. दुख और विषाद के क्षणों में धीरज देती हैं. हम जीर्णशीर्ण पुरानी पुस्तकों को भी प्रीतिभाव से बचाकर रखते हैं. हम उन्हें पण्राम किए बिना नहीं रह सकते. प्रकृति के सभी रूपों और भावों को देवता समझने की अनुभूति ऋग्वेद में है. ज्ञान अनुभूति की यह परंपरा ऋग्वैदिक काल में अचानक नहीं उगी होगी. यह और भी प्राचीन होनी चाहिए. इसका इतिहास होना चाहिए.

इतिहास अमर है. वह कभी नहीं मरता. सतत् विकसित होता है, सदा बढ़ता है, फलों-फूलों से लदता है. लेकिन इतिहास का वृक्ष कभी बूढ़ा नहीं होता. इस वृक्ष पर नित नूतन बसंत ही खिलता है. मनुष्य-मनुष्य से लड़ता है, मारकाट करता है. हिंसा होती है, धरती रक्तरंजित होती है. मनुष्यता पछताती है. संस्कृति और सभ्यताओं का विकास या पराभव होता है. इतिहास किसी के भी झांसे में नहीं आता. वह विजित और पराजित योद्धा में भेद नहीं करता. हमेशा निर्विकार, तटस्थ, निष्काम. समय की गति का सजग द्रष्टा. न शुभ की इच्छा, न अशुभ से घृणा. जो हो, सो हो, उस पर किसी का प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन वह सबको प्रभावित करता है.

गायत्री मंत्र के द्रष्टा विामित्र का उल्लेख ऋग्वेद में है, महामृत्युंजय के द्रष्टा वशिष्ठ का भी है. अथर्वा का नाम अथर्ववेद से जुड़ा हुआ है. इक्ष्वाकु ऋग्वेद में है, उनका वंश विस्तार श्रीराम हैं. कौटिल्य भारतीय अर्थनीति-राजनीति के सूत्रकार हैं, पतंजलि योग विज्ञानी हैं. वात्स्यायन ‘कामसूत्र’ के संकलनकर्ता हैं. भरतमुनि नाट्यशास्त्र के रचयिता हैं. चरक संहिता की रचना हमारे विज्ञान का इतिहास हैं. पाणिनि ने भाषा का अनुशासन गढ़ा है. चंद्रगुप्त मौर्य भारतीय राष्ट्र-राज्य के संस्थापक हैं. ऋग्वेद सहित संपूर्ण वैदिक साहित्य इतिहास है. ब्राह्मण ग्रंथ इतिहास हैं. रामायण, महाभारत, पुराण सहित तमाम परवर्ती साहित्य इतिहास हैं. प्राचीन भवन, उनका स्थापत्य, क्षेत्रीय परंपराएं भी इतिहास हैं. इतिहास सबको घेरता है, सबको आच्छादित करता है, सबके भीतर रहता है, सबकी खबर रखता है, तटस्थ रहता है.

ऋग्वेद इस इतिहास का प्राचीनतम विवरण है. इस इतिहास में ऋग्वेद है और ऋग्वेद में इतिहास है. ऋग्वेद के राजाओं का वर्णन भी इतिहास है. इतिहास का मतलब है- ऐसा हुआ था. वैदिक इतिहास के एक राजा हैं सुदास. 10 राजाओं से सुदास का युद्ध हुआ था. युद्ध छोटा नहीं था अनु और दुह के समर्थक 66 हजार 66 वीरों का वध हुआ था. सुदास ने इंद्र-कृपा से परूष्णी नदी पार की. मैकडनल और कीथ ने वैदिक इंडेक्स में उनके शत्रु भेद के बारे में लिखा है- सुदास तथा त्रित्सु भरतों का एक शत्रु था भेद. सुदास ने उसे यमुना के किनारे परास्त किया. स्पष्ट ही दशाराज्ञ युद्ध के बाद ही दूसरे युद्ध में ऐसा हुआ होगा. दशाराज्ञ युद्ध में सुदास ने सफलतापूर्वक अपने पश्चिमी सीमांत की रक्षा की थी. परूष्णी तट के युद्ध व यमुना तट का युद्ध, दोनों का उल्लेख एक ही सूक्त (7.18.8-19) में है.

ऋग्वैदिक सूक्त में इतिहास की स्मृति है. दर्शन का विश्लेषण भी ‘काल’ के भीतर होता है और जो कुछ काल के भीतर होता है वह इतिहास है. गीता के चौथे अध्याय में सजग ‘इतिहास बोध’ है. यह योग पहले विस्वान को बताया गया. विस्वान ने मनु को बताया और मनु ने इक्ष्वाकु को. यहां इतिहास की कड़ियां हैं. कहते हैं- इतिहास परंपरा में राजषिर्यों ने एक-दूसरे से सीखा. इतिहास बोध चारों पुरुषाथरे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को भी प्राप्त कराता है. धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के ज्ञान से भरपूर पूर्व कथा वृत्त इतिहास है. भारतीय इतिहास संकलन की शैली भिन्न है.



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