नशाखोरी रोके बिना नहीं समाज का कल्याण

Last Updated 04 Jul 2015 01:33:41 AM IST

एक कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने नागरिकों को शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखे.


नशाखोरी रोके बिना नहीं समाज का कल्याण

कहा भी जाता है कि एक स्वस्थ व समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए उसके नागरिकों का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है. लेकिन यह तभी संभव है जब राज्य अपने नागरिकों को उचित शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध कराएगा. दो राय नहीं कि शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति हुई है और आज सभी के लिए शिक्षा सुलभ है पर स्वास्थ्य के मोच्रे पर चुनौतियां बरकरार हैं. कमजोर स्वास्थ्य के लिए सिर्फ भुखमरी और कुपोषण ही जिम्मेदार नहीं बल्कि बिगड़ते स्वास्थ्य के लिए नशाखोरी की बढ़ती प्रवृत्ति भी अहम कारण है.

गत वर्ष स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय तथा वि स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि 2011 में केवल तंबाकूजनित बीमारियों के इलाज के नाम पर देश के सकल घरेलू उत्पाद का 1.16 फीसद यानी एक लाख पांच हजार करोड़ रुपया खर्च हुआ. यह धनराशि केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में 2011-12 में जितना खर्च किया गया, उससे तकरीबन 12 फीसद अधिक है. अगर देश की जीडीपी का यह हिस्सा जो तंबाकूजनित बीमारियों पर खर्च हो रहा है, उसे गरीबी और कुपोषण मिटाने पर खर्च किया जाये तो उसका सकारात्मक असर देखने को मिल सकता है. लेकिन सरकार का ध्यान इस तरफ क्यों नहीं है, यह समझना कठिन है.

ठीक है कि भारत को तंबाकू उत्पादन से सालाना छह हजार करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा हासिल होती है और इस पर रोक लगाने से तंबाकू और सुपारी उत्पादन वाले किसानों को नुकसान पहुंचेगा लेकिन विदेशी मुद्रा की प्राप्ति और तंबाकू और सुपारी उत्पादन से जुड़े मुठ्ठी भर उत्पादकों के फायदे के लिए करोड़ों लोगों की जिंदगी को दांव पर नहीं लगाया जा सकता. एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा सवर्जन हिताय है. वह अगर चाहे तो सिगरेट की खुली बिक्री पर पाबंदी लगा सकती है, तंबाकू उत्पाद खरीदने की न्यूनतम उम्र बढ़ा सकती है और इसके उलंघन पर सजा देकर तथा तंबाकू सेवन से होने वाली खतरनाक बीमारियों पर अंकुश लगाकर उससे होने वाली मौत की दर में कमी ला सकती है. लेकिन आश्चर्य कि कल्याणकारी राज्य होते हुए भी भारत इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठा रहा है. जबकि सच्चाई यह है कि तंबाकू उत्पादों से होने वाले लाभ के मुकाबले उसके सेवन से उत्पन होने वाली बीमारियों से निपटने में कई गुना ज्यादा धनराशि खर्च हो रही है.

देश में नशाखोरी का प्रभाव किस कदर बढ़ा है, यह इसी से समझा जा सकता है कि पिछले दो वर्षो में मादक पदाथरें की तस्करी के करीबन 35 हजार मामले दर्ज हुए. इनमें से सबसे अधिक मामले पंजाब के हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मादक पदार्थ नियंतण्रब्यूरो ने देश में साल 2010 में 108070 किलोग्राम, 2011 में 129523 किलोग्राम, 2012 में 85499 किलोग्राम तथा 2013 में 82758 किलोग्राम मादक पदार्थ जब्त किए. चिंताजनक तथ्य यह कि तंबाकू उत्पादों का सर्वाधिक उपयोग युवाओं व बच्चों द्वारा हो रहा है और उसका दुष्प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.

गत वर्ष भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के एक सर्वेक्षण से खुलासा हुआ कि कम उम्र के बच्चे धूम्रपान की ओर तेजी से आकषिर्त हो रहे हैं और यह उनके स्वास्थ के लिए बेहद खतरनाक है. रिपोर्ट में कहा गया कि 70 फीसद छात्र और 80 फीसद छात्राएं 15 साल से कम उम्र में ही नशीले उत्पाद मसलन पान मसाला, सिगरेट, बीड़ी और खैनी का सेवन शुरू कर देते हैं. गत वर्ष स्वीडिश नेशनल हेल्थ एंड वेल्फेयर बोर्ड और ब्लूमबर्ग फिलांथ्रोपिज की रिसर्च से भी उद्घाटित हो चुका है कि धूम्रपान से हर वर्ष छह लाख से अधिक लोग मरते हैं जिनमें तकरीबन दो लाख से अधिक बच्चे व युवा होते हैं.

धूम्रपान कितना घातक है, यह ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लैंसेट की उस रिपोर्ट से भी पता चलता है जिसमें कहा गया है कि स्मोकिंग न करने वाले 40 फीसद बच्चों और 30 फीसद से अधिक महिलाओं-पुरुषों पर सेकेंड धूम्रपान का घातक प्रभाव पड़ता है. वे अस्थमा और फेफड़े के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बन जाते हैं. गौरतलब है कि गत वर्ष पहले वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन के टुबैको-फ्री इनिशिएटिव के प्रोग्रामर डॉ एनेट ने धूम्रपान को लेकर गहरी चिंता जताते हुए कहा था कि अगर लोगों को इस बुरी लत से दूर नहीं रखा गया तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

उल्लेखनीय यह है कि धूम्रपान की कुप्रवृत्ति भारत, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में सर्वाधिक है. इसका मूल कारण अशिक्षा, गरीबी और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है. यह किसी से छिपा नहीं है कि गांवों और शहरों में हर जगह तंबाकू उत्पाद उपलब्ध हैं और युवा वर्ग उनका आसानी से सेवन कर रहा है. यह शुभ है कि प्रधानमंत्री नौजवानों को नशाखोरी के विरुद्ध सचेत कर रहे हैं लेकिन इतने से ही बात नहीं बनने वाली है. नशाखोरी के विरुद्ध कड़े कानून भी बनाए जाएं. हालांकि सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान रोकने के लिए कानून और कठोर अर्थदंड का प्रावधान किया गया है लेकिन उसका अनुपालन नहीं हो रहा है.

सार्वजनिक स्थलों पर लोगों को धूम्रपान करते देखा जा सकता है. उचित होगा कि धूम्रपान के खिलाफ कड़े कानून बनाए जाएं और उनका सही ढंग से क्रियान्वयन भी हो. तंबाकू उत्पादों की बिक्री के कुछ नियम जरूर होने चाहिए. लोगों को धूम्रपान के कारण उत्पन होने वाली खतरनाक बीमारियों के प्रति सचेत करना जरूरी है. इसके लिए सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं सभी को आगे आना होगा. इस दिशा में स्कूल महती भूमिका निभा सकते हैं. स्कूलों में होने वाली सांस्कृतिक गतिविधियां व खेलकूद बच्चों के बालमन पर सकारात्मक असर डालती हैं. इनके सहारे बच्चों में नैतिक संस्कार विकसित किए जा सकते हैं.

पहले शिक्षक बच्चों को आदर्श व प्रेरणादायक किस्से-कहानियों के माध्यम से सामाजिक-राष्ट्रीय सरोकारों से जोड़ते थे. धूम्रपान के खतरनाक प्रभावों को रेखांकित कर उससे दूर रहने की शिक्षा देते थे लेकिन विगत कुछ समय से स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रमों से नैतिक शिक्षा गायब सी है. शिक्षा का उद्देश्य अब सिर्फ वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा तक सिमट गया है. उचित होगा कि स्कूलों में नैतिक शिक्षा के माध्यम से नशाखोरी के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाए. नशाखोरी रोकने की जिम्मेदारी सरकार के कंधे पर ही ठेल ही निश्ंिचत नहीं हुआ जा सकता.

अरविंद जयतिलक
लेखक


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