रोजगार जब रोबोट के कब्जे में होंगे

Last Updated 01 Jul 2015 01:23:28 AM IST

हाल ही में प्रकाशित इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में दुनियाभर में करीब 2.3 लाख रोबोट बेचे गए.


रोजगार जब रोबोट के कब्जे में होंगे

यह आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले 27 गुना ज्यादा था. 2014 के अंत तक चीन में रोबोटों की कुल संख्या 1.8 लाख थी, जबकि भारत में 2014 के अंत तक करीब 12 हजार रोबोटों का भंडार था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2015 से 2017 के दौरान दुनियाभर में रोबोटों की तैनाती में सालाना औसतन 12 फीसद की दर से वृद्धि होगी. बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले 10 वर्षो में रोबोट की लागत में तेजी से कमी आई है, जबकि उत्पादकता में वृद्धि हुई है. उभरते नए उद्योगों में यदि किसी उद्योग ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है तो वह है रोबोटिक्स.

यकीनन कुछ समय पहले तक कहानियों और फिल्मों में विभिन्न प्रकार के यंत्रीकृत मानव यानी रोबोट के जो दृश्य उभरा करते थे, वे अब साकार होते दिख रहे हैं. रोबोट के कारण 21वीं सदी में वैश्विकरण और यंत्रीकरण के विस्तार के साथ शताब्दियों से चली आ रही मनुष्य की बल और बुद्धि की श्रेष्ठता खत्म होने का खतरा मंडराने लगा है. कई देशों में रोबोट जीवन व उद्योग-कारोबार का महत्वपूर्ण भाग बनते दिख रहे हैं. कई जगह रोबोट रेस्टोरेंट में खाना बनाने, सर्व करने, प्लेट उठाने और साफ करने का काम कर रहे हैं. कुछ रोबोट रिक्शा चलाते हैं और वजन उठाकर चलते हैं. क्योटो शहर में रोबावी-2 रोबोट स्टोर से खरीदारी करता है. अपने यहां केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में मिलने वाले दान व प्रसाद की गणना के लिए विकसित रोबोट तैयार खड़ा है, जो केरल हाईकोर्ट से अनुमति के बाद कार्य करेगा. रोबोट ने जहां मनुष्य को शारीरिक क्षमता के मामले में पीछे छोड़ दिया है, वहीं दिमागी कामों के मामले में भी इंसान को पछाड़ सकते हैं. जापान की सॉफ्ट बैंक कॉर्प जैसी दुनिया की कई कंपनियां मानव मस्तिष्क की तरह काम करने वाले रोबोट विकसित कर रही हैं. ये डॉक्टर, इंजीनियर, एडवोकेट, सैनिक, प्रोफेसर, इंजीनियर, अकाउंटेंट और सेल्समैन जैसे कई तरह के कार्य कर सकेंगे.

निसंदेह दुनिया की अर्थव्यवस्था में रोबोट की अहमियत बढ़ती जा रही है. श्रमिकों से भरपूर चीन के  उद्योगों में तेजी से रोबोट शक्ति का इस्तेमाल होने लगा है.  कारण चीन में विनिर्माण के क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में वेतन तेजी से बढ़ा है. फलत: चीन के कई उद्योगों ने श्रमिक उत्पादकता और लागत के बारे में विश्लेषण के बाद रोबोट की उत्पादकता व गुणवत्ता को स्वीकार किया है. भारत में वाहन उद्योग में रोबोटों की संख्या सबसे अधिक है. देश में स्थित प्रमुख कार कंपनी हुंडई के श्रीपेरंबुदूर कारखाने में 400 से ज्यादा रोबोट काम कर रहे हैं. कारखाने में वेल्डिंग और पेंटिंग जैसे काम पूरी तरह रोबोटों द्वारा किए जा रहे हैं. फोर्ड की साणंद स्थित नई इकाई में 437 रोबोट तैनात हैं. इसी तरह मारुति सुजूकी के गुड़गांव और मानेसर कारखानों में 1,000 से ज्यादा रोबोट काम कर रहे हैं लेकिन वैश्विक परिप्रेक्ष्य में रोबोट के उपयोग के मामले में भारत अभी बहुत पीछे है. रोबोटिक्स उद्योग का कहना है कि जिस तेजी से रोबोट बढ़ रहे हैं, यदि यह रुझान और पांच-दस साल तक जारी रहा तो इससे भारत में रोजगार पर असर पड़ सकता है. रोबोट कुछ क्षेत्रों में नौकरियों पर असर डाल सकता है.

रोबोटिक्स की बढ़ती शारीरिक व मानसिक क्षमताओं के बीच हमें देश की विकास नीति में इसकी भूमिका पर ध्यान देना ही होगा.  चूंकि देश के विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र से है, ऐसे में जब दुनिया रोबोट के इस्तेमाल की ओर बढ़ रही है तो भारत के विनिर्माता उससे दूरी बनाकर नहीं रह सकते हैं. आईटी जैसे क्षेत्रों में भी रोबोट के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन रोबोट की ऊंची लागत व रोजगार की राह देख रही नई पीढ़ी की आकांक्षाओं के मद्देनजर देश में रोबोटों की उपयुक्त संख्या में तैनाती का निर्धारण बहुत विचार-विमर्श की मांग रखता है. चीन कई उद्योगों में रोबोट की शक्ति के आधार पर ऊंचाई छू रहा है, ऐसे में भारतीय कामगारों का कौशल प्रदर्शन व उत्पादकता अनुपात बढ़ाए जाने के कारगर प्रयास करने होंगे. खासतौर से ऐसे कई उद्योग हैं जिनमें रोबोट प्रवेश नहीं कर सके हैं. हमें वहां लाभ उठाने के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों को तेजी से कौशल प्रदान करना होगा.

निसंदेह सस्ते व प्रशिक्षित श्रमबल के कारण चीन वर्षो से आर्थिक विकास के मोच्रे पर दमदार प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन अब सस्ते श्रमबल की कमी चीन के विकास की चुनौती बनती जा रही है. ऐसे में चीन रोबोटों की तैनाती करके विकास की डगर पर आगे बढ़ने की नीति अपना रहा है. ऐसे में भले ही चाहे चीन अधिक रोबोट शक्ति का उपयोग कर रहा है, लेकिन चीन से भी सस्ते श्रमबल के लिए उभरकर सामने आए भारत के लिए नए सस्ते श्रमबल के सहारे आर्थिक विकास के जोरदार मौके दिखाई दे रहे हैं. लेकिन सस्ते श्रमबल से भारत की आर्थिक तस्वीर संवारने के लिए हमें चीन के अब तक के श्रम अर्थशास्त्र से कुछ सीख लेनी होगी. चीन ने अपनी सस्ती श्रमशक्ति को शिक्षित-प्रशिक्षित करने की रणनीति अपनाई है.

अब भी भारत की तुलना में चीन तेजी से श्रमबल को मानव संसाधन के रूप में परिणित करते हुए दिखाई दे रहा है. चीन में उच्च शिक्षा के ज्यादातर छात्र अंग्रेजी माध्यम में इंजीनियरिंग, मैनजमेंट और साइंस विषयों की पढ़ाई और शोध कार्य कर रहे हैं. वहीं कम शिक्षित छात्र कौशल प्रशिक्षण से सुसज्जित हो रहे हैं. इसके विपरीत भारत में इस समय तकरीबन साढ़े तीन करोड़ बच्चों के भाग्य में स्कूल नहीं है और कॉलेजों में रोजगार की जरूरत के अनुरूप पाठ्यक्रम नहीं हैं. इतना ही नहीं, भारत के उद्योग-व्यवसाय में कौशल प्रशिक्षित लोगों की मांग और आपूर्ति में लगातार अंतर बना हुआ है. भारत में औसतन 20 फीसद युवा कौशल प्रशिक्षित हैं, वहीं चीन के 80 फीसद युवा कौशल प्रशिक्षण से परिपूर्ण हैं.

चीन में बढ़ते हुए रोबोटों की उत्पादकता का सामना करने के मद्देनजर हमें देश की श्रम शक्ति को वरदान बनाने के लिए रोजगार की जरूरत के अनुरूप मानव संसाधन के रूप में गढ़ना होगा. कम शिक्षित व सामान्य योग्यता वाले युवाओं को कौशल से सुसज्जित करना होगा. अशिक्षित और अर्धशिक्षित लोगों को अर्थपूर्ण रोजगार देने के लिए कौशल से सुसज्जित करके तकनीक विनिर्माण में लगाना होगा. पिछले कुछ वर्षो में भारत उचित कौशल प्रशिक्षण नीति के अभाव में चीन द्वारा कपड़ा, रत्न, आभूषण और चमड़ा जैसे क्षेत्रों में छोड़े गए रोजगार के मौकों का फायदा नहीं उठा सका है. सरकार को चाहिए  कि वह इन क्षेत्रों से संबंधित उपक्रम स्थापित करने के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहित करे और संबंधित उत्पादों के निर्यात में मदद भी करे. सरकार को स्किल गैप कम करने के लिए जोरदार कोशिशें करनी होंगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि निकट भविष्य में सरकार विकास के मद्देनजर रोबोट की तैनाती और रोजगार अवसरों की बढ़ती जरूरत के लिए कौशल प्रशिक्षण की उपयुक्त नीति अपनाने की डगर पर आगे बढ़ेगी.

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


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