बेड़ियों में जकड़ी अयोध्या लेकिन कब तक!

Last Updated 01 Jul 2015 01:05:19 AM IST

अयोध्या में राममन्दिर-बाबरी मस्जिद विवाद के कारण लम्बी अवधि से प्रतिबन्धों का सिलसिला जारी है.


बेड़ियों में जकड़ी अयोध्या लेकिन कब तक!

1992 में विवादित स्थल के विध्वंस के बाद भी यह समाप्त नहीं हो पाया. प्रतिबन्धों के दंश से आज भी आम आदमी, श्रद्धालु, दर्शक और पर्यटक आदि प्रभावित हो रहे हैं. फिर एक संवैधानिक सवाल पैदा होता है कि क्या मूल अधिकारों पर प्रतिबन्ध अनन्तकालिक हो सकते हैं! यदि ऐसा हुआ तब तो यह संवैधानिक व्यवस्था का अपमान एवं मूल अधिकारों के विरुद्ध उठाया गया कदम होगा जिसे किसी भी दृष्टि से न तो संगत माना जा सकता है न उचित.
कहा जाता है कि अयोध्या पांच हजार पूजा स्थलों की नगरी है और इसमें विभिन्न धर्मों, आस्थाओं और विासों से जुड़े पूजा व उपासना स्थल मौजूद हैं.

इसके साथ ही इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए भी केन्द्र और राज्य दोनों सरकारें चिन्तित हैं. इस रूप में कई कदम उठाये भी गये हैं और आमतौर से लोग उनका स्वागत  करते हैं. इस प्राचीन स्थल के गौरव को वापस लाने और दुनियाभर के लोगों की नजरों में जो अयोध्या है, उसे सुलभ बनाने के प्रयत्न किये जाएंगे और उन साधनों जैसे विमानों का परिचालन एवं आधुनिक परिवहन का विकास होगा ताकि लोग आसानी से वहां आ-जा सकें. अयोध्या में हाल ही में कोरिया की महारानी- हो- का जन्म स्थल विकसित करने के लिए कोरिया सरकार ने करीब 400 करोड़ की योजना स्वीकार की है.

अयोध्या में विवादित स्थल से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए लगभग 70 एकड़ क्षेत्र का अधिग्रहण भी किया गया है जिसके लिए योजना है कि वहां राममंदिर, मस्जिद, पुस्तकालय, वाचनालय, संग्रहालय और सार्वजनिक सुविधाओं का विस्तार होगा. यह अधिगृहीत क्षेत्र लोहे से घिरा हुआ भारी पुलिस संरक्षण में है जिस पर प्रतिवर्ष 3 अरब रुपये खर्च होता है. उसी में रामलला विराजमान का अस्थाई निर्माण भी है. फिलहाल यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है. उसमें रामलला के भोग, राग, आरती के लिए पुजारी और धन की व्यवस्था तो है लेकिन एक निर्धारित समय के बाद किसी भी श्रद्धालु, दर्शनार्थी और पर्यटक या आम आदमी को वहां जाने की अनुमति नहीं है और न ही कोई पूजापाठ, प्रसाद चढ़ाने और वितरण की सुविधा है.

इस क्षेत्र में मोबाइल और कैमरा ले जाने की भी अनुमति नहीं है. लेकिन यहां लाखों लोग प्रतिवर्ष आते-जाते हैं जिनकी व्यवस्था सुरक्षाबल सर्वोच्च न्यायालय के मानदंडों एवं अधिकारियों तथा रिसीवर के निर्देशों के अनुसार करते हैं. इस 70 एकड़ अधिगृहीत क्षेत्र के बाहर भी अयोध्या में तमाम पूजा स्थल  हैं जो विभिन्न जातियों, धर्मों और विास के लोगों की श्रद्धा का केन्द्र हैं. यहां जैनियों के पांच मंदिर और सरकारी तौर पर स्वीकार की जाने वाली 29 मस्जिदें  हैं जिनमें से आठ में सरकारी सूचनाओं के अनुसार नियमित नमाज भी पढ़ी जाती है.

अयोध्या को सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर तीन भागों में बांटा गया है. रेड जोन में मुख्य रूप से अधिगृहीत क्षेत्र है उसके बगल का एक बड़ा इलाका जिसमें विभिन्न पूजा और उपासना स्थल हैं, यलो जोन है. बाकी को ग्रीन जोन बताया जाता है लेकिन सुरक्षा व्यवस्था तो ग्रीन जोन में भी है यानी अयोध्या में घुसने से पहले साकेत महाविद्यालय, राम की पैड़ी के पास प्रवेश स्थल तथा अयोध्या को जाने वाली अन्य सड़कों पर भी बैरियर लगे हैं जहां नियमित चेकिंग के लिए सुरक्षाबलों की व्यवस्था है.

अयोध्या की सुरक्षा व्यवस्था के सम्बन्ध में एक सवाल पैदा होता है कि क्या यह व्यवस्था संवैधानिक सीमाओं के भीतर होगी और यदि ऐसा है तब प्रतिबन्धों की समय सीमा पर पुनर्विचार की व्यवस्था करनी पड़ेगी क्योंकि मूल अधिकारों को नकारने जैसी कोई अनन्तकालिक प्रतिबंधात्मक व्यवस्था असंवैधानिक और अनुचित मानी जाएगी क्योंकि सारे प्रयत्न जनता के मूल अधिकारों की रक्षा और उन्हें बहाल करने के लिए ही किये जाते हैं.

इस रूप में अयोध्या के अधिगृहीत क्षेत्र के बाहर जो प्रतिबंधात्मक व्यवस्था लागू है, उसके प्रभावों और भविष्य में उन्हें जारी रखने पर निरंतर विचार किया ही जाना चाहिए. जिसे यलो जोन कहा जाता है, वह मुख्य रूप से अयोध्या की मुख्य सड़क से पश्चिम रामजन्मभूमि थाने के अन्तर्गत आता है. देश के सर्वाधिक श्रद्धालु जहां पहुंचते हैं वह हनुमानगढ़ी, कनक भवन, बड़ा स्थान, गोकुल भवन और जैनियों का मंदिर  है. रामजन्मभूमि थाना भी इसी क्षेत्र में आता है. कम से कम थाने तक निर्बाध पहुंचने की स्वतंत्रता देना तो विधिक एवं नैतिक अधिकारों की सीमा में आता है. इसी यलो जोन में सर्वाधिक अल्पसंख्यक आबादी भी है.

सवाल उठता है कि अस्थाई रूप से सुरक्षा व्यवस्था करना तो प्रशासन का अधिकार है ताकि उन स्थितियों से निपटा जा सके जिनसे खतरा हुआ या संभावित है लेकिन क्या इस सुरक्षा व्यवस्था को अनन्तकालिक बनाया जा सकता है? इसलिए सवाल यह पैदा होता हो रहा है कि विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद मानवीय अधिकारों जिसमें संचरण की सुविधा का भी उल्लेख है, साथ ही आस्था, विास की स्वतंत्रता एवं पूजा स्थलों में आने-जाने और उनमें पूजा की सुविधा पर विचार की आवश्यकता ही 22 वर्षों में नहीं अनुभव की गयी.

इस तरह के नये प्रस्ताव तो आते हैं कि इस क्षेत्र को नो-फ्लाइंग जोन बना दिया जाये लेकिन नागरिकों की संवैधानिक सुविधाओं की बहाली की चिन्ता आखिर क्यों नहीं है. इसलिए अयोध्या का वह क्षेत्र जो हिन्दुओं के साथ ही सिख, जैन और मुस्लिमों सहित सभी का है और जिसका गौरवशाली इतिहास भी रहा है, वह आखिर कब तक प्रतिबंधित रहेगा. अयोध्या का वह अधिगृहीत क्षेत्र या जो मामले सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं उनके सम्बन्ध में कब निर्णय हो, यह तो सर्वोच्च न्यायालय या अधिग्रहण करने वाली संसद यानी सरकार तय करेगी लेकिन अयोध्या का निर्विवाद क्षेत्र जिसे किन्हीं कारणों से सुरक्षा सम्बन्धी व्यवस्थाओं का लक्ष्य बनाया गया है, उस पर तो समय-समय पर विचार होना ही चाहिए ताकि इस क्षेत्र के लोगों की नागरिक एवं संवैधानिक सुविधाओं की बहाली की जा सके.

शीतला सिंह
लेखक


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