करगिल के शहीदों को न्याय की आस

Last Updated 03 Jun 2015 12:56:08 AM IST

आखिरकार सरकार ने शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के मामले में जन भावनाओं का ध्यान रखने हुए सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति के बाद मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले जाने का मन बना लिया है.


करगिल के शहीदों को न्याय की आस

करगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए कैप्टन कालिया के मामले में सरकार की तरफ से जो कुछ और जिस तरह कहा गया, उससे देश एवं शहीदों के प्रति अलग भावना में जीने वालों को धक्का लगना स्वाभाविक था. सरकार ने कह दिया था कि कैप्टन कालिया सहित जवानों का मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में नहीं ले जाया जा सकता.

सौरभ कालिया का मामला युद्धबंदियों के साथ अमानुषिक अत्याचार का है. करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा 6 जून 1999 को 4 जाट रेजिमेंट के कैप्टन सौरभ कालिया सहित पांच जवानों के शव भारत को सौंपे गए थे. कैप्टन कालिया पहले सैन्य अधिकारी थे, जिन्होंने करगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी दी थी. इनके शरीर को देखकर किसी के मुंह से भी आह निकल सकती थी. शरीर पर सिगरेट से जलाने और कान को गर्म रॉड से दागने और जलाने के निशान साफ थे. उनकी आंखें निकाल ली गई थीं. दांत टूटे थे. जब हमारे शहीदों के शव भारत आए तो चारों ओर आक्रोश और क्षोभ की लहर फैली थी. भारत ने इसे युद्धबंदियों की संहिता का उल्लंघन का मामला बताया, इसका प्रतिरोध किया, पर पाकिस्तान ने किसी तरह के उत्पीड़न से साफ इनकार कर दिया.

जितनी छानबीन हुई, उनसे साफ है कि कैप्टन कालिया सहित जाट रेजिमेंट के पांच जवानों को 15 मई, 1999 को पाकिस्तान की सेना द्वारा पकड़ा गया था. दरअसल, उन्होंने गश्त लगाते हुए भारत के उन क्षेत्रों में घुसपैठ और मोर्चाबंदी को देख लिया था, जहां जाड़े के मौसम में भारतीय सेना हट जाया करती थी. यह आपसी समझ की परंपरा थी. पाकिस्तान ने उसी का लाभ उठाया और पूरी तैयारी से घुसपैठ व मोर्चाबंदी करा दी.

कैप्टन कालिया ने इसकी सूचना अपने रेजिमेंट को दी, जहां से यह सभी संबंधित स्थानों पर भेजी गई. कहा जाता है कि उनका यान पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. वैसे एक पक्ष यह भी है कि उनका यान खराब हो गया और उन्हें आपातकाल में पाकिस्तानी क्षेत्र में उतारना पड़ा. ऐसी स्थिति में सैन्य व्यवहार के अंतरराष्ट्रीय नियम हैं, परंतु पाकिस्तान ने इसके विपरीत व्यवहार किया. पाकिस्तान ने कहा कि सैनिकों का शव गड्ढे में पाया गया था यानी यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिससे वे मर गए. पर सवाल है दुर्घटना में मरे हुए जवानों की आंखें कैसे निकल जाएंगी? शरीर के टुकड़े-टुकड़े कैसे हो जाएंगे?

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उनके साथ बर्बरता स्पष्ट होती है. पहला तार्किक उत्तर यही होगा कि हमारे जांबाज सैनिकों के साथ ऐसा अमानुषिक व्यवहार करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को सजा मिलनी चाहिए. शहीद सैनिकों के परिवार लगातार इसके लिए आवाज उठाते रहे हैं. सौरभ कालिया के पिता तीन वर्ष पहले मामले को सर्वोच्च न्यायालय भी ले गए. न्यायालय ने सरकार को नोटिस दिया, परंतु तत्कालीन सरकार का जवाब था कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में यह मामला टिकने की स्थिति में नहीं है, इसलिए इसे वहां ले जाना संभव नहीं. वर्तमान सरकार ने भी हाल में राज्य सभा में इससे संबंधित दो प्रश्नों के उत्तर में यही कह दिया. 

सांसद राजीव चन्द्रशेखर ने पूछा था कि क्या सरकार सौरभ और पांच अन्य भारतीय सैनिकों की पाकिस्तानी सेना द्वारा निर्ममता से हत्या किए जाने के मामले को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठाएगी और क्या इस मामले पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा? जवाब में केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने कहा कि इस मामले से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को न्यूयॉर्क अधिवेशन के दौरान 22 सितम्बर, 1999 को और मानवाधिकार आयोग को अप्रैल 2000 में ही अवगत करा दिया गया था. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जरिए कानूनी कार्रवाई के बारे में भी सारे पहलुओं पर विचार किया गया, लेकिन यह संभव नहीं लगता.

इस बयान के सामने आते ही दोनों सरकारें इस मामले पर एक ही पायदान पर खड़ी नजर आने लगीं. यह बात ठीक है जैसा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मोदी सरकार के बदले रु ख की जानकारी देते समय कहा कि सरकार इस मामले को सीधे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में नहीं ले जा सकती क्योंकि भारत और पाकिस्तान कॉमनवेल्थ के देश हैं. इसमें एक प्रावधान है कि कॉमनवेल्थ के देश एक-दूसरे के खिलाफ कम्पल्सरी जूरिडिक्शन का इस्तेमाल नहीं कर सकते. इसी के अनुसार, हमारे विदेश राज्य मंत्री ने उत्तर दिया था और जो शपथपत्र यूपीए सरकार ने दाखिल किया था, उसी को हमने दोहराया था.

जब अक्टूबर 2013 में कैप्टन कालिया का मामला उठा था तो भाजपा का मत था कि अगर हम सरकार में आये तो इस मामले पर फिर से कार्रवाई करेंगे. पर मोदी सरकार ने पूर्व सरकार का ही अनुसरण किया. हालांकि सरकार का रुख बदल तो गया है, लेकिन इससे कॉमनवेल्थ वाले नियम नहीं बदलेंगे. तत्काल सरकार का विश्लेषण यह है कि सौरभ कालिया को जो यातनाएं दी गई, वह अपवाद हैं. इसलिए सरकार सर्वोच्च न्यायालय से ही शपथ पत्र बदलकर पूछेगी कि इन प्रावधानों को देखते हुए भी क्या भारत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जा सकता है? तो अब सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है. किंतु अगर पाकिस्तान तैयार नहीं हुआ तो उसे आप अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते. इसके लिए कॉमनवेल्थ का नियम बदलवाना होगा.

हालांकि पाकिस्तानी मीडिया में उसके सैनिकों का बयान आया था जिसमें सौरभ कालिया को पकड़ने और बर्बरता बरतने की बात कही गई थी. इसका एक वीडियो भी यूट्यूब पर उपलब्ध है. लेकिन जो देश यह मानने को ही तैयार नहीं था कि उसमें उसकी सेना का हाथ है, जो यह कहता रहा कि यह तो कश्मीरी मुजाहिद्दीनों की कार्रवाई है, वह अपनी सेना द्वारा जेनेवा संधि के उल्लंघन को स्वीकार कैसे कर सकता था? अब तो करगिल के जनक जनरल परवेज मुशर्रफ तक इसे सैनिक कार्रवाई मान चुके हैं.  करगिल में कुल 496 भारतीय सेना के तथा पांच वायु सेना के जवान मारे गए थे. पाकिस्तान की तत्कालीन खुफिया रिपोर्टें भी 735 पाकिस्तानी सैनिकों के मरने की बात थी. कई पूर्व सैनिकों ने 2000 से ज्यादा जवानों के मरने का दावा किया था.

स्कार्दू, रावलपिंडी एवं लाहौर के सैनिक अस्पताल घायल सैनिकों से भर गए थे. पाकिस्तान ने भारी संख्या में अपने सैनिकों का शव लेने से इनकार भी कर दिया था, क्योंकि ऐसा करते ही यह साफ हो जाता था कि घुसैपठ यानी सीमा का अतिक्रमण पाक सेना ने किया था. उस युद्ध में भारत की विजय, पाकिस्तानी सेनाओं का भारी संख्या में हताहत होना तथा उसे पहुंचाई गई क्षति कैप्टन कालिया की बर्बरता का जवाब माना जा सकता है. बावजूद इसके वर्तमान सरकार इस मामले पर दूसरे तरीके से पहले ही पेश आ सकती थी. हालांकि इस मामले में बहुत कुछ होने की संभावना नहीं है, फिर भी सरकार कह सकती थी कि हम पाकिस्तान के साथ हर बातचीत में इस मामले को उठाएंगे और न्याय मांगेंगे. कम से कम आगे तो उसे यह स्टैण्ड लेना ही चाहिए.

अवधेश कुमार
लेखक


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