पाक गुर्गे को दीजिए उन्हीं की भाषा में जवाब

Last Updated 30 May 2015 05:25:20 AM IST

अली शाह गिलानी के पासपोर्ट मुद्दे और दाऊद इब्राहिम के पाकिस्तान में होने-न होने के उठे मसले के बीच भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक बार फिर गर्माहट है.


पाक गुर्गे को दीजिए उन्हीं की भाषा में जवाब

दूसरी तरफ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद कश्मीर में बढ़ गया है. पांच दिनों के भीतर कश्मीर के सोपोर, कुलगाम और टंगडार में तीन आतंकी घटनाएं हुई. इनमें तीन आतंकियों और चार जवानों समेत आठ लोग मारे गए हैं. यह ऐसे समय हो रहा है जब कश्मीर में  अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है.

तुर्रा यह कि पाकिस्तान अब भारत पर ही आतंकवाद फैलाने का आरोप लगा रहा है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भारत और खुफिया एजेंसी रॉ पर उसके आंतरिक मसलों में दखलंदाजी करने और चरमपंथ को हवा देने का आरोप लगाया है. यह आरोप पहले भी लगाए गए हैं लेकिन इस बार कराची और बलूचिस्तान में होने वाली वारदातों में भारतीय हथियारों के इस्तेमाल की बात और अपने आतंकियों को रॉ की तरफ से ट्रेनिंग देने की बात पहले से कहीं अधिक आक्रामक तरीके से कही गई है. पाकिस्तान के कई बड़े अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा है और संपादकीय भी लिखे हैं.

जाहिर है, पाकिस्तान जो काम छुपे तौर पर कर रहा है, अपने विरोधी देश पर खुद के खिलाफ वही करने का आरोप लगाकर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. चीनी राष्ट्रपति की पाकिस्तान यात्रा और चीन द्वारा पाकिस्तान को अपना सबसे खास दोस्त बताए जाने के बाद पाकिस्तान की बाछें खिली हुई हैं. उसे लग रहा है कि उसने विदेश नीति में लंबी छलांग लगा ली है. उसे लगता है कि चीन भारत का विरोध करने में परोक्ष तौर पर उसकी मदद करता रहेगा. यह आंशिक सत्य हो सकता है, पूरा नहीं. चीन सबसे चालबाज देशों में है. वह पाकिस्तान की मदद तभी तक कर सकता है जब तक उसका हित सधे.

गिलानी मामले को देखें तो पाक की कुटिलता साफ दिखेगी. उनके पासपोर्ट का आवेदन खारिज करने के भारत सरकार के फैसले पर पाकिस्तान को राजनीति करने की कोई जरूरत नहीं थी. गिलानी अपनी बीमार बेटी से मिलने सऊदी अरब जाना चाहते थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे नियमों को दरकिनार कर ऐसा करने की जिद पालें. जब हमारा विदेश मंत्रालय कह रहा है कि आवेदन इसलिए आगे नहीं बढ़ा क्योंकि उन्होंने न तो फोटोग्राफ दिए थे और न ही आवेदन की फीस जमा की थी. यहां तक कि आवेदन के साथ उनकी बायोमीट्रिक डिटेल भी नहीं थी.

साफ है कि वे जान-बूझकर विवाद करना चाहते थे और पाकिस्तान इसे दुनिया में भारत को नीचा दिखाने का एक मौका मान कर चल रहा था. पाकिस्तान ने जान-बूझकर इस बात को बार-बार रेखांकित किया कि भारत चाहता है कि पासपोर्ट जारी होने से पहले सैयद अली शाह गिलानी खुद को भारतीय घोषित करें. दरअसल, कश्मीर के प्रत्येक अलगाववादी नेता के लिए पाकिस्तान के मन में हमेशा से सहानुभूति रही है.

गौर करने वाली बात है कि हुर्रियत कांफ्रेंस के गिलानी ही वे नेता हैं जिनकी रैली में पाकिस्तानी झंडे लहराए गए. इस अलगाववादी नेता की रैली में पहले भी पाकिस्तानी झंडे लहराए गए थे. गिलानी अगर कश्मीर की स्वायत्तता की वकालत करते हैं तो उन्हें पाकिस्तानी झंडे लहराए जाने का विरोध भी करना चाहिए. विरोध का न होना यही कहानी कहता है कि कश्मीर के अलगाववादी पाकिस्तान के समर्थन का कोई मौका नहीं छोड़ते और प्रत्युत्तर में पाकिस्तान भी इन नेताओं के समर्थन का कोई मौका नहीं छोड़ता.

दरअसल, कश्मीर में जबसे लोकप्रिय सरकार बनी है वहां के अलगाववादी तबके और पाकिस्तान में बहुत बौखलाहट है. कश्मीर के ऐतिहासिक मतदान के बाद वैसे भी ये सब हताश थे. जिस समय चुनाव हो रहे थे, उसके आगे-पीछे भी आतंकी वारदातें की गई. प्रधानमंत्री की कश्मीर यात्रा के पहले भी और अब भी ऐसा किया जा रहा है. अलगाववादी और आतंकी, दोनों अपनी उपस्थिति जताने और देश-विदेश में यह संदेश फैलाने में लगे हुए हैं कि भले ही कश्मीर में लोकप्रिय सरकार का गठन हो चुका है, लेकिन फिर भी यहां का माहौल अच्छा नहीं है. अभी कश्मीर में पर्यटकों की चहल-पहल होनी चाहिए थी. आम लोग भी यही चाहते हैं.

यह वहां की खुशहाली के लिए जरूरी है. राज्य के मुख्यमंत्री भी कई राज्यों में जाकर यह संदेश दे चुके हैं कि लोग धरती की इस जन्नत में घूमने-फिरने आएं ताकि राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके. लेकिन न तो पाकिस्तान ऐसा चाहता है और न ही तमाम अलगाववादी ताकतें. ऐसे में पिसते हैं तो सिर्फ वहां के आम लोग, जिन्हें हिंसा से कोई वास्ता नहीं. उन्हें तो बस एक बेहतर जिंदगी चाहिए.

कश्मीर में आतंकियों की आज तक ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई जिसके पीछे पाकिस्तान का हाथ नहीं मिला हो. पाकिस्तान सीमा पर भी हमेशा उकसावे वाली कार्रवाई करना चाहता है ताकि कश्मीर समस्या को अंतरराष्ट्रीय चर्चाओं में रखा जाए. सेना प्रमुख कोई हो, सरकार पर सेना काबिज हो या राजनीतिक दल, पाकिस्तान की सोच का केंद्र बिंदु ही भारत विरोध है. यह देश हिंदुओं के वर्चस्व को खत्म करने के नाम पर वजूद में आया और इसके बाद लगातार भारत विरोध के लिए ताकत जुटाकर औकात बनाई गई. ऐसा नहीं कि वहां के आम लोग यही सोच रखते हों, लेकिन सेना, सत्ता और आतंकी संगठनों के घनघोर अभियान में वे भी रह-रह कर सोच बदलने को मजबूर हो जाते हैं.

पाकिस्तानी नेतृत्व चाहे जितनी सफाई दे, बरसों से यह सच सामने है कि आईएसआई पाकिस्तानी सेना का सबसे महत्वपूर्ण अंग है. पाकिस्तान की सेना रणनीति के तहत आतंकियों का उपयोग करती है. दाऊद इब्राहिम हो, हाफिज सईद या फिर लखवी- सबका पालन-पोषण वह करती है. आप भारत के विरोधी हों, बस इसी बात पर पाकिस्तान आपको पलकों पर बिठाएगा. पाकिस्तान बार-बार हाफिज, लखवी आदि को सामने लाकर भारत ही नहीं आतंकवाद विरोधी सभी देशों को भी यह दर्शाता है कि वह आतंकवाद की राह पर चलना नहीं छोड़ सकता. हमें उस ओर एक सीमा से अधिक ध्यान भी नहीं देना चाहिए. हमें चाहिए कि सीमा पर जब भी कोई उकसावे वाली कार्रवाई हो, तत्क्षण मुहतोड़ जवाब दें. अलगाववादी ताकतों को भी उन्हीं की भाषा में उत्तर दें और हमेशा यही कोशिश करें कि कश्मीर के आम लोगों का दिल जीता जाए.

हम अगर मानते हैं कि कश्मीर हमारा है तो उसे बार-बार हमारा कहने से बचना चाहिए, क्योंकि हम अपनी दूसरी चीजों के लिए ऐसा नहीं कहते. हमें कश्मीर के लोगों के साथ हमेशा खड़ा रहना चाहिए. उनमें लोकतांत्रिक मूल्यों की चेतना हमेशा बरकरार रहे, इसकी कोशिश करते रहना चाहिए. कश्मीर के लोगों के बारे में यह समझना जरूरी है कि वे बेहद संवेदनशील होते हैं. प्रकृति के करीब रहने वाले कश्मीरी हमेशा से शांति चाहते आए हैं. अमन-चैन की चाहत उनकी जड़ों में है. वे पाकिस्तान की हर चाल को अब समझने लगे हैं. यह भी समझने लगे हैं कि अलगाववादी नेता बस अपनी रोटी सेंक रहे हैं.

(श्री करीम पूर्व सैन्य अधिकारी और सुरक्षा मामलों के जानकार हैं)

अफसर करीम
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