जहर के चटकारे से मासूमों को बचाइए

Last Updated 30 May 2015 05:20:49 AM IST

जब से फास्ट फूड व्यंजन मैगी में लेड व मोनोसोडियम ग्लूटामैट (एमएसजी) जैसे घातक रसायन पाए जाने की खबरें सुर्खियां बनी हैं, लोग सहम गए हैं.


जहर के चटकारे से मासूमों को बचाइए

अब लोगों की जुबान पर मैगी के स्वाद के चटकारे कम, उसके सेवन से होने वाले नुकसान की चर्चा अधिक है. टेलीवीजन पर ‘टेस्ट भी हेल्थ भी’ और ‘दो मिनट में मैगी तैयार’ का प्रचार अब लोगों को खटकने लगा है. ऐसे मेगास्टारों पर भी भरोसा नहीं रहा जो मैगी की गुणवत्ता का ढोल पीटते हैं. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने मैगी के कई पैकेटों को जब्त कर उसकी गुणवत्ता की जांच राज्य की प्रयोगशाला में की. पाया गया कि मैगी में लेड यानी सीसे की मात्रा तय मानकों से अधिक है.

विशेषज्ञों की मानें तो बहुत अधिक मात्रा में लेड के सेवन से स्वास्थ्य बिगड़ सकता है. इससे न्यूरोलॉजिकल समस्या के अलावा खून के संचार में कमी और किडनी फेल होने की स्थिति बन सकती है. चूंकि बच्चे मैगी नूडल्स का सर्वाधिक सेवन करते हैं, ऐसे में उनके शारीरिक विकास में रुकावट के अलावा पेट संबंधी कई बीमारियां मसलन पेट दर्द, नर्व डैमेज और अन्य संवेदनशील अंगों को नुकसान पहुंच सकता है. इसी तरह मैगी में पाया गया मोनोसोडियम ग्लूटामैट भी सेहत के लिए खतरनाक है. इस केमिकल का उपयोग फास्ट फूड में फ्लेवर का असर बढ़ाने के लिए किया जाता है. इसके इस्तेमाल से मुंह, सिर, गर्दन में जलन, स्किन संबंधी बीमारी बढ़ती है और साथ ही धीरे-धीरे शरीर भी कमजोर होता है.

हालांकि निर्माता कंपनी ने सफाई दी है कि मैगी नूडल्स में इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्रियों की गुणवत्ता का ध्यान रखा जाता है जिससे कि शरीर को नुकसान न पहुंचे. लेकिन कंपनी के अनुरोध पर ही जब कोलकाता स्थित नेशनल लैब में जांच हुई तो सामने आया कि मैगी में लेड और मोनोसोडियम ग्लूटामैट की मात्रा खतरनाक स्तर पर है. ऐसे में मैगी के गुणवत्तापरक होने के दावे बेमानी हो जाते हैं. निर्माता कंपनी का दावा है कि मैगी के पैकेट की एक्सपायरी डेट छह महीने की होती है और अगर छह महीने में पैकेट नहीं बिकता तो कंपनी में वापस चला जाता है. लेकिन सचाई इसके उलट है. दुकानों पर मैगी के एक्सपायरी पैकेट पड़े रहते हैं और लोग जानकारी के अभाव में उसका इस्तेमाल करते हैं.

अब सवाल यह है कि जहरीले केमिकल का सच सामने आने के बाद क्या सरकार मैगी नूडल्स का लाइसेंस रद्द करेगी? अभी कहना अभी मुश्किल है. देश में ऐसे ढेरों उत्पाद हैं जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं, फिर भी उनकी बिक्री धड़ल्ले से जारी है. गत वर्ष सर्वोच्च अदालत ने निर्णय दिया कि काबरेनेटेड शीतल पेय पदार्थों की निगरानी और जांच, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा की जाएगी. उसने यह निर्णय शीतल पेय पदार्थों के विनियमन के लिए एक अलग पैनल गठित करने की मांग से जुड़ी याचिका का निपटारा करते हुए दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मसला संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के मौलिक अधिकार से जुड़ा है.

एक अरसे से शीतल पेय पदार्थों की गुणवत्ता और उनमें मिलावट की खबरें चर्चा में हैं. लेकिन कंपनियां आमजन के स्वास्थ्य की चिंता किए बगैर अपने उत्पादों को धड़ल्ले से बेच रही हैं. याद होगा जुलाई 2006 में सीएसई की एक रिपोर्ट में कोकाकोला और पेप्सी के पेयों में कीटनाशकों की अधिक मात्रा होने की बात सामने आई थी. सीएसई द्वारा जारी इस रिपोर्ट में कोकाकोला और पेप्सी के 11 विभिन्न ब्रांडों में कीटनाशकों की उपस्थिति 2003 में पाए गए कीटनाशकों की मात्रा से भी ज्यादा बताई गई. रिपोर्ट में देश के विभिन्न भागों में खरीदे गए 57 सैंपलों में तीन से पांच कीटनाशकों की मात्रा बीआईएस द्वारा तय मानकों से औसतन 24 गुना अधिक थी.

कोकाकोला के कोलकाता संयत्र द्वारा उत्पादित एक पेय में कैंसर कारक लिडैंन की मात्रा बीआईएस मानकों की तुलना में तकरीबन 140 गुना अधिक थी. सीएसई की इस रिपोर्ट के बाद पेय कंपनियों के उत्पादों की गुणवत्ता पर सवाल उठ खड़े हुए थे. लेकिन आज भी इनकी बिक्री यथावत जारी है. जबकि इस तथ्य से सभी सुपरिचित हैं कि इसमें शामिल घातक रसायनों से शरीर कई गंभीर बीमारियों का घर बनता जा रहा है.

एक आंकड़े के मुताबिक देश में घातक खाद्य एवं पेय उत्पादों के सेवन से होने वाली बीमारियों से निपटने में प्रति वर्ष 80 हजार करोड़ रुपए खर्च होते हैं. ऐसा नहीं है कि इसे रोकने के लिए कानून नहीं है. पर सचाई है कि कानून का ईमानदारी से पालन नहीं हो रहा है. खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी को रोकने और उनकी गुणवत्ता को स्तरीय बनाए रखने के लिए देश में खाद्य संरक्षा और मानक कानून 2006 लागू है. इस कानून के मुताबिक घटिया, मिलावटी, नकली माल की बिक्री और भ्रामक विज्ञापन के मामले में संबंधित प्राधिकारी जुर्माना कर सकता है.

इस कानून के तहत अप्राकृतिक व खराब गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री पर दो लाख रुपए, घटिया खाद्य पदार्थ की बिक्री पर पांच लाख रुपए, गलत ब्रांड खाद्य पदार्थ की बिक्री पर तीन लाख रुपए और भ्रामक विज्ञापन पर 10 लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन सचाई यह है कि तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण गुनाहगारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाती है और उनका हौसला बुलंद होता है. जरूरत इस बात की है कि कानून का सख्ती से पालन हो और अन्य देशों की तरह खाद्य संरक्षा के मानक तय करने के साथ निगरानी के लिए एजेंसियों का गठन हो.

उदाहरण के लिए अमेरिका की खाद्य संरक्षा व्यवस्था दुनिया के बेहतरीन तंत्रों में शामिल है. इसे स्थानीय, राज्य एवं केंद्रीय स्तर पर लागू किया गया है. यहां का फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन फूड कोड प्रकाशित करता है. इसमें खाद्य संरक्षा के मानक तय किए गए हैं जिनका उल्लंघन गैरकानूनी है. इसी तरह आस्ट्रेलिया की आस्ट्रेलियाई फूड अथारिटी उपभोक्ताओं तक शुद्ध खाद्य पदार्थ पहुंचाने के लिए खाद्य कारोबार पर खाद्य संरक्षा मानकों को प्रभावपूर्ण तरीके से लागू कराने का काम करती है.

जर्मनी में उपभोक्ता अधिकार और खाद्य संरक्षा विभाग इस मामले को देखता है. पूरे जर्मनी में भोज्य पदार्थ बेचने के लिए किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है लेकिन वह कानून के मुताबिक तय मानकों के अनुरूप होना चाहिए. लेकिन भारत में स्थिति उलट है. खाद्य संरक्षा और मानक कानून हमारे देश में मजाक बनकर रह गया है. उचित होगा कि केंद्र और राज्य जहरीले खाद्य पदार्थों पर रोकथाम लगाए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करे.

अरविंद जयतिलक
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment