अब कस सकता है कालेधन पर शिंकजा

Last Updated 26 May 2015 12:57:18 AM IST

बीते संसद सत्र में काले धन से संबंधित बिल लोकसभा के बाद राज्य सभा में भी पास कर दिया गया है.


अब कस सकता है कालेधन पर शिंकजा

यह सरकार के साथ-साथ पूरे देश के लिए सकारात्मक पहल है. याद कीजिए मोदी सरकर ने अपनी कैबिनेट की पहली बैठक में जो इकलौता फैसला किया था वह था-कालेधन की जांच और निगरानी के लिए विशेष जांच दल का गठन. यह उनका प्रमुख चुनावी मुद्दा भी था. बीच में ऐसा लग रहा था कि सरकार इस गंभीर मुद्दे से पीछे हट रही है, लेकिन फिर वह रास्ते पर आती दिखी. बिल के पास होने के बाद दूसरे देशों में जमा अघोषित रकम पर 30 प्रतिशत का टैक्स और तीन गुना जुर्माना लगाया जा सकता है. इतना ही नहीं, इससे तीन से लेकर दस साल तक की सजा देने का रास्ता भी साफ हो गया है. सरकार ने यह कदम भ्रष्टाचार की समस्या से जूझ रहे देश में समस्या की पहचान कर उठाया है, इसलिए इसका रिजल्ट भी अच्छा ही होगा. विधेयक पारित होने के बाद प्रधानमंत्री ने सही ही ट्वीट किया कि यह देश के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है. बिल पास होने के बाद इसे कानूनी अमली जामा पहनाने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा.

विदेश में जमा काले धन को वापस लाने के लिए बनाया गया यह कानून राजग सरकार की सबसे बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है. एसआईटी के गठन के बाद केंद्र सरकार ने गंभीरता दिखाई. लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर-शोर से इस मसले को उठाया था. पारित विधेयक में सबसे अच्छी बात यह है कि सरकार उन लोगों को एक मौका दे रही है जो यहां की एजेंसियों से छिपाकर विदेश में धन रखे हुए हैं. एक निश्चित समय सीमा के लिए यह स्कीम लायी गई  है जिसके तहत विदेशों में जमा अघोषित काले धन को स्वदेश लाने पर 30 प्रतिशत का टैक्स और इतना ही अर्थदंड देना होगा. इससे वह भारत में होने वाली कार्रवाई से बच जाएगा. समय सीमा खत्म होने के बाद अगर किसी व्यक्ति द्वारा विदेशों में काला धन रखने की बात सामने आती है तो 30 प्रतिशत टैक्स के अलावा 90 प्रतिशत जुर्माना देना होगा. पारित विधेयक केवल देश से बाहर रखे गए काले धन पर लागू होगा. अगर देश के भीतर काला धन रखा जाता है तो उसके लिए अभी कानून बनाया जाना शेष है.

गौर करने वाली बात है कि देश में अवैध तौर पर अर्जित आय भी कम नहीं. जानकारी हो कि महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में कांग्रेस ने यह बात लोगों के सामने जोर-शोर से रखी कि प्रधानमंत्री के उस वादे का क्या हुआ जिसमें उन्होंने सरकार बनने के सौ दिन के भीतर काला धन वापस लाने की बात कही थी. लोगों ने हालांकि बीजेपी के पक्ष में मतदान किया लेकिन कहीं न कहीं काले धन को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता को लेकर उनके मन में भी संदेह था. लोग स्वाभाविक तौर पर चाहते थे कि सरकार नाम जाहिर करने में ठोस इच्छाशक्ति दिखाए. जनता के मन में यही था कि वह काले धन के खुलासे की राह में आई हर अड़चन को दूर करे. ऐसा नहीं होता तो विपक्ष इस मुद्दे को आगे के चुनावों में हथियार के तौर पर आजमाती. सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगता और मोदी की छवि धूमिल होती.

गौर करने वाली बात है कि भाजपा लंबे समय से काले धन की वापसी का मसला उठाती रही है. 2009 के चुनाव के दौरान लालकृष्ण आडवाणी ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया था और पिछले लोकसभा चुनाव में विभिन्न मंचों से नरेंद्र मोदी ने बार-बार इस मुद्दे को लेकर यूपीए गवर्नमेंट को घेरा. इतना ही नहीं, भाजपा अध्यक्ष और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जनता से  वादा किया था कि सरकार बनने के 150 दिन के अंदर विदेशों में जमा काले धन को वापस लाया जाएगा. योग गुरु बाबा रामदेव ने भी इस काले धन की वापसी को लेकर आक्रामक तेवर दिखाए थे. ऐसे में स्वाभाविक था कि सरकार इस मसले पर अपना ध्यान केंद्रित करती और इस मुद्दे पर राजनीति न कर जनता का दिल जीतती.

यह नहीं भूला जाना चाहिए कि विदेशों में मौजूद काले धन की अगर देश वापसी होती है तो आर्थिक माच्रे पर परेशानी झेल रहे देश को काफी हद तक राहत मिलेगी. इलिसिट फाइनेंशियल फ्लोज फॉम डेवलपिंग कंट्रीज: 2002-2011 की रिपोर्ट के अनुसार भारत 34.4 बिलियन डॉलर के साथ अवैध पूंजी का पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक रहा. साल 2011 में यह तीसरे स्थान पर तब पहुंचा, जब 84.93 बिलियन डॉलर और विदेश गया. वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक ग्लोबल फाइनेंशियन इंटेग्रिटी के अनुसार, भारतीयों ने 1948-2008 के बीच करीब 28 लाख करोड़ रुपए टैक्स हैवन देशों में छिपाए. सीबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक टैक्स हैवन देशों में भारतीयों ने 31.4 लाख करोड़ रुपए भविष्य के लिए बचा रखे हैं. इसी तरह साल 2011 की बीजेपी टास्क फोर्स की रिपोर्ट के अनुसार 86.8 लाख करोड़ रुपए गोपनीय तौर पर विदेशी खातों में पड़े हैं. ये आंकड़ों का ढेर हैं जिस पर हम बैठे हैं.

नया विधेयक पारित होने के पहले सरकार के पास काले धन के मुद्दे से निपटने के लिए दो कानून थे. एक मनी लांड्रिग निषेध कानून और दूसरा विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून यानी फेमा. इन कानूनों के तहत आज से पहले जितनी भी कार्रवाई हुई, सबमें केवल जुर्माना ही हुआ और बहुत कम मामले आगे चले. गिरफ्तारियां भी कम ही हुईं. मनी लांड्रिंग निषेध कानून के तहत केवल 22 गिरफ्तरियां हुई. जबकि काला धन जो यहां से बाहर गया, वह हवाला जैसे जरिए द्वारा दोबारा भारत आया. केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ओर से 2012 में जारी श्वेतपत्र के मुताबिक भारत में एफडीआई का प्रवाह काले धन की वापसी का कारण बना.

खैर अब हालात बदल रहे हैं. पहले यह संभव था कि सरकार कोई एमनेस्टी स्कीम लाती और टैक्स छूट के नाम पर लोगों को काले धन को सफेद बनाने का मौका दिया जाता. सरकार के पास यह विकल्प पहले बिल्कुल खुला हुआ था लेकिन जैसे-जैसे मसला कोर्ट में जड़े जमाता रहा, सरकार के हाथ से यह विकल्प निकल गया. हालांकि नए कानून में थोड़े जुर्माने के साथ इस खुलासे का रास्ता बचाए रखा गया है.

हमें नहीं भूलना चाहिए कि काला धन आज महज एक धारणा नहीं है बल्कि तथ्यात्मक रूप से भी हमारे सामने है. अवैध तरीके से धन अर्जित करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है. काले धन के पीछे की मुख्य वजह भ्रष्टाचार ही है. स्विस बैंक में जो भी पैसा जमा है, भ्रष्टाचारियों की वजह से है. ये भ्रष्टाचारी कहां से आते हैं और इन्हें कौन शह देता है, इसकी जानकारी शायद सभी को है. राजनीति इसकी जड़ है. जनता को सोचना चाहिए कि वे काले धन को लेकर अपनी जागरूकता का परिचय देते हुए फैसला लें और वोट देने का एक आधार यह भी बनाएं कि इस मोच्रे पर किसने कैसा काम किया.

हालांकि अभी आगे मुश्किलें हैं. खासतौर पर क्रियान्वयन को लेकर. काननू बनाने के बाद इसके पालन के प्रति भी लगातार गंभीरता बरतनी होगी. अन्यथा यह भी उन कानूनों के दायरे में शामिल हो जाएगा, जिसमें प्रावधान तो कई होते हैं लेकिन जिन्हें लागू करना बहुत बड़ी टेढ़ी खीर होता है.                    
(लेखक सीबीआई के प्रमुख रहे हैं)

जोगिन्दर सिंह
लेखक


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