और दिखाओ और दिखाओ

Last Updated 24 May 2015 03:21:28 AM IST

अमेजन डॉट इन का विज्ञापन बार-बार बजाता है :‘और दिखाओ और दिखाओ’.


और दिखाओ और दिखाओ

विज्ञापन की यह ‘कैच लाइन’ ऑन लाइन मार्केटिंग का ऐसा अमोघ मंत्र है कि देखते-देखते सबकी जुबान पर चढ़ गया है. इसकी धुन तो अच्छी है ही ताल, बीट भी अच्छी है. विज्ञापन में आबाल-वृद्ध सब नाच-नाच कर गाते रहते हैं : ‘और दिखाओ और दिखाओ’. हर विज्ञापन इसी तरह से दिखाता रहता है, लेकिन जिस तरह से यह दिखाता है कि वह नया है. स्मार्ट फोन पर एक के बाद एक रंग-बिरंगी चीजें आती-जाती रहती हैं. उनको देख कर सब खुश होते रहते हैं. यह चीजों को लेने की नहीं दिखने भर से पैदा की गई खुशी होती है.

आप किसी चीज को खरीदें न खरीदें या आपको वह मिले न मिले, लेकिन वे इतनी सुंदर और आकर्षक बना दी जाती हैं कि उन्हें देखने भर से आपकी आंखों की तृप्ति हो जाती है. ऑन लाइन मार्केटिंग विंडो शापिंग से अलग तरह का मजा देती है. विंडो शापिंग में आपको शो रूम तक जाना पड़ता है, चीजों को देखना पड़ता है और एक शोरूम में सीमित संख्या में ही चीजें रखी जा सकती है, लेकिन अमेजन डॉट इन की मोबाइल शापिंग में आपको अनंत चीजें दिखती हैं. दाम लिखे दिखते हैं और एक क्लिक की दूरी पर वे होती हैं. आप आर्डर दीजिए कार्ड से पे कीजिए और चीज आपके घर पर हाजिर.

यह सप्लाई साइड का सुख हुआ, लेकिन चीजों को सिर्फ देखने का सुख उससे भी बड़ा है. उसमें कुछ ज्यादा खर्च नहीं होता और हजार लाख चीजें दिखने से सुख देती हैं. लगता है कि अपना जगत भरा-पूरा है, चकाचक है. क्या हुआ हमारे पास नहीं है, लेकिन औरों के पास तो है. कल को हमारे पास भी हो सकती है. वे आशावादी बनाती हैं. यहीं कहीं एक जलन का, ईर्ष्या का और उपभोग के कंपटीशन का तत्व सक्रिय होता है, जो आपकी जेब की क्षमता और काम्य चीज की कीमत की दूरी से पैदा होता है. इसी कारण नए ‘हैव्स’ (जिनके पास है) और ‘हैव नॉटस’ (जिनके पास नहीं है) का समाज बनता है. ‘और दिखाओ और दिखाओ’ की कैच लाइन इसलिए भी जुबान पर चढ़ जाती है, क्योंकि अब देखने में भी कपंटीशन पैदा कर दिया गया है, जिसका कारण दिखाने की क्रिया में मौजूद समकालीन कंपटीशन है.

हम सब इतनी चीजों से घिरे होते हैं कि निर्णय नहीं कर पाते कि कौन-सी चीज हमारे लिए थी या है और कौन-सी चीज नहीं है और कौन-सी चीज फिट है. कौन-सी चीज नहीं है. ‘और दिखाओ ओर दिखाओ’ देखने की हवस को हवा देता है और देखने से ही तृप्ति होती है. इस भाव से हमें सुख देता है. यह उसी तरह से महसूस होता है, जिस तरह से कभी फॉरच्यून पत्रिकाएं बताती रहती थीं और हमें सुखी करती रहती थीं कि हमारे देश में विश्व के सबसे अमीर लेग रहते हैं. कई बार उसने चार-पांच लोगों के नाम तक दिए कि वे दुनिया के एक सौ अमीर लोगों में दसवें नंबर पर हैं या पांचवें नंबर पर हैं या एक नंबर पर हैं. यह अमीरी हमारी नहीं थी, न हमें एक पैसा उस आदमी से मिल सकता था, लेकिन हमें खुशी होती थी कि चलो अपना देश भी अमीरी में किसी से कम नहीं है. संपन्नता का जादू होता है. अमेजन डॉट इन पर उपलब्ध पचास लाख उपभोक्ता चीजों के विज्ञापन की कैच लाइन यही करती है. हम समझते हैं कि अब संसार में किसी चीज की कमी नहीं है.निराश होने की जरूरत नहीं है. एक दिन वे हमको भी मिलेंगी बशत्रे हम इनको निहारते रहें.

टीवी, मोबाइल, फेसबुक, ट्विटर की दुनिया में यही मंत्र काम करता है, जहां हर आदमी अपने को ‘और दिखाओ और दिखाओ’ करके दिखाता रहता है.  दिखाना और दिखाना जनसंचार की एक नई क्रिया है, जो दृश्य पर बल देती है. प्रत्यक्ष की जगह ले लेती है. चीज का ‘दिखना’ ही उसका ‘होना’ है. अगर कोई आदमी नहीं दिखता तो वह लगभग नहीं ‘होता’. जो दिखता है, वही होता है. इसीलिए इन दिनों हर आदमी अपने किए धरे को हर समय दिखाता रहता है. हर चीज दृश्यमान हो तो असर करेगी. इसलिए ‘और दिखाओ और दिखाओ’ की मांग होती रहती है मानो हम चाहते रहते हैं कि यह ‘शो’ कभी खत्म ही न हो. इसका असर नीति और राजनीति पर पड़ रहा है. वहां भी ‘और दिखाओ और दिखाओ’ की मांग बनी ही रहती है. अब सरकारों का होना काफी नहीं. उनका ‘दिखना और अधिक दिखना’ जरूरी है. सरकार दिखावा निर्भर और प्रदर्शनप्रिय बन रही हैं.

दिल्ली में दो सरकारें हैं. एक केंद्र और दूसरी राज्य सरकार. दोनों अपनी उपलब्धियां मीडिया में  दिखाने में लगी हैं. केंद्र सरकार के कई मंत्री जन एवं प्रवक्ता लाइन लगाकर दर्जन भर ‘जनहितकारी योजनाओं’ और कानूनों के बारे में बताते रहते हैं, लेकिन एक बात पर कुछ अधिक बल देकर कहा जाता है कि यह साल केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त रहने का साल है. यही उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है. उधर, राज्य सरकार कह रही है कि उसने सौ दिन में कोई सत्तर से अस्सी फीसद भ्रष्टाचार मिटा दिया है. दोनों ही जो आइटम दिखा रही हैं, वह अमूर्त है और दृश्य में नहीं दिखता. भ्रष्टाचार कोई शर्ट या जीन्स नहीं है जो दिख जाए. नीति का असर होता है. योजना का असर होते-होते होता है जबकि ‘और दिखाओ और दिखाओ’ के नियमानुसार जो है जिसका उपभोग करना है वह दिखना चाहिए. आर्डर पर मिलना चाहिए!घर तक पहुंचना चाहिए!

योजनाएं जब पहुंचेंगी तब पहुंचेंगी और भ्रष्टाचार खत्म हुआ किसने देखा? ‘और दिखाओ दिखाओ’ शुद्ध उपभोक्ता बना दिए समाज में जब तक आखों से देखा न जा सके और फील न हो तब तक समझिए कि ‘वह हुआ ही नहीं’!  ‘और दिखाओ और दिखाओ’ कहता है कि कुछ करो, मत करो, लेकिन ‘चकाचक’ दिखाते रहो. चीज मिले न मिले चीज का दिखना ही सुखकारी है. इसीलिए आजकल अपनी सरकारों की मार्केटिंग का भी मूलमंत्र है : ‘और दिखाओ और दिखाओ’.

सुधीश पचौरी
लेखक


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