मौन और मुखर में तुलना ही नहीं है

Last Updated 24 May 2015 01:52:57 AM IST

लेबनानी चिंतक खलील जिब्रान ने लिखा है-मेढ़क बैलों की अपेक्षा अधिक शोर कर लें, लेकिन वे हल नहीं खींच सकते और न ही कोल्हू के चक्र को हिला सकते हैं.


पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (फाइल फोटो)

राहुल गांधी का शोर मचाऊ  अभियान ऐसा ही है. तुलना बराबरी में ही होती है. इसलिए राहुल के बजाय निवर्तमान प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना ज्यादा स्वाभाविक है. विद्वान निवर्तमान प्रधानमंत्री डॉ सिंह तटस्थ प्रधान रहे और वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी साल के 365 दिन और हरेक दिन 17-18 घंटे सक्रिय.

डॉ. सिंह मूक प्रधानमंत्री रहे तो मोदी जनसंवादी प्रधानमंत्री. डॉ सिंह को सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनाया था, लेकिन मोदी को भारतीय जनगणमन ने भारत का मुकुट पहनाया. डॉ सिंह ने प्रतिदिन निराश किया, मोदी ने प्रतिदिन राष्ट्रीय उत्साह बढ़ाया. डॉ सिंह की विदेश यात्राओं में सरकारी तंत्र था, वे भारतीय राज्य के प्रमुख के रूप में उपस्थित थे, लेकिन मोदी की विदेश यात्राओं में प्रतिपल भारतीय राष्ट्रभाव था. डॉ सिंह भारतीय राजव्यवस्था के औपचारिक प्रमुख दिखाई पड़ रहे थे, मोदी संप्रभु भारत के वास्तविक प्रतिनिधि.

असल में भारतीय जनगणमन ने ही उन्हें प्रधानमंत्री चुना था. उनके पास जनविश्वास-दीप का प्रकाश है और आंखों में निर्धन, अभावग्रस्त, मजदूर और श्रमिकों की समृद्धि के सपने. वे सबका साथ लेकर सबके विकास के लिए प्रतिबद्ध दिखाई पड़ रहे हैं. ‘साल एक शुरुआत अनेक’ का तथ्य सामने है. अच्छे दिनों की शुरुआत हो चुकी है. जनधन योजना या 12 रुपये में एक लाख का बीमा और गरीबों को आश्रय देने की योजनाएं गरीबी से टकराने का ही संकल्प हैं. 60 बरस का काम टालू और भ्रष्टाचार की चालू कार्य संस्कृति बदल चुकी है. स्पेक्ट्रम नीलामी से प्राप्त भारी धनराशि ने सबको आश्चर्यचकित किया है. निराशा के बादल छंट रहे हैं. विकास दर बढ़ी है. अर्थव्यवस्था वृद्धि की ओर अग्रसर है. विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा है. ‘मेक इन इंडिया’ की शुरुआत ने मनोबल बढ़ाया है. इसके ठोस परिणाम भी आने लगे हैं.

लूट-खसोट के राज वाले उनकी सरकार पर सूट-बूट की सरकार का दयनीय और हास्यास्पद आरोप लगा रहे हैं. सो घोटालों की तुलना भी जरूरी है. डॉ. सिंह के कार्यकाल में घोटालों की बाढ़ रही, मोदी सरकार में भ्रष्टाचार की कोई घटना नहीं हुई. दोनों अतुलनीय हैं. डॉ सिंह अतुलनीय हैं कि भ्रष्टाचार और अव्यवस्था पर उनके जैसा तटस्थ, मौनव्रती साक्षी भाव वाला प्रधानमंत्री दूसरा नहीं हुआ. डॉ सिंह ने भ्रष्टाचार को भी संस्थागत होने दिया. मोदी भी अतुलनीय हैं, ऐसा कार्यशील, अति सक्रिय, भ्रष्टाचार पर शून्य सहिष्णुता और राष्ट्र सवरेपरि प्रतिबद्ध प्रधान भी दूसरा नहीं हुआ. तुलना के अलावा भी याद किए जाने योग्य बातें ढेर सारी हैं.

संप्रग सरकार में प्रधानमंत्री का पद और प्राधिकार रसातल में था. तब कैबिनेट द्वारा प्रस्तावित विधेयक भी राहुल गांधी ने फाड़कर फेंक दिया था. उस समय के प्रधानमंत्री ने अपने अपमान पर भी मौन व्रत का अनुपालन किया था. अक्रियात्मक मौन, तटस्थ वैरागी भाव और सिर झुकाकर गलत को भी सही मानने का अनुनय. अनुनय राजनय का विकल्प नहीं होता. विद्वान निवर्तमान प्रधानमंत्री ने अनुनय को ही अपना विशेषाधिकार बनाया था. एक साल हो गया.

गंगा में ढेर सारा पानी बह गया. अविरल गंगा का स्वप संकल्प कृति आकार ले रहा है. ऋग्वैदिक पूर्वजों की प्रिय नदीतमा सरस्वती फिर से प्रकट हो चुकी है. मोदी ने भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय स्वाभिमान को नए पंख दिए हैं. भारत का योग विज्ञान अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कर चुका है. विद्वान, निवर्तमान प्रधान भी सहमत होंगे कि तटस्थ द्रष्टा से कर्मरत योद्धा ज्यादा राष्ट्र उपयोगी होता है. अथर्ववेद का ‘वात्य’ ऐसा ही है. वह सभी दिशाओं में गति करता है.

डॉ सिंह को भारतीय इतिहास ने उन्हें ‘काम न करने वाले महत्त्वपूर्ण प्रधान’ दर्ज किया है. कांग्रेस के अधिकृत इतिहास में भी उन्हें कांग्रेसी नेता जैसी प्रतिष्ठा मिलने की संभावनाएं शून्य हैं. मोदी भारतीय इतिहास में गौरवशाली अध्याय जोड़ रहे हैं. जन गण मन उन्हें अपने राष्ट्रीय महानायक के रूप में देख रहा है.

हृदयनारायण दीक्षित
लेखक


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