वायु ही आयु वायु ही बल

Last Updated 03 May 2015 12:48:55 AM IST

वायु प्राण हैं. प्राण नहीं तो जीवन नहीं. प्राण से प्राणी है. ऋग्वेद में देवों का प्राण भी वायु ही हैं. वे देवों के भी प्राण हैं इसलिए वही विश्व के राजा हैं.


वायु ही आयु वायु ही बल

भारतीय अनुभूति में सृष्टि पांच महाभूतों (तत्वों) से बनी है. पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश- ये पांच महाभूत हैं. इनमें ‘वायु’ को प्रत्यक्ष देव कहा गया है. ऋग्वेद में स्तुति है- वायु को नमस्कार है, आप प्रत्यक्ष ब्रह्म हैं, मैं आपको ही प्रत्यक्ष ब्रह्म कहूंगा. आप हमारी रक्षा करें. ऋग्वेद का यही मंत्र यजुव्रेद,  अथर्ववेद व तैत्तिरीय उपनिषद् में भी जस का तस आया है. कहते हैं, वायु ही सभी भुवनों में प्रवेश करता हुआ हरेक रूप-रूप में प्रतिरूप होता है. सभी जीवों में प्राण वायु की सत्ता है. लेकिन राष्ट्रीय राजधानी सहित देश के सभी महानगरों में वायु प्रदूषण है. प्रदूषण राष्ट्रीय चिंता है.

वायु देव के अध्ययन और उपासना पर हमारे पूर्वजों ने बड़ा परिश्रम किया था. अध्ययन चिंतन की भारतीय दृष्टि में वायु प्रकृति की शक्ति है. उन्होंने वायु का अध्ययन एक पदार्थ की तरह किया है. वैदिक पूर्वज वायु को देवता जानते थे. उसे बहुवचन ‘मरुत्गण’ कहते थे. ऋग्वेद के एक मंत्र में वायु को मधुरस से भरा पूरा कहा गया है. वृहदारण्यक उपनिषद् के सुंदर मंत्र में वायु के लिए कहते हैं, यह वायु सभी भूतों का मधु है और सभी भूत इस वायु के मधु है. सृष्टि निर्माण के सभी घटक एक-दूसरे से अंतर्सबंधित हैं. वे एक-दूसरे के मधु हैं. उनके ढेर सारे नाम हैं, वे वायु हैं, प्राण हैं, वही मरुत् भी हैं. मरुत् का सीधा अर्थ है वायु.

मरुत्गण धनी, दरिद्र सबको एक समान संरक्षण देते हैं. वशिष्ठ के सूक्तों में इन्हें अति प्राचीन भी बताया गया है, हे मरुतों आपने हमारे पूर्वजों पर भी बड़ी कृपा थी. वशिष्ठ की ही तरह ऋग्वेद के एक और ऋषि अगस्त्य मैत्रवरुणि भी मरुत्गणों के प्रति अतिरिक्त जिज्ञासु है. पूछते हैं, मरुत्गण किस शुभ तत्व से सिंचन करते हैं, कहां से आते हैं, किस बुद्धि से प्रेरित हैं, किसकी स्तुतियां स्वीकार करते हैं. फिर मरुतों का स्वभाव बताते हैं, वे वषर्णशील मेघों के भीतर गर्जनशील हैं. वे पर्वतों को भी अपनी शब्द ध्वनि से गुंजित करते हैं, राजभवन कांप जाते हैं. जब अंतरिक्ष के पृष्ठ भाग से गुजरते हैं उस समय वृक्ष डर जाते हैं और वनस्पतियां औषधियां तेज रफ्तार रथ पर बैठी महिलाओं की तरह भयग्रस्त हो जाती हैं. तेज आंधी और पानी का ऐसा काव्य चितण्र अनूठा है. कहते हैं, वे गतिशील मरुत्गण भूमि पर दूर-दूर तक जल बरसाते हैं. वे सबके मित्र हैं. वायु अन्न पोषण भी देते हैं.

चरक संहिता आयुर्विज्ञान का महाग्रंथ है. इसके 28वें अध्याय में आत्रेय ने बताया है- वायु ही आयु है. वायु ही बल है, शरीर को धारण करने वाले भी वायु ही हैं. कहते हैं, यह संसार वायु है. उसे सबका नियंता गाते हैं. वायु को सर्वशक्तिमान गाने की परंपरा पुरानी है. शरीर और प्राण-वायु का संयोग जीवन है, दोनों का वियोग मृत्यु है. चरक संहिता में कहते हैं वह भगवान (परम ऐवश्र्यशाली) स्वयं अव्यय हैं, प्राणियों की उत्पत्ति व विनाश के कारण हैं, सुख और दुख के भी कारण हैं, सभी छोटे-बड़े पदाथरे को लांघने वाले हैं, सर्वत्र उपस्थित हैं.

प्रकृति में एक प्रीतिकर यज्ञ चल रहा है. वायु प्राण हैं, अन्न भी प्राण हैं. अन्न का प्राण वष्रा है. वायुदेव/मरुतगण वर्षा लाते हैं. ऋग्वेद में मरुतों की ढेर सारी स्तुतियां हैं. कहते हैं, आपके आगमन पर हम हषिर्त होते हैं, स्तुतियां करते हैं. लेकिन कभी-कभी वायु नहीं चलती, उमस हो जाती है. प्रार्थना है, हे मरुतों आप दूरस्थ क्षेत्रो में न रुकें, अंतरिक्ष लोक से यहां आएं. ऋषि कहते हैं- रसा, अनितमा कुभा सिंध आदि नदियां वायु वेग को न रोकें. वे नदी के साथ पर्वतों से भी यही अपेक्षा करते हैं. वायु रुकी तो उमस बढ़ती है. कहते हैं, हे मरुतों आप रात-दिन लगातार चलें, सभी क्षेत्रों में भ्रमण करें. वायु जगत् का स्पंदन हैं. वे जीवन हैं, जीवन दाता भी हैं. वायु से वर्षा है, वायु से वाणी है. कंठ और तालु में वायु संचार की विशेष आवृत्ति ही मंत्र है. गीत-संगीत के प्रवाह का माध्यम वायु हैं. गंध-सुगंध और मानुष गंध के संचरण का उपकरण भी वायु देव हैं. वायु नमस्कारों के योग्य हैं. वे देवता हैं इसीलिए वायु का प्रदूषण नहीं करना चाहिए.

हृदयनारायण दीक्षित
लेखक


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