खतरनाक स्तर पर मोबाइल रेडिएशन

Last Updated 28 Apr 2015 03:07:14 AM IST

मोबाइल के इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव पड़ने को लेकर देश-दुनिया में जारी बहस के बीच केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय 16 वैज्ञानिक संस्थानों से मोबाइल फोन तरंगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर स्टडी कराने जा रहा है.


खतरनाक स्तर पर मोबाइल रेडिएशन (फाइल फोटो)

सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के अनुसार 2011 में आए अंतरमंत्रालय समिति के एक निर्देश के बाद पहली बार केंद्र सरकार व्यापक स्तर पर यह स्टडी कराने जा रही है. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से सहयोग देने के लिए संस्थानों से मिले परियोजना प्रस्तावों का चुनाव कर लिया गया है. सीओएआई ने बताया कि अध्ययन में प्रमुखत: विद्युत चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव, मस्तिष्क पर उसका प्रभाव, जैव रसायनिक अध्ययन, प्रजनन पैटर्न, पशु और मानव मॉडल की तुलना और उपचारात्मक कदम जैसे विषयों पर अध्ययन किया जाएगा. इसी विषय पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) दिल्ली में 4,500 लोगों के लक्षित समूह के साथ अध्ययन कर रहा है और मुंबई में टाटा मेमोरियल सेंटर अध्ययन कर रहा है.

वैज्ञानिक शोधपत्रिका \'एंटीऑक्सिडेंट्स एंड रिडॉक्स सिग्निलंग\' में प्रकाशित ताजा अध्ययन से पता चला है कि मोबाइल फोन के अत्यधिक इस्तेमाल से कोशिकाओं में तनाव पैदा होता है, जो कोशिकीय एवं अनुवांशिक उत्परिवर्तन से संबद्ध है. इसके कारण कैंसर का खतरा होता है. मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से कोशिकाओं में उत्पन्न होने वाला विशेष तनाव (ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस) डीएनए सहित मानव कोशिका के सभी अवयव नष्ट कर देता है. ऐसा विषाक्त पराक्साइड व स्वतंत्र कण विकसित होने के कारण होता है. तुलनात्मक अध्ययन में पाया गया कि मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वालों के लार में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस की उपस्थिति के संकेत कहीं अधिक हैं.

शोध के अनुसार मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है. हमारे शरीर और दिमाग में मौजूद पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को अब्जॉर्ब करता है और सेहत के लिए नुकसानदेह होता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल से कैंसर हो सकता है. हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल के इस्तेमाल पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसद तक बढ़ जाती है. मोबाइल रेडिएशन मोबाइल टावर और मोबाइल फोन दोनों वजह से होता है. टावर से सिग्नल, सिग्नल से फोन और फोन से आवाज आने तक की पूरी प्रक्रिया रेडियेशन पर आधारित है.

मोबाइल से नुकसानदेह रेडियेशन की तरंगें तेजी से निकलती हैं. डिपार्टमेंट ऑफ टेली कम्युनिकेशन ने टावर लगाने के कुछ पैमाने बनाए हैं, जिन्हें अक्सर दरकिनार कर दिया जाता है. नगरों महानगरों में एक ही छत पर दस तक टॉवर मिल जाएंगे. कई ऊंची मीनारों के बीच में घिरे हैं जबकि ये इलाके की सबसे ऊंची मीनार पर या आबादी से बाहर लगे होने चाहिए. अरसे से मोबाइल फोन रेडियेशन व टावर्स पर रिसर्च कर रही साइंटिस्ट डेवरा ली डेविस के अनुसार भारत में मोबाइल टावर्स व रेडियेशंस की स्थिति भयावह है. यहां कंपनियां स्कूल भवान व गांवों में रिहायशी इलाकों में भी टावर लगा रहीं हैं. मोबाइल टावर के 300 मीटर एरिया में सबसे ज्यादा रेडिएशन होता है. ऐंटेना के सामनेवाले हिस्से में सबसे ज्यादा तरंगें निकलती हैं. जाहिर है, पीछे और नीचे के मुकाबले सामने की ओर नुकसान ज्यादा होता है. मोबाइल टावर से होनेवाले नुकसान में यह बात भी अहमियत रखती है कि घर टावर पर लगे ऐंटेना के सामने है या पीछे. इसी तरह दूरी भी बहुत अहम है.

टावर के एक मीटर के एरिया में 100 गुना ज्यादा रेडिएशन होता है. टावर पर जितने ज्यादा ऐंटेना लगे होंगे, रेडिएशन भी उतना ज्यादा होगा. मोबाइल पर इंटरनेट सर्फिंग के दौरान रेडिएशन होता है इसलिए इससे बचना चाहिए. मोबाइल रेडियेशन से कुछ हद तक बचाव के लिए कम एसएआर संख्या वाला मोबाइल खरीदें, क्योंकि इसमें रेडिएशन का खतरा कम होता है. यह संख्या मोबाइल फोन कंपनी की वेबसाइट या फोन के यूजर मैनुअल में छपी होती है. कुछ कंपनियां एसएआर संख्या का खुलासा नहीं करतीं जो गलत है इसलिए मोबाइल खरीदते समय एसएआर संख्या पर जरूर ध्यान दें. एसएआर संख्या का संबंध उस ऊर्जा से है, जो मोबाइल के इस्तेमाल के वक्त इंसान का शरीर सोखता है.

मतलब जिस मोबाइल की एसएआर संख्या जितनी ज्यादा होगी, वह शरीर के लिए उतना ही ज्यादा नुकसानदेह होगा. अभी तक हैंडसेट्स में रेडिएशन के यूरोपीय मानकों का पालन होता है. इनके मुताबिक हैंडसेट का एसएआर लेवल 2 वॉट प्रति किलो से ज्यादा बिल्कुल नहीं होना चाहिए. लेकिन एक्सपर्ट इस मानक को सही नहीं मानते हैं. इसके पीछे दलील है कि ये मानक भारत जैसे गर्म मुल्क के लिए मुफीद नहीं हो सकते. इसके अलावा, भारतीयों में यूरोपीय लोगों के मुकाबले कम बॉडी फैट होता है. इस वजह से हम पर रेडियो फ्रीक्वेंसी का ज्यादा घातक असर पड़ता है. हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित गाइडलाइंस में यह सीमा 1.6 वॉट प्रति किग्राकर दी गई है, जोकि अमेरिकी स्टैंर्डड है.

रेडियेशन स्टैंर्डड की बात करें तो रूस, इटली, पोलैंड जैसे देशों ने आज भी इन्हें भारत से कम रखा है. भारत में तंबाकू, असुरक्षित यौन सबंध, एक्सरे व प्लास्टिक के खिलौनों से होने वाली हेल्थ प्रॉब्लम से लिए तो कैंपेन है पर मोबाइल यूजर्स के लिए कोई सर्तकता अभियान नहीं है जबकि पिछले कुछ सालों में मोबाइल फोन ने हर घर में जगह बना ली है. मोबाइल तरंगों पर हुए कुछ शोधों के अनुसार सुबह-सुबह चहचहाने वाली चिड़िया गोरैया शहरों से धीरे-धीरे इन्हीं रेडियेशन के कारण खत्म हो रही हैं. कुछ शोध यह भी साबित करते है कि मोबाइल रेडियेशन युवाओं में नपुंसकता, ब्रेस्ट कैंसर और दिमाग में कम होते ब्रेन सेल्स का कारण है. यह रेडियेशन पांच साल तक के बच्चों लिए बेहद घातक होता है. मोबाइल से निकलने वाले रेडियेशन से कई अनचाही और अनजानी बीमारियां पनप सकती है. यह जान लें कि फोन एक खिलौना नहीं बल्कि  यंत्र है, जिसे बच्चों से जितना दूर रखेंगे उनके लिए उतना ही अच्छा है.

बहरहाल, मोबाइल फोन और गांव शहर में लगे टावर के रेडियेशन को लेकर सरकार को अब संजीदगी दिखानी पड़ेगी. क्योंकि यह बड़े पैमाने पर मानव स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है जो धीमे जहर की तरह धीरे धीरे लोगों को बीमार कर रहा है . देश भर में आबादी के बीच लगे मोबाइल टावरों को तत्काल हटाने का काम भी होना चाहिए और इस दिशा में लोगों के बीच जन जागरूकता अभियान चलाने की बड़ी जरूरत है.
 

शशांक द्विवेदी
लेखक


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