विस्फोट के लिए खदबदा रही धरती

Last Updated 27 Apr 2015 05:54:02 AM IST

हिमालय का समूचा क्षेत्र भूकंप संभावित क्षेत्र में है. भूकंप संभावित क्षेत्रों की श्रेणी के हिसाब से यह क्षेत्र जोन पांच में अंतर्गत आता है, जो भूकंप के लिहाज से काफी खतरनाक क्षेत्र माना जाता है.


विस्फोट के लिए खदबदा रही धरती.

इस क्षेत्र में भूकंप का मुख्य कारण है कि धरती का भारतीय हिस्सा यूरेशियन हिस्से की तरफ सालाना पांच सेंटीमीटर रफ्तार से खिसक रहा है. जब धरती के दो हिस्से आपस में समायोजित होते हैं तो धरती के अंदर से उसकी ऊर्जा या दबाव प्रबल तरीके से बाहर निकलता है, जिसके कारण धरती में कंपन होता है और भूकंप आता है. तो भारतीय क्षेत्र का यूरेशियन क्षेत्र की तरफ खिसकना लगातार जारी है. धरती के अंदर गहरे काफी हलचल मची है, जिसके नतीजे में हिमालय पहाड़ की ऊंचाई भी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. इस हलचल के कारण कब भूकंप आएगा, यह बताना काफी मुश्किल है.

इसलिए कि ऐसी कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है, जिससे कि ठीक-ठीक भविष्यवाणी की जा सके. लेकिन माना जाता है कि अगर सत्तर-अस्सी सालों तक भूंकप नहीं आया हो तो उसके आने की संभावना काफी बढ़ जाती है. अगर थोड़े-थोड़े समय पर धरती का प्रेशर हल्के भूकंप के माध्यम से निकलता जाए तो वह सुरक्षित माना जाता है, लेकिन अगर सौ सालों तक कोई हलचल न हो तो बड़े भूंकप के आने की आशंका काफी बढ़ जाती है. फिर इसमें जानमाल के बड़े पैमाने पर हानि होने की आशंका होती है, जैसी कि अभी नेपाल में देखा जा रहा है. या फिर उत्तराखंड के चमोली में या फिर गुजरात में, हुआ था.

हालांकि देश में कई जगह फाल्ट लाइन है जो भूकंप संभावित क्षेत्र है, लेकिन सबसे ज्यादा भूकंप संभावित क्षेत्र हिमालय के आसपास का क्षेत्र है. हिन्दुकुश से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक  2500 किलोमीटर का इलाका इसके दायरे में है. जहां इन फाल्ट लाइन के अंदर टकराव या हलचल होने प्रक्रिया सबसे ज्यादा होती है. ज्यादातर हलचल को हमारी धरती की 10 से 15 किलोमीटर वाली सतह तक झेल लेती है और हमें भूकंप का पता नहीं चल पाता है. लेकिन जब हलचल सीमा से ज्यादा हो तो हमें भूकंप के झटके महसूस होते हैं. यह दबाव धरती फाड़कर दरार से बाहर निकलता है. कई बार यह दरार सौ-दौ किलोमीटर की होती है, लेकिन जब भीषण भूकंप आता है तो उसकी दरार की लंबाई हजार किलोमीटर से भी ज्यादा हो सकती है. हाल में जब इंडोनेशिया में बड़ा भूकंप आया तो उसकी दरारों की लंबाई हजार किलोमीटर से भी अधिक थी.

नेपाल में फिलहाल जो भूकंप आया है उसके दरारों के आंकड़े नहीं मिले हैं, लेकिन संभावना यह है कि यह 100-200 किलोमीटर के दायरे में होगा. इससे पहले 15 जनवरी 1934 में बिहार और नेपाल में एक बहुत बड़ा भूकंप आया था, जिसमें 10,000 से अधिक लोग मारे गए थे. उसकी तुलना में हम कह सकते हैं कि अभी तो फिलहाल उतना तीव्र भूकंप नहीं आया है. रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 7.9 है, जो भीषण श्रेणी में नहीं आती है. यहां एक बात स्पष्ट कर दूं कि रिक्टर पैमाने से यहां मतलब धरती के कम्पन की ऊंचाई से है. इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति भीषण भूकंप संभावित क्षेत्र की है, इसलिए अभी और भी तेज भूकंप आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. हालांकि अभी जो झटके बार-बार आ रहे हैं, वह पिछले भूकंप का आफ्टरशॉक हैं. ये दो-तीन दिन तक अभी और आएंगे उसके बाद इसकी संभावना घट जाएगी.

हालांकि ऑफ्टरशॉक रिक्टर स्केल पर छह से ज्यादा है जो कि सामान्य नहीं है. जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि धरती खदबदा रही है क्योंकि उसके सीने में ऊर्जा का अम्बार छिपा हुआ है. जब तक उसे वह बाहर नहीं कर देती, उसका मन हल्का नहीं होगा. एक अनुमान है कि इस ऊर्जा को बाहर आने के लिए छोटे-छोटे नहीं बल्कि रिक्टर पैमाने पर अभी के मुकाबले दो बिंदु और ऊपर की तीव्रता की जरूरत होगी. हालांकि यह विनाशकारी होगा. तब क्या बचेगा, कहना मुश्किल है. अगर आंकड़ों में हम इस विनाश को समझना चाहें तो 7.9 की तीव्रता वाले 40 से 50 भूकम्प जैसा आवेग और उनसे होने वाली क्षति का अनुमान कर सकते हैं. रिक्टर पैमाने पर 9 की तीव्रता वाला भूकम्प लगभग 10 गुना ज्यादा बड़ा होता है. लेकिन यह 8 तीव्रता वाले भूकंप से 32 गुना ज्यादा विनाशक क्षमता रखता है.

इसका अनुमान लगाना फिलहाल संभव नहीं है कि अगला भूकंप कब आएगा.  इसलिए सावधानी और जागरूकता ही एकमात्र उपाय है. हिमालय क्षेत्र में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां भूगर्भ में जबरदस्त हलचल है और पिछले सौ सालों से वह दबाव बाहर नहीं निकल पाया है. इसलिए वहां अब भूकंप आने की संभावना ज्यादा है. वहीं, हिमालय और कच्छ के क्षेत्र को छोड़कर भारत का बाकी हिस्सा भूकंप के लिहाज कम संवेदनशील माना जा सकता है. इन्हें एससीआर यानी स्टेबल कांटिनेंट रीजन माना गया है. यहां बड़े भूकंप की संभावना कम ही है. लेकिन यहां भी मकानों को भूकंपरोधी बनाने की बहुत जरूरत है.

हमारे देश या फिर नेपाल जैसे देश में भूकंप आने पर जान माल का ज्यादा नुकसान इसलिए होता है कि हम मकान बनाने में स्टैर्डड का अनुसरण नहीं करते. बिल्डर करप्शन के कारण भी मकान के निर्माण भूकम्प प्रतिरोधी तकनीक का इस्तेमाल नहीं करते या अकूत मुनाफा कमाने के लिए घटिया सामग्री का उपयोग करते हैं. हालांकि कागजों पर कुछ और दिखा दिया जाता है. इसी का नतीजा है कि कोई भी बड़ा भूकंप जानमाल की भारी क्षति कर जाता है. लेकिन संतोष की बात है 1934 के भूकंप के मुकाबले इस बार जानमाल की क्षति काफी कम हुई है. भूकंप के बारे में या उससे बचाव के बारे में लोगों में अब भी पूरी तरह जागरूकता नहीं है. भारत और नेपाल दोनों ही जगह पर लोगों के भूकंप के बारे में जागरूक करने की जरु रत है कि भूकंप के दौरान क्या सावधानी बरती जाए. टीवी पर ऐसी तस्वीरें आ रही हैं कि लोग भूकंप के बाद बड़ी-बड़ी इमारतों के पास खड़े हैं जबकि इन इमारतों के गिरने का खतरा भूकंप के दौरान या उसके बाद भी कहीं ज्यादा होता है.

कई बार ऑफ्टरशॉक के दौरान सामान्य से झटके से भी पुरानी और कमजोर इमारतें गिर जाती हैं. उसी तरह से लोगों में यह जागरूकता फैलाने की जरुरत है कि भूकंप के दौरान किसी टेबल के नीचे या इमारत की बीम की आड़ में खड़े होना चाहिए. हमें स्कूलों में बच्चों के लिए अवेयरनेस कैंपेन चलाना चाहिए. यह बिल्कुल जरूरी है कि लोग बिल्कुल खुले मैदान में भूकंप के दौरान चले जाएं. जापान जैसे देशों में बच्चों को स्कूल में ही भूकंप के बारे में जागरूक किया जाता है. साथ ही वहां की इमारतें भी भूकंप को ध्यान में रखकर बनाई जाती है ताकि कि नुकसान कम से कम हो. विकासशील देशों में खासतौर से इतना संसाधन नहीं होता कि वे सभी पुराने मकानों की मरम्मत करा कर भूकंपरोधी बना लें, ताकि खतरा कम हो जाए. अपने देश में भी चरणबद्ध शुरुआत तो की जा सकती है. यह बहुत जरूरी है क्योंकि भीषण भूकंप के मुहाने पर हम बने हुए हैं. 

(लेखक आईआईटी कानपुर में वाडिया चेयर प्रोफेसर हैं)

 

एस के टंडन
लेखक


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